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हॉकी वर्ल्ड कप: नवीन पटनायक और ओडिशा को 11 सौ करोड़ के 'मेगा शो' से क्या मिला
31-Jan-2023 8:34 AM
हॉकी वर्ल्ड कप: नवीन पटनायक और ओडिशा को 11 सौ करोड़ के 'मेगा शो' से क्या मिला

-वात्सल्य राय

भुवनेश्वर में रविवार रात खेले गए हॉकी वर्ल्ड कप के रोमांचक फ़ाइनल में बहुत से लोगों का दांव डिफेंडिंग चैंपियन बेल्जियम पर था.

जर्मनी की टीम से जीत आस रखने वाले भी कम नहीं थे. दरअसल, भारतीय फैन्स का रुझान लगातार बदल रहा था. अधिकांश का समर्थन 'अच्छा खेल' दिखाने वाली टीम के साथ था.

फ़ाइनल में मेजबान (भारतीय) टीम नहीं थी और घरेलू दर्शक सिर्फ़ 'अच्छी हॉकी' को सपोर्ट कर रहे थे. यानी वो बेल्जियम और जर्मनी दोनों टीमों का समर्थन कर रहे थे और आखिर में रोमांचक मुक़ाबले में जर्मनी ने बेल्जियम से वर्ल्ड कप छीन लिया.

राज्य के सत्ताधारी बीजू जनता दल (बीजेडी) के सांसद और ओडिया फ़िल्मों के लोकप्रिय अभिनेता प्रशांत नंदा हॉकी के लिए ओडिशा की ऐसी दीवानगी की वजह बताते हैं.

वो कहते हैं, "हॉकी ओडिशा के सब लोगों के दिल में बसी हुई है."

ये बात कोई अजूबा नहीं है. हॉकी के लिए कभी पूरे हिंदुस्तान दिल का धड़कता था. क्रिकेट को 'धर्म' का दर्जा हासिल होने के पहले हॉकी की धमक घर घर तक थी.

कई जानकार इसे लेकर भी हैरान नहीं हैं. वो कहते हैं कि ओडिशा और हॉकी के बीच एक 'स्पेशल रिश्ता' है और नवीन पटनायक इसे बखूबी समझते हैं.

ओडिशा के प्रमुख अख़बार प्रमेय के ग्रुप एडिटर गोपाल कृष्ण महापात्रा कहते हैं, "ओडिशा से हॉकी के 69 अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकले हैं. इनमें महिला और पुरुष दोनों खिलाड़ी शामिल हैं. राउरकेला और सुंदरगढ़ ज़िले में लोग हॉकी के अलावा कुछ और नहीं खेलते हैं, अगर एक बच्चा दौड़ने के लायक हो गया तो वो हॉकी ही खेलेगा."

2023 वर्ल्ड कप में खेली भारतीय टीम में भी उपकप्तान अमित रोहिदास समेत ओडिशा के दो खिलाड़ी थे. भारतीय टीम उम्मीद के मुताबिक नहीं खेली और टूर्नामेंट में नवें नंबर पर रही.

लेकिन लगातार दूसरी बार वर्ल्ड कप का आयोजन करने वाली नवीन पटनायक सरकार के प्रयासों की दुनिया भर से आई टीमों, खिलाड़ियों और दर्शकों ने सराहना की.

कई लोगों की राय में ये एक 'मेगा शो' था जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा. 13 से 29 जनवरी तक खेले गए वर्ल्ड कप के लिए राज्य सरकार ने भुवनेश्वर, राउरकेला और कटक समेत कई शहरों की सूरत बदल दी.

ओडिशा की दुनिया में नई पहचान
एयरपोर्ट, स्टेडियम, सड़कें और दीवारों लेकर पेड़ पौधे तक को सजाया गया. हॉकी वर्ल्ड कप को केंद्र में रखकर कई फेस्टिवल आयोजित किए गए.

