विचार / लेख

नये साल में सोच और विचारधारा को वैचारिक प्रदूषकों से बचाकर रखें
07-Jan-2023 5:03 PM
नये साल में सोच और विचारधारा को वैचारिक प्रदूषकों से बचाकर रखें

-डॉ. लखन चौधरी

नया साल 2023 का आग़ाज हो गया है। सभी इस साल को अपने लिए खास और बेहद खास बनाना चाहते हैं। इस तरह का संकल्प होना भी चाहिए, लेकिन बेहद खास होने के मायने समझने की जरूरत है। बेहद खास का मतलब क्या हो ? क्या होना चाहिए ? क्या हो सकता है ? यह समझना बेहद जरूरी है। जरूरी है अपनी सोच और विचारधारा को वैचारिक प्रदूषकों से बचाकर रखें।

जीवन में हमेशा याद रखी जानी चाहिए कि जीवन में बहुत सारी बातें समय के पहले समझ में नहीं आती हैं। जीवन का तर्जुबा समय के साथ ही समझ में आता है, इसके लिए चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लीजिए। कई बार इंसान छोटी-छोटी ऐसी गलतियां करता है, जिसके लिए बुद्धिमता की जरूरत ही नहीं होती है। बहुत छोटी बातें मगर कुछ महत्वपूर्णं बातें, वे बातें जो व्यक्ति को 55 की उम्र के बाद समझ में आती हैं, जीवन की असली समझदारी की बातें होती हैं। फिर इंसान अक्सर सोचता है कि यदि यही बातें उसे 25 की उम्र में समझ में आ गई होतीं तो उसकी जिन्दगी कुछ अलग ही होती ? लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

बेहतर जीवन और जीवन को बेहतर ढ़ंग से जीने के लिए दिलचस्प एवं उपयोगी बातें तथा जानकारियां पढऩी, सुननी चाहिए। अच्छे एवं बेहतर लोगों से मिलने रहना चाहिए। तरह-तरह के लोगों से मिलते जुलते रहने से इंसान को तमाम तरह के खट्टे-मीठे अनुभव सीखने को मिलते हैं। जीवन की असली समझ यही होती है। यहीं से जीवन को सीख मिलती है। यहीं से जीवन संवरता है। यहीं से जीवन में समझदारी आती है।

कोविड-19 के ढाई-तीन साल गुजर जाने के बावजूद कोरोना का खौफ गया नहीं है, कहा जाये कि जा नहीं रहा है। रह-रह कर कोरोना के मामले आते जा रहे हैं, जिससे लोगों की चिंताएं खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि कोरोना के नाम पर कई लोग, कंपनियां, सरकारें लोगों को जिस तरह से हिदायतें, नसीहतें दे रहीं हैं, इससे भी लोगों में भय, खौफ, डर का माहौल बना हुआ है।

इधर कोरोना कालखण्ड के बाद लोगों में ’पोस्ट कोविड साईड इफेक्ट’ भी देखने को मिल रहे हैं। तरह-तरह के मनोरोग एवं मानसिक विकृतियां उभर कर सामने आ रहे हैं। लोगों की मानसिक स्थितियां बिगड़ रहीं हैं। छोटी-छोटी और बेमतलब की बातों के लिए लोग आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठा रहे हैं। पिछले दो-तीन सालों में आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ीं हैं। लोगों की सहनशीलता तेजी से कम होती जा रही है। कई लोग इसे कोरोना के साईड इफेक्ट के तौर पर देखते हैं, तो कई लोगों का मानना है कि लोगों की अति महात्वाकांक्षाएं इसके लिए जिम्मेदार हैं। कारण जो भी हों, लेकिन परिणाम दुखद एवं अस्वीकार्य है। किसी भी परिस्थिति में इस तरह की घटनाओं से बचने एवं अपने आस-पास के लोगों को बचाने की जरूरत है।

