संपादकीय
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कांग्रेसियों में एक बड़ी खूबी है, जब कभी पार्टी में कुछ अच्छे दिन आते हैं, तो उसकी खुशी में बनाई जा रही खीर में फिनाइल डालने के लिए कोई न कोई कांग्रेसी इस तरह से दौड़कर आगे आते हैं, मानो उन्हें किसी विरोधी पार्टी ने सुपारी दे रखी है। अब चारों तरफ राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा का असर दिखाई दे रहा था, और उत्तरप्रदेश से आने वाले कांग्रेस के एक बड़े नेता सलमान खुर्शीद ने कल राहुल गांधी की भगवान राम से किसी तरह की एक तुलना की। ऐसी नाजायज बात पर भाजपा का यह हक बनता था कि वह इसे चाटुकारिता की पराकाष्ठा कहे। यह एक अलग बात है कि पिछले कई बरस से देश भर में जगह-जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना अलग-अलग भगवानों से करने का सिलसिला चले आ रहा है, और उसे रोकने के लिए न तो मोदी की तरफ से कभी कुछ कहा गया, और न ही भाजपा ने ऐसी नाजायज चापलूसी का कोई विरोध किया। लेकिन राहुल और मोदी के बीच एक बड़ा फर्क है। मोदी लगातार चुनावी कामयाबी पाने वाले नेता हैं, और वे अपनी पार्टी को आसमान पर ले गए हैं, और राहुल की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी ने चुनावों में सब कुछ खोया ही है। अब आज की चर्चा में हम चुनावी कामयाबी या नाकामयाबी से जुड़े हुए दूसरे पहलुओं पर बात करना नहीं चाहते कि कामयाबी किस कीमत पर मिली, या नाकामयाबी के पीछे क्या साम्प्रदायिकता से परे रहना एक वजह रही। अभी हम उस चर्चा को अलग छोडऩा चाहते हैं, और इस पर आना चाहते हैं कि कांग्रेस आज जिस दौर से गुजर रही है, उस दौर में जब पार्टी में कुछ अच्छा होते दिख रहा है, जब राहुल गांधी अपने पैरों पर चलकर एक अलग किस्म की कामयाबी और शोहरत तक पहुंच रहे हैं, दो दिन पहले ही हमारी इसी जगह पर लिखी हुई तारीफ के हकदार बन रहे हैं, तब कांग्रेस पार्टी के एक बड़े मुस्लिम नेता राम से उनकी तुलना करके भाजपा को हमले का एक नायाब मौका दे रहे हैं।
हमने कुछ अरसा पहले यह भी लिखा था कि धर्म और पुराण की मिसालों को लेकर कोई भी राजनीतिक दल भाजपा से नहीं जीत सकते। भाजपा की तो बुनियाद ही इन्हीं कहानियों पर टिकी हुई है, और उसके अखाड़े में जाकर उसे कोई क्या परास्त कर लेगा। ऐसे में अगर सलमान खुर्शीद को खालिस चापलूसी भी करनी थी, तो भी उन्हें राम-रहीम से दूर रहना चाहिए था। उनका नाम आते ही यह याद पड़ता है कि साल भर पहले अपनी एक किताब को बढ़ावा देने के कार्यक्रम में सलमान खुर्शीद ने हिन्दुत्व की चर्चा करते हुए उसकी तुलना दुनिया के सबसे खूंखार इस्लामी-आतंकी संगठन आईएसआईएस से की थी। यह बात इतनी भयानक थी कि उस वक्त कांग्रेस पार्टी में रहे एक दूसरे बड़े मुस्लिम नेता गुलाम नबी आजाद ने इसे तथ्यात्मक रूप से गलत, और गलत बयान करार दिया था। सलमान खुर्शीद के उस बयान को लेकर भाजपा ने राहुल गांधी पर हल्ला बोला था, और कांग्रेस पर यह तोहमत लगाई थी कि यूपी चुनाव के पहले वह मुस्लिमों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है। इस बयान के 13 महीने बाद सलमान खुर्शीद ने मानो बकवास की सालाना लीज रिन्यू करवाने के लिए एक बार फिर हिन्दू-मुस्लिम तनाव के बीच राम का नाम लेकर पदयात्रा की कामयाबी का राम-नाम-सत्य करने का काम किया है। सलमान खुर्शीद एक कामयाब वकील रहे हैं, और उन्हें अपनी महारत का इस्तेमाल कानूनी मामलों में करना चाहिए, और हिन्दू-धार्मिक मामलों को छूना बंद करना चाहिए।