आयोजन से जुड़े अधिकारी और बीजेडी के नेता कहते हैं कि इसके पीछे एक ही बड़ा मक़सद था, दुनिया के नक्शे पर ओडिशा की नई पहचान बनाना.

बीजेडी सांसद प्रशांत नंदा कहते हैं, " ये (आयोजन) दुनिया को मैसेज देने के लिए हुआ, आप जैसा सोचते हैं ओडिशा अब वैसा नहीं रहा. ये राज्य बदल चुका है. इस राज्य के पास अब हॉकी वर्ल्ड कप होस्ट करने का हौसला है."

नंदा ने 'हौसला' शब्द का प्रयोग बेमतलब नहीं किया. दरअसल, हॉकी वर्ल्ड कप जैसे प्रतिष्ठित खेल आयोजन की मेज़बानी ओडिशा के लिए आसान नहीं मानी गई थी.

साल 2018 में ओडिशा ने जब पहली बार वर्ल्ड कप आयोजन किया था तब सारे मैच भुवनेश्वर में खेले गए थे. उस समय राज्य में अंतराष्ट्रीय सुविधा वाला कोई दूसरा स्टेडियम नहीं था. अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों और बाहर से आने वाले दूसरे मेहमानों को ठहराने की 'वर्ल्ड क्लास सुविधा' वाली ज़्यादा जगहें नहीं थी.

लेकिन पांच साल में बहुत कुछ बदल गया है. 2023 में हॉकी वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने आई विदेशी टीमों को भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम की स्थिति पहले से कहीं बेहतर मिली तो राउरकेला में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हॉकी स्टेडियमों से एक 'बिरसा मुंडा हॉकी स्टेडियम' में खेलने का मौका भी मिला.

1100 करोड़ का खर्च
रिकॉर्ड समय में तैयार इस स्टेडियम का उद्घाटन वर्ल्ड कप के ठीक पहले किया गया. वर्ल्ड कप पर नज़र रखने वालों का दावा है कि स्टेडियम और दूसरी सुविधाओं के लिए पैसे को बाधा नहीं बनने दिया गया.

गोपाल कृष्ण महापात्रा कहते हैं, " इस बार वर्ल्ड कप आयोजन पर 11 सौ करोड़ रुपये से भी ज़्यादा खर्च हुआ है. साल 2018 में ओडिशा सरकार ने बड़ी जल्दीबाज़ी में आयोजन किया था. तब भारत का दूसरा कोई भी राज्य मेजबानी के लिए तैयार नहीं हुआ था."

साल 2018 में वर्ल्ड कप आयोजन पर कुल खर्च 67 करोड़ से कुछ ज़्यादा हुआ था.

इस बार खर्च कई गुना बढ़ने के सवाल पर महापात्रा कहते हैं, " ओडिशा में राउरकेला हॉकी का केंद्र है लेकिन वहां सुविधाएं नहीं थीं. 11 सौ करोड़ रुपये की रकम का बड़ा हिस्सा वहां एक बड़ा सा स्टेडियम बनाने में खर्च हुआ. बिरसा मुंडा स्टेडियम. मैं गया था वहां, बहुत अच्छा स्टेडियम है, 21 हज़ार दर्शकों की क्षमता है. सिर्फ उतना ही नहीं साथ में एयरपोर्ट भी बन गया है."

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लगातार दूसरी बार वर्ल्ड कप आयोजन से मिली चर्चा से उत्साहित ओडिशा के अधिकारी दावा करते हैं कि ये राज्य देश की खेल राजधानी बनने की दिशा में बढ़ रहा है.

वो कहते हैं कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की सोच साफ़ है, "खेलों में निवेश का मतलब है युवाओं में निवेश और युवाओं में निवेश करने का मतलब है भविष्य में निवेश."

