अंतरराष्ट्रीय

दुनियाभर में इसके एक लाख 14 हज़ार से ज़्यादा सदस्य हैं. सबसे आखिरी में जुड़ने वालों में से एक हैं- तीन साल के ब्रितानी लड़के टेडी हॉब्स, जो दो साल की उम्र में खुद से पढ़ना सीखने लगे.
मेन्सा में एंट्री के लिए उम्र बाधा नहीं बनती, इस बात से भी फ़र्क नहीं पड़ता कि आप किस धर्म या देश से हैं, कितने पैसे वाले हैं या फिर क्या काम करते हैं.
इसमें शामिल होने के लिए एक ही शर्त है, जिसे ज़्यादातर लोग नहीं पूरी कर पाते, यहां दाखिले के लिए इंटेलिजेंस टेस्ट में 98 पर्सेंटाइल जरूरी है.
मेन्सा के संस्थापकों के मुताबिक ये 'गिफ़्टेड लोगों' की दुनिया की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो कि एक बेहतर सामाजिक और बौद्धिक वातावरण बनाने में मदद करती है.
इसे रॉयल बेरिल नाम के वकील और वैज्ञानिक और वकील लांस वेयर ने 1946 में बनाया था. दोनों एक ट्रेन के सफ़र के दौरान मिले थे और दोनों के बीच बौद्धिक कनेक्शन तुरंत कायम हो गया था.
संस्था को शुरुआत में "द हाई आईक्यू क्लब" के नाम से जाने जाता था लेकिन बाद में इसे बदल कर 'मेन्सा' कर दिया जो एक लैटिन शब्द है. इसका मतलब है टेबल. ये नाम पसंद आया क्योंकि इसका मतलब है कि सभी लोग एक साथ एक दूरी पर बैठें.
कई दूसरी सर्विसेज़ के अलावा हाई आईक्यू वाले बच्चों को मेन्सा सपोर्ट करती है. ये उन परिवार या शिक्षकों को राह दिखाती है जिनके पास बच्चों को पहचान कर इन्हें सही रास्ता दिखाने की क्षमता नहीं है.
मेन्सा की अध्यक्ष ज़ेविअर गोनज़ालेज़ रिक्यून्को ने बीबीसी मुंडो को बताया कि कुछ बच्चों के लिए उनका 'गिफ़्टेड' होना ही दुखी होने का कारण बन जाता है.
रिक्यून्को को स्कूल में काफ़ी परेशान किया गया, क्योंकि वो अलग थीं, लेकिन उनके परिवार को इस बारे में नहीं पता था.
वो कहती हैं, "आपको ऐसा लगने लगता है कि आपके माता-पिता को कुछ भी पता नहीं है. मैंने अपने माता-पिता को अच्छे नंबर दिए, उन्होंने मुझे गाल पर या माथे पर किस दिया और फिर मैंने वैसा ही किया."
वो कहती हैं, "मुझे लगता था कि किसी बस के नीचे आकर मर जाऊं."
रिक्यून्को अकेली 'गिफ़्टेड' बच्ची नहीं थीं, जिन्हें स्कूल में परेशान किया गया.
मेन्सा के एक और फ़ाउडर बेरिल कहते हैं उन्हें फ्रेनेलॉजी पढ़ने का मन था. ये एक सूडो साइंटिफ़िक थ्योरी है जो कहती है कि खोपड़ी का आकार इंटेलिजेंस पर निर्भर करता है.
आईक्यू टेस्ट को स्टडी करने वाले इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते थे. उन्होंने बेरिल को बताया कि वो दुनिया के स्मार्ट लोगों में टॉप एक पर्सेंट में आते हैं. बेरिल रोने लगे थे, पहली बार उन्हें किसी ने बताया था कि वो किसी काम में अच्छे हैं.
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मेन्सा
क्यों ख़ास है मेन्सा
ग्रुप से जुड़े कई लोगों का मानना है कि ये उनके खुद पर भरोसे के लिए बहुत अहम है क्योंकि कई विलक्षण प्रतिभा के लोगों के लिए समाज में फ़िट बैठना मुश्किल हो जाता है.
मेन्सा अपने सदस्यों के किए कॉन्फ्रेंस करता है, लेकिन साथ ही उन्हें अपने लायक काम करने में मदद करता है. ग्रुप के लोगों को एरोनॉटिक्स, कॉमिक्स, डाइविंग या इजिप्टोलॉजी जैसी चीज़ों में मज़ा आता है.
एसोसिएशन के अलग-अलग देशों में ग्रुप हैं. इसका हिस्सा बनने के लिए आपको एक इंटेलिजेंस टेस्ट देना होता है जिसमें आपको यह दिखाना होता है कि आपका इंटेलिजेंस कोशेंट (आईक्यू) सामान्य आबादी के शीर्ष 2% के भीतर है. जैसे कि वेक्सलर स्केल पर 131 के बराबर या उससे अधिक आईक्यू, स्टैनफोर्ड-बिनेट स्केल पर 133 या कैटेल स्केल पर 149 होने के बराबर.
सभी राष्ट्रीय क्लब बच्चों को प्रवेश नहीं देते हैं. कुछ स्पैनिश क्लब की तरह, इसका हिस्सा बनने के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित करते हैं. ब्रिटिश क्लब जिसमें टेडी शामिल हैं. जिन्होंने दो साल की उम्र में अपने दम पर पढ़ना सीखा. वो पहले से ही जानते हैं कि छह अलग-अलग भाषाओं में 100 तक कैसे गिनते हैं.
कम उम्र से पढ़ना सीखना, साथ ही एक असामान्य स्मृति या दुर्लभ शौक और रुचियां, कुछ ऐसे व्यवहार हैं जो उच्च क्षमता वाले बच्चों में होते है. मेन्सा इसे समझते हैं.
बीबीसी
इन बच्चों की पहचान कैसे होती है. इन बच्चों में वयस्कों के साथ समय बिताने या अकेले काम करने, सेंस ऑफ़ ह्यूमर, बहुत सारे प्रश्न पूछने, हमेशा नियंत्रण में रहने की ज़रूरत, या खेलों के लिए नए नियमों का आविष्कार करने की क्षमताएं हो सकती हैं.
हालांकि, टेडी मेन्सा में शामिल होने वाले सबसे कम उम्र के बच्चे नहीं हैं. पिछले साल जुलाई में, अमेरिका के केंटकी की ढाई साल की बच्ची इस्ला मैकनाब को मेन्सा अमेरिका ने शामिल किया था.
हालांकि इसके अधिकांश सदस्यों के बारे में जानकारी मौजूद नहीं है. मेन्सा के रिकॉर्ड में कुछ मशहूर हस्तियां हैं, जैसे कि विज्ञान कथा लेखक आइसैक असिमोव या अमेरिकी अभिनेत्री गीना डेविस. (bbc.com/hindi)