पिछले कुछेक महिनों या कहें सालों से दुर्घटनाओं की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। सडक़ दुर्घटनाएं इतनी बड़ी संख्या में होने लगी हैं कि रोज-रोज हजारों लोगों की मौत सडक़ दुर्घटनाओं से होने लगी है। इसकी अनेकों वजह हो सकती हैं और हैं, लेकिन इसकी सबसे बड़ी वजह वैयक्तिक लापरवाही, जल्दबाजी एवं नासमझी है। दरअसल में हम बहुत कुछ, बल्कि सब कुछ बहुत जल्दी और दूसरों से पहले पा लेना चाहते हैं। इसी तरह की सोच एवं महात्वाकांक्षाओं की वजह से आत्महत्याएं एवं दुर्घटनाएं लगातार बढ़ी हैं, बढ़ती जा रहीं हैं, जिन्हें रोका जा सकता है। इस तरह की घटनाओं को हर हाल में रोका जाना चाहिए।

दरअसल में लोग जिन्दगी को वीडियो गेम, किताबी कहानी, टीवी धारावाहिक अथवा फिल्म समझने लगे हैं, हकीकत यह है कि जीवन इस तरह की फंतासियों से नहीं चलता है, कहा जाये कि जीवन वीडियो गेम, किताबी कहानी, टीवी धारावाहिक अथवा फिल्म नहीं होती है। जीवन में यह समझने की जरूरत है कि जीवन में हर समय अपनी भावनाओं पर विश्वास करना खतरनाक भी हो सकता है। भावनाओं से जिंदगी नहीं चलती है। जीवन को बेहतर बनाने के लिए हकीकतों का सामना करना पड़ता है। जीवन की वास्तविक सच्चाईयों से गुजरना होता है, और हकीकत एचं सच्चाई कई बार बहुत कड़वे होते हैं।

आजकल लोगबाग अक्सर अपनी खूबियों एवं हुनर को जाने-परखे बगैर हर क्षेत्र में भाग्य आजमाना चाहते हैं। उस फील्ड या क्षेत्र में भी अपनी धाक जमाना चाहते हैं, जहां उनकी कोई दक्षताएं या क्षमताएं नहीं होती हैं, लिहाजा निराशा हाथ लगती है। ध्यान रखने की आवश्यकता है कि यदि मैं शतरंज का अच्छा खिलाड़ी नहीं हूं तो मुझे शतरंज के बजाय दूसरा वो खेल खेलना चाहिए जो मैं जानता हूं। आजकल लोग पसंद को कॅरियर बनाना चाहते है, बगैर सोच समझे कि इस पसंद में रूचि या दक्ष्ता कितनी है ? यदि मैं केवल इसलिए शंतरंज खेलना चाहता हूं कि मुझे शतरंज खेलना पसंद है, तो यह मेरी मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है, और मुझे इसमें कभी भी बड़ी सफलता नहीं मिल सकती है।

याद रखिए, जिदंगी में हमें हमेशा असहज, असामान्य, असाधारण बुद्धि की जरूरत होती है जो कि हमें असामान्य एवं असाधारण विचारों, अनुभवों, असामान्य लोंगों से मिलती है ? ऐसा कतई नहीं है और ऐसा सोचना भी कतई जरूरी नहीं है। बहुत सामान्य तरीके से बहुत सहज तरीके से भी जीवन को बहुत अच्छे से जीया जा सकता है। कम महात्वाकांक्षाओं के साथ, कम जरूरतों के साथ, बहुत साधारण तरीके से जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

नव वर्ष 2023 की शुभकामनाएं। जीवन को समय की निरर्थक भागदौड़ एवं गैरजरूरी आपाधापी से बचाकर अपनी तरह से, अपने तरीके से, अपनी दक्षताओं, अपनी सीमाओं और मर्यादाओं के साथ जीने का संकल्प लें, तो 2023 आपके लिए भी यादगार हो सकता है। दुनिया की महात्वाकांक्षी भागदौड़ और सबकुछ पा लेने की अंधी होड़ एवं अंतहीन आपाधापी से बचने की जरूरत है, जिससे जीवन को बचाया जा सके, तभी जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

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