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भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान और हॉकी इंडिया के प्रेसिडेंट दिलीप तिर्की के मुताबिक राज्य सरकार ने साल 2018 में बड़ा फैसला लिया था.
सरकार ने 10 खेलों के 11 हाई परफ़ोर्मेंस सेंटर बनाने का एलान किया.
ओडिशा सरकार 690 करोड़ से ज़्यादा रकम खर्च करके 89 इनडोर स्टेडियम बना रही है.
ओडिशा सरकार भारतीय पुरुष और महिला टीम की प्रायोजक है.
जानकारों का दावा है कि सरकार खेलों में बड़े निवेश के जरिए प्रदेश की आर्थिक स्थिति भी सुधारना चाहती है.
गोपाल कृष्ण महापात्रा कहते हैं, " आप कह सकते हैं कि ओडिशा की ब्रांड बिल्डिंग के लिए, इमेज बिल्डिंग के लिए और सारे विश्व को इससे परिचित कराने के लिए ये एक जरिया है. मैं समझता हूं कि ओडिशा सरकार का लक्ष्य है कि बिजनेस प्रमोट हो. वर्ल्ड कप 2 (2023 में हुआ आयोजन) से ये लक्ष्य हासिल हो सकता है."

पर्यटन उद्योग से जुड़े लोग इस दावे को सही बताते हैं. वर्ल्ड कप और दूसरे खेल आयोजनों की वजह से देश विदेश से ओडिशा आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ी है. दूसरे तमाम कारोबार के साथ होटल उद्योग भी इसे लेकर उत्साहित है.

भुवनेश्वर के एक फ़ाइव स्टार होटल के रेजिडेंट मैनेजर मनोज बहुगुणा कहते हैं, "मार्केट पर बहुत फर्क पड़ा है. इंटरनेशनल ट्रेवलर्स का भी मूवमेंट बढ़ा है."

बहुगुणा बताते हैं, " पहले हमारे कमरे 70 से 75 प्रतिशत तक भरे होते थे. अब हमारे 147 कमरों में से 82 से 83 प्रतिशत तक भरे होते हैं. बजट होटल हो, इंटरनेशल चेन्स के होटल हों या फ़ाइव स्टार कैटेगरी के होटल, सबमें ठहरने वालों की संख्या खेलों की वजह से बढ़ी है क्योंकि हर महीने यहां कोई न कोई खेल आयोजन होता है."

वर्ल्ड कप से ओडिशा की छवि निखरी है लेकिन सरकार को कई सवालों का भी सामना करना पड़ा है.

बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद बलभद्र मांझी सवाल करते हैं, " 2018 में खर्चा हुआ था सिर्फ 68 करोड़ और उस समय भी बहुत अच्छे ढंग से आयोजन किया गया था, तो ऐसा क्या कमी रह गई उस समय जो अभी 11 सौ करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा ओडिशा सरकार को."

मांझी पिछले वर्ल्ड कप के वक़्त बीजेडी के ही सांसद थे लेकिन पार्टी बदलने के बाद वो नवीन पटनायक सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं.

हॉकी या हक़?
सवाल कुछ और भी हैं. भुवनेश्वर में रहने वाले रवींद्र कहते हैं कि शहर के 'विकास का सच चमकती दीवारों के पीछे छुपा दिया गया' है.

वो कहते हैं, " जो गरीब लोग यहां (सड़क पर) दुकान लगाए हुए थे. हॉकी वर्ल्ड कप की वजह से उनकी दुकान तोड़ दी गई. ये लोग अभी बेसहारा होकर घूम रहे हैं, उनकी रोजी रोटी चली गई है."

ऐसे सवालों का शोर ज़्यादा नहीं है लेकिन उन्हें अनदेखा भी नहीं किया जा रहा है.

गोपाल कृष्ण महापात्रा कहते हैं, " लोग सवाल पूछ रहे हैं कि सबसे अहम मुद्दा क्या है, रोज़गार, खाना पीना, रहना सहना या वर्ल्ड कप. सब बोल रहे हैं हॉकी या हक? बहुत सारी झोपड़पट्टियां, बहुत सारे स्ट्रीट बाज़ार को ध्वस्त कर दिया गया. सौंदर्यीकरण के नाम पर गरीब लोगों को शहर से निकाल दिया गया. आज भुवनेश्वर सिटी से बाहर जाएंगे तो उन्हें देख पाएंगे, शहर के अंदर नहीं देख पाएंगे."

