संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’का संपादकीय : जंकफूड का मिला एक और नया खतरा, करता है याददाश्त कमजोर...
17-Dec-2022 3:46 PM
‘छत्तीसगढ़’का संपादकीय  :  जंकफूड का मिला एक  और नया खतरा, करता  है याददाश्त कमजोर...

ब्राजील में अभी हुए एक वैज्ञानिक शोध में यह पता लगा है कि फास्टफूड या जंकफूड कहे जाने वाले डिब्बा और पैकेट बंद सामान या बाजार में मिलने वाले बर्गर के दर्जे के खानपान से लोगों की याददाश्त कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है। आठ बरस तक दस हजार से अधिक औरत-मर्दों पर किए गए इस अध्ययन में यह पाया गया कि ऐसे अल्ट्रा प्रोसेस्ड खानपान वाले लोगों में याददाश्त कमजोर होने के मामले ऐसा कम से कम खाने वाले लोगों से 28 फीसदी अधिक थे। इस अध्ययन से यह भी साफ होता है कि मानसिक स्वास्थ्य को बनाने मेंं खानपान की एक भूमिका है। दूसरी तरफ एक अलग रिसर्च का नतीजा यह है कि किसी भी किस्म की कसरत लोगों में रोकी जा सकने वाली बीमारियों को रोकने की अकेली सबसे बड़ी तरकीब है। कसरत या किसी और किस्म से बदन की मेहनत से आंतों से लेकर दिमाग तक असर पड़ता है, और जिसे इंसान मन कहते हैं, वह मन भी जोश से भरता है।

ऐसे अलग-अलग बहुत से रिसर्च-नतीजे हैं और दो बातों को लेकर कोई मतभेद नहीं हो सकता कि जंकफूड किस्म के जितने खानपान हैं, उनसे सेहत को अपार नुकसान पहुंचता है, दूसरी तरफ खेलकूद, कसरत, या पैदल-सैर से  लोगों की सेहत को बहुत फायदा पहुंचता है। एक दूसरी बात यह है कि ऐसा नुकसान या ऐसा फायदा, ये दोनों ही बातें लोगों की अगली पीढिय़ों तक पहुंचती हैं, और अच्छी या बुरी आदतें विरासत की शक्ल में आगे बढ़ती हैं। ये दोनों ही बातें आज फिक्र करने की इसलिए हैं कि पैकेट और डिब्बों में बंद, और टेलीफोन पर ऑर्डर करने से घर पहुंचने वाला बाजारू खाना बढ़ते चल रहा है। लोग पकाने का वक्त या सहूलियत न रहने से भी ऐसा करते हैं, और जुबान के शौक की वजह से भी ऐसी चीजों को मंगाना पसंद करते हैं जिन्हें घर पर पकाना आसान नहीं है। फिर बाजार को अपने ग्राहक बांधकर रखने होते हैं, इसलिए स्वाद को बढ़ाने के लिए इतने किस्म की चीजों को इस हद तक डाला जाता है, कि जिससे सेहत के चौपट होने की गारंटी सरीखी रहती है। इन दिनों संपन्न परिवारों के बच्चे बचपन से ही ऐसे खानों के शिकार हुए जा रहे हैं, और इसके खतरे की तरफ सरकार और समाज की जागरूकता बिल्कुल भी नहीं है। और परिवार भी समाज से प्रभावित होते हैं, और इस तरह का खानपान बड़ों से लेकर छोटों तक जमकर बढ़ते चल रहा है, और इसके साथ-साथ ही इन सबकी आने वाली जिंदगी में कई किस्म की ऐसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ते चल रहा है जिन्हें कि आसानी से रोका जा सकता था।