अब जब चापलूसी की पराकाष्ठा पर बात हो ही रही है, तो हम एक दूसरे पहलू पर भी बात करना चाहते हैं जो कि राहुल गांधी से ही जुड़ा हुआ है। राहुल जब दिल्ली की सात डिग्री की सर्द हवा में एक टी-शर्ट में घूम रहे हैं, भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों की खुली समाधियों पर तेज हवा के बीच वैसे ही खड़े हैं, तो यह बहस भी छिड़ गई है कि वे ऐसा कैसे कर पा रहे हैं? बात हैरानी की तो है, लेकिन चापलूसों ने इसका बखान करने के लिए उन्हें संत करार देना शुरू कर दिया है, कोई प्रशंसक सोशल मीडिया पर उन्हें योगी लिख रहे हैं, तो कोई उन्हें ऊंचे दर्जे का सन्यासी लिख रहे हैं। फिर जिन चापलूसों को कुछ और मेहनत करनी है, वे किसी समाधि स्थल पर बैठे शॉल लपेटे हुए अमित शाह की फोटो के साथ राहुल गांधी की टी-शर्ट वाली फोटो जोड़कर तुलना कर रहे हैं। कुल मिलाकर बिना चापलूसों के यह टी-शर्ट राहुल को एक अलग रौशनी में पेश कर रही थी कि पदयात्रा की आग से गुजरकर वे तपकर मजबूत हुए हैं, लेकिन इस टी-शर्ट को लेकर मोदी और शाह के गर्म कपड़ों की खिल्ली उड़ाना परले दर्जे की बेवकूफी है, और इसकी भरपाई राहुल गांधी को करनी पड़ रही है या करनी पड़ेगी। जिन चापलूसों ने दस-बीस किलोमीटर का सफर भी राहुल के साथ पैदल तय नहीं किया होगा, उन्होंने राहुल की पदयात्रा की शोहरत और उन्हें मिल रही वाहवाही को तबाह करने का काम जरूर किया है।
किसी भी नेता, संगठन, या पार्टी को अपने चापलूसों को काबू में रखना चाहिए। ऐसे लोगों के बजाय वे आलोचक काम के रहते हैं जो कि नेता या संगठन की खामियों को उजागर करने का काम करते हैं। मोदी की स्तुति में हर-हर महादेव की तर्ज पर हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा देने वालों के बजाय भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी जैसे लोग बेहतर हैं जो कि अपनी पार्टी, और पार्टी की सरकार की खामियों पर खुलकर बोलते हैं। चापलूसों ने इंदिरा गांधी को भी इमरजेंसी के पहले से गड्ढे में गिरना शुरू कर दिया था, और इमरजेंसी के दौरान वे इंदिरा को पाताल तक ले गए थे। चापलूसों ने इंदिरा इज इंडिया जैसा नारा दिया था, और संजय गांधी की चप्पलें उठाई थीं। आज राहुल गांधी अपने परिवार के एक सबसे साहसी व्यक्ति की तरह लगातार लोगों के बीच एक गैरचुनावी मकसद से देश के इतिहास की सबसे लंबी पदयात्रा कर रहे हैं। उनकी आज की कामयाबी में कांग्रेस पार्टी के किसी और नेता का कोई भी योगदान नहीं है। पार्टी के चापलूसों को राहुल की इस मुहिम को चौपट करने से परे रहना चाहिए। कांग्रेस पार्टी के लिए बेहतर यही होगा कि उसकी तरफ से अपने नेताओं के लिए यह सलाह जारी हो जाए कि वे धर्म की मिसालों से परे रहें। बिना चापलूसी के राहुल आज अधिक कामयाब हैं, और उन्हें राम बताना, या उन्हें टी-शर्ट में एक योगी बताना बंद होना चाहिए।