आलोचकों का ये भी कहना है कि हॉकी वर्ल्ड कप के सहारे मुख्यमंत्री नवीन पटनायक सिर्फ़ अपना प्रमोशन कर रहे हैं. वर्ल्ड कप को लेकर जिनते भी होर्डिंग लगे, उनमें किसी खिलाड़ी की तस्वीर नहीं थी. सिर्फ़ मुख्यमंत्री या फिर टूर्नामेंट के मस्कट की तस्वीर लगाई गई थी.

हालांकि, पटनायक के करीबियों का दावा है कि मुख्यमंत्री को ख़ुद को प्रमोट करने की ज़रूरत नहीं है. वो अपने काम से दुनिया में पहले ही अलग पहचान बना चुके हैं.

प्रशांत नंदा कहते हैं, " ओडिशा में चक्रवाती तूफ़ान आते रहते हैं. हर साल दो तीन तूफ़ान आते हैं. आज पूरी दुनिया में उनकी चर्चा है कि वो 'ज़ीरो डेथ' के लिए काम करते हैं. ये क्या छोटी बात है? 1999 में जब सुपर साइक्लोन आया था तब यहां 10 हज़ार लोगों की मौत हुई थी. तब नवीन पटनायक यहां आए नहीं थे. वो साल 2000 में मुख्यमंत्री बने."

नंदा कहते हैं, "मुख्यमंत्री मानते हैं कि स्कूल भी अच्छा होना चाहिए. पढ़ाई की जगह अच्छी होनी चाहिए. वो ये सब कर रहे हैं. राज्य के जितने मंदिर हैं, वो सौ साल से ऐसे ही पड़े थे, देखिए, जगन्नाथ जी का मंदिर आज कितना चमक रहा है."

बहाल होगा हॉकी का गौरव?
हॉकी को खास तवज्जो देने के सवाल पर प्रशांत नंदा कहते हैं, " हम हॉकी को प्यार करते हैं. हॉकी को चाहते हैं. दिल से ये भी चाहते हैं कि भारत में हॉकी को उसका पुराना गौरव मिले, अगर ये काम नवीन जी कर रहे हैं तो क्या ग़लत कर रहे हैं?"

मौजूदा वर्ल्ड कप में भारतीय टीम भले ही क्वार्टर फ़ाइनल में भी न पहुंच पाई हो लेकिन आयोजन से जुड़े लोग याद दिलाते हैं कि टूर्नामेंट में टीम ने सिर्फ़ एक ही मैच गंवाया.

वो 41 साल बाद भारतीय हॉकी टीम को ओलंपिक में मिले मेडल के ज़िक्र के साथ सवाल करते हैं कि इसका श्रेय किसे मिलना चाहिए?

प्रशांत नंदा इससे आगे बढ़कर मुख्यमंत्री पटनायक के मिशन को ओडिशा के इतिहास और सांस्कृतिक गौरव से जोड़ देते हैं.

वो कहते हैं, " क्या ओडिशा का इतिहास किसी ने पढ़ा नहीं है? ओडिशा का इतिहास ऐसा है कि जब कलिंग युद्ध में अशोक सब ध्वस्त करके चले गए फिर भी इधऱ से खारवेल निकला और सारे भारत को जीता."

प्रशांत नंदा आगे कहते हैं, " (मुख्यमंत्री) नवीन (पटनायक) बाबू ने बोला, ये हमारा ही खेल है. इसे राष्ट्रीय खेल मानते रहे हैं. ओलंपिक में इस खेल ने हमें कई मेडल दिए. तो इसे क्यों भूलें. क्यों न इसे दोबारा खड़ा करें."

उनके मुताबिक ओडिशा इसी मक़सद के लिए काम कर रहा है. (bbc.com/hindi)

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