एक तरफ तो नुकसानदेह खानपान को घटाने की जरूरत है, दूसरी तरफ सेहतमंद जीवनशैली को अपनाने की जरूरत है। बिना किसी खर्च के लोग खाली हाथों कुछ देर कसरत कर सकते हैं, कुछ देर पैदल चल सकते हैं, कुछ देर योग या प्राणायाम कर सकते हैं। इनमें एक धेला भी खर्च नहीं होता, लेकिन लोगों की काम करने की क्षमता बढ़ती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, और अधिक काम करने का उत्साह भी बढ़ता है। अब यह बात निर्विवाद रूप से, वैज्ञानिक तथ्यों से साबित हो चुकी है कि खेलकूद या कसरत से दिमाग में हार्मोन रिलीज होते हैं जो लोगों को खुशमिजाज भी बनाते हैं, और उनकी जिंदगी सुखी करते हैं। बचपन और जवानी के समय से अगर लोग खेलना-कूदना, कसरत और पैदल चलना शुरू कर देते हैं, तो उनकी जिंदगी गंभीर बीमारियों से बचने की गुंजाइश बढ़ जाती है, और बुढ़ापा शर्तिया अधिक आरामदेह हो जाता है।

हिन्दुस्तान मेंं केन्द्र सरकार की तरफ से फिटइंडिया नाम का एक अभियान कुछ बरस पहले छेड़ा गया था, और वह झाड़ू लगाने के सफाई अभियान की तरह आया-गया हो गया। अब कोई उसकी चर्चा भी नहीं करते। अब न लोगों को फिट रहने के तरीके सुझाने पर कोई मेहनत दिखती, और न ही खराब खाने से सावधान करने का कोई अभियान दिखता। नतीजा यह है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर जैसे शहरों में पैदल चलने के लिए तालाबों के जो किनारे थे, जो मैदान और बगीचे थे, उन पर धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहे हैं, और खानपान के बाजार वहां खड़े किए जा रहे हैं। लोगों के लिए खुली जगहें म्युनिसिपल और सरकार के लिए आखिरी प्राथमिकता, या नाजायज औलाद की तरह हो गई हैं, और इंच-इंच का भ्रष्ट बाजारू इस्तेमाल भ्रष्ट कमाई का बड़ा जरिया हो गया है। जिस जगह लोग सपरिवार घूम सकते थे, अब वहां लोग सपरिवार बाजारू खानपान ही कर सकते हैं।

सरकारों को बड़े खर्च वाले संगठित काम अच्छे लगते हैं। लोगों में खानपान और सेहत की जागरूकता से सरकारों में बैठे लोगों को कुछ नहीं मिलना है। लेकिन सार्वजनिक जगहों पर बर्बाद खानपान वाले बाजार बसाने में सत्तारूढ़ लोगों को खासी कमाई होती है। दूसरी तरफ लोगों के इलाज के लिए जब सरकारें निजी अस्पतालों को या स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को सैकड़ों करोड़ का भुगतान करती हैं, तो उसमें भी सत्ता को कमाई होती है। लोगों से सेहतमंद खाने को कहना, और सेहतमंद जिंदगी गुजारने को कहने से किसी की कोई कमाई नहीं होती। इसलिए सरकार से कोई उम्मीद करना बेकार है। वह तो खुली जगहों को कांक्रीट का जंगल बनाती चलेंगी, और बेचती चलेंगी। लोगों को खुद ही अपने बीच, अपने-अपने दायरे में सेहतमंद खानपान और सेहतमंद जिंदगी को बढ़ावा देना होगा। पहले खुद फिट, फिर परिवार, और फिर आसपास का संसार। इनमें से कोई भी बात अंतरिक्ष विज्ञान जैसे रहस्य की नहीं है। अपनी ही पिछली पीढिय़ों को देखें तो बड़े बुजुर्ग यह सब करते आए हैं, इनसे जिंदगी किफायती भी रहती है, सेहतमंद भी रहती है। और जैसा कि अभी इस नये अध्ययन से पता लगा है कि जंकफूड खाने वालों की याददाश्त भी कमजोर हो रही है। और किसी चीज की न सही कम से कम इस नई बात की तो परवाह करें, क्योंकि याददाश्त नहीं रहेगी तो जिंदगी कैसी मुश्किल होगी इसे देखने के लिए आसपास कुछ बुजुर्ग मरीजों को देखा जा सकता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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