विचार / लेख

-रमेश अनुपम
6 जनवरी को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली में आयोजित होने वाले कार्यक्रम के बारे में कुछ बातें -
3 जनवरी की देर शाम दिल्ली से कनिष्क का व्हाट्सएप कॉल आता है कि 6 जनवरी को पिताजी की स्मृति में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली में एक गरिमामय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
कनिष्क ने यह भी कहा कि वे मुझे इस आयोजन में जरूर आना है। कनिष्क ने दस बारह दिनों पहले मुझे इसकी सूचना भी दे दी थी।
कनिष्क देश के प्रखर बुद्धिजीवी और भारत के युवा प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के प्रमुख सलाहकार, हम सबके बेहद अज़ीज़ श्री देवी प्रसाद त्रिपाठी के कनिष्ठ पुत्र हैं।
देवी प्रसाद त्रिपाठी अपने आप में किसी मिथक से कम नहीं थे। वे एक दुर्लभ किस्म के बुद्धिजीवी थे जो साहित्य, कला, संस्कृति तथा राजनीति में एक साथ निरंतर आवाजाही कर सकते थे। जो अपनी स्मृति और वाकपटुता से सबको चमत्कृत कर सकते थे और अपने ज्ञान से सबको अभिभूत। भारतीय बौद्धिक सांस्कृतिक जगत में वे बेहद चमकीले नाम थे। उनकी सोहबत और दोस्ती का दायरा पूरी दुनिया में फैला हुआ था।
फैज अहमद फ़ैज़, अभिमन्यु अनत, ऋत्विक घटक, अमर्त्य सेन, अमिताभ घोष, मृणाल सेन, अशोक वाजपेयी, प्रकाश कारथ, सीताराम येचुरी, विवान सुंदरम, पुरुषोत्तम अग्रवाल, अपूर्वानंद, पवन वर्मा, रमेश दीक्षित, राजनाथ सिंह जैसे साहित्य राजनीति और अन्य अनुशासन का ऐसा कौन शख्स है जो डी.पी.त्रिपाठी की दोस्ती के दायरे में न आता हो।
नेपाल में कोई भी प्रधानमंत्री हो वह डी.पी. त्रिपाठी का मुरीद न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं है। नेपाल और मॉरिशस उनका दूसरा घर भी था।
हिंदी फिल्म की मशहूर अभिनेत्री मनीषा कोइराला के वे भारत में लोकल गार्जियन थे। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री मौली शर्मा की दिल्ली में पढ़ने वाली सुपुत्री के और मेरे बेटे कबीर के भी वे दिल्ली में लोकल गार्जियन थे।
जेएनयू के वे पहले वामपंथी प्रेसिडेंट चुने गए थे। बाद में सीताराम येचुरी हुए।
ज्योति बसु और बंगाल से उनका गहरा नाता रहा है। बाद में वे भारत के प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के प्रमुख सलाहकार हुए। वे राजीव गांधी के अंतिम दिनों तक उनके साथ रहे।
उनकी बौद्धिकता के अनेक किस्से मशहूर हैं जिसमें हजारों मोबाइल नंबर का याद रहना, अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, उर्दू के पढ़े हुए सैकड़ों किताबों के पृष्ठ दर पृष्ठ रखना, सैंकड़ों मित्र परिवार के बच्चों के नाम भी उन्हें मुखाग्र याद थे।
रायपुर से जुड़ी हुई एक घटना मुझे याद आ रही है। विश्वरंजनजी उन दिनों छत्तीसगढ़ में डीजीपी थे।
डी.पी. त्रिपाठी रायपुर आए हुए थे। वे हमेशा की तरह रात में समय निकालकर मेरे साइंस कॉलेज कैंपस स्थित शासकीय आवास में आए हुए थे। बातचीत के दौरान अचानक फिराक गोरखपुरी का जिक्र छिड़ गया। मैंने उन्हें बताया कि फिराक गोरखपुरी के नवासा विश्वरंजन रायपुर में डीजीपी हैं।
डी.पी. त्रिपाठी ने मुझसे कहा कि विश्वरंजन से बात करवाओ। मैंने उनकी विश्वरंजन से बात करवा दी। दूसरे दिन हम लोग उनसे मिलने पहुंचे। विश्वरंजनजी प्रतीक्षा कर रहे थे। बातचीत शुरू होते ही विश्वरंजन ने कहा कि जब वे पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे तब उन दिनों स्टूडेंट के बीच यह चर्चा होती थी कि भारत में कोई जीनियस है तो वे डी.पी.त्रिपाठी ही हैं।
फैज़ अहमद फैज़ को भारत बुलाने का और दो तीन दिन तक इलाहाबाद को फैज़ के रंग में रंग देने का दुस्साहस केवल डी. पी. त्रिपाठी ही कर सकते थे। मंच पर एक साथ फैज़ अहमद फैज़, महादेवी वर्मा और फिराख गोरखपुरी को एक साथ बैठाने का साहस भी केवल डी.पी. त्रिपाठी के लिए ही संभव था। यह उन दिनों की बात है जब वे इलाहाबाद में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हुआ करते थे।
इस तरह के अनेकों किस्से डी.पी.त्रिपाठी की शख्सियत के साथ जुड़े हुए हैं। उनकी शख्सियत की एक खूबी यह भी थी की वे हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहते थे जैसे गोया वे कोई देवदूत या फरिश्ता हों।
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर उनकी सर्वाधिक पसंदीदा जगह थी। दिल्ली जाने पर अक्सर दोपहर की रसरंग महफिल वहीं जमती थी। कई बड़े साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजनों को उन्होंने वहीं अंजाम दिया था।
मृत्यु से पहले उन्होंने देश भर में फैल रही सांप्रदायिकता को लेकर एक बड़ा आयोजन भी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित किया था। जिसमें देशभर के नामचीन बुद्धिजीवियों को उन्होंने इस कार्यक्रम में आमंत्रित भी किया था। वह एक यादगार कार्यक्रम था जिसे भुला पाना मुश्किल है।
नई दिल्ली के उसी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में उन पर केंद्रित आयोजन को लेकर में बेहद भावुक हो रहा हूं।
कल यानी 6 जनवरी को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में उनकी अनेक उज्जवल स्मृतियां मुझे घेर लेंगी और मैं जानता हूं कि मन ही मन मैं उन स्मृतियों को सबकी नजर बचाकर नमन करने भी लग जाऊंगा क्योंकि अब वे स्मृतियां ही मेरे पास शेष बची रह गई हैं।