सामान्य ज्ञान

अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। अग्नि पुराण में अग्निदेव ने ईशान कल्प का वर्णन महर्षि वशिष्ठ से किया है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्व है। इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएं, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मंत्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का प्रतिपादन किया गया है।
आधुनिक उपलब्ध अग्निपुराण के कई संस्करणों में 11 हजार 475 श्लोक है एवं 383 अध्याय हैं, परन्तु नारद पुराण के अनुसार इसमें 15 हजार श्लोकों तथा मत्स्यपुराण के अनुसार 16 हजार श्लोकों का संग्रह बतलाया गया है। अग्निपुराण में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है।