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2030 तक खत्म होने की बजाय दोगुनी हो जाएगी गरीबी
12-Mar-2023 4:13 PM
2030 तक खत्म होने की बजाय  दोगुनी हो जाएगी गरीबी

 रिचर्ड महापात्रा
सतत विकास लक्ष्य-1 के तहत 2030 तक दुनियाभर से गरीबी का उन्मूलन करना है लेकिन इससे आठ साल पहले दुनिया गरीबी के विरुद्ध छेड़े गए युद्ध में हताशा भरी स्थिति में पहुंच गई है। इसके अलावा यह भी निश्चित नहीं है कि दुनिया कब तक कुल आबादी के मुकाबले चरम गरीबी में रह रहे लोगों की संख्या को तीन प्रतिशत की निर्धारित सीमा तक रख पाएगी।

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इसके विपरीत विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट ‘पॉवर्टी एंड शेयर्ड प्रॉस्पेरिटी 2022 : करेक्टिंग कोर्सेस’ कहती है कि मौजूदा परिस्थितियों में सबसे गरीब व विकासशील देशों के उप सहारा अफ्रीका और ग्रामीण इलाकों से गरीबी का उन्मूलन लगभग असंभव है।
विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी और वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक गरीबी पर पडऩे वाले प्रभाव का विस्तार से आकलन किया गया है।

महामारी से पहले लगातार पांच वर्षों तक गरीबी उन्मूलन की दर लगातार घट रही थी। महामारी ने जहां जीवनभर का आर्थिक झटका दिया, वहीं युद्ध ने ऊर्जा और खाद्य की कीमतों को उछालकर हालात बदतर कर दिए। इससे गरीब और गरीब हो गए। उन्हें उम्मीद थी कि महामारी के बाद हालात सुधरेंगे, लेकिन तभी यूक्रेन-रूस युद्ध छिड़ गया।

खाद्य और ऊर्जा के मूल्य में उछाल के साथ चरम मौसम की घटनाओं ने कृषि को बुरी तरह प्रभावित किया। साथ ही आपदाओं ने संपत्ति और आय का बंटाधार कर दिया। इन तमाम घटनाक्रमों ने हालात में सुधार को केवल असंभव ही नहीं बनाया है बल्कि लोगों को लंबे समय के लिए गरीबी की दलदल में पहुंचा दिया है।

नतीजतन, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद गरीबी से खिलाफ छिड़ी जंग को सबसे बड़ा झटका लगा है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘इन झटकों ने गरीबी उन्मूलन की ट्रजेक्टरी को बदलकर उसे बड़ा और लंबा बना दिया। 2030 तक चरम गरीबी खत्म करने का लक्ष्य पथ से भटक गया है।’
महामारी ने 2020 में सात करोड़ अतिरिक्त लोगों को गरीबी में पहुंचा दिया है। इसका नतीजा यह निकला कि करीब 71.9 करोड़ अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे चले गए। ये लोग 2.15 डॉलर प्रतिदिन पर गुजर बसर कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो गरीबी की दर 2019 की 8.4 प्रतिशत से बढक़र 9.3 प्रतिशत हो गई है।

भले ही दुनिया इस वक्त महामारी से उबर रही है लेकिन युद्ध के चलते 68.5 करोड़ लोग 2022 के अंत तक चरम गरीबी के स्तर पर पहुंच जाएंगे। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है, ‘दुनिया की 7 प्रतिशत आबादी यानी 57.4 करोड़ लोग 2030 तक चरम गरीबी से जूझ रहे होंगे।’ यह सतत विकास लक्ष्य-1 में निर्धारित 3 प्रतिशत की दर के मुकाबले दोगुना से भी अधिक है।

महामारी के कारण असमानता भी खाई भी चौड़ी हो गई है। यह पिछले कई दशकों के चलन के विपरीत है। महामारी से रिकवरी की तरह ही गरीबी में सुधार भी असमान है।
 

विकासशील व गरीब देशों ने गरीबों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि की है और इन्हीं देशों में गरीबी की स्तर बदतर हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘सबसे गरीब लोगों ने महामारी की सबसे बड़ी कीमत चुकाई है। उनकी आय में 4 प्रतिशत के औसत के मुकाबले 40 प्रतिशत का नुकसान हुआ है। इसी तरह अमीरों की आय के वितरण में 20 प्रतिशत नुकसान के मुकाबले दोगुना नुकसान गरीबों को हुआ है।’

इस स्थिति को बैंक ने अपने अनुमान में चिंताजनक बताया है। उसके अनुसार, ‘नीति निर्माताओं को अब कठोर पर्यावरण का सामना करना पड़ रहा है। चरम गरीबी उप सहारा अफ्रीका, संघर्षरत क्षेत्रों और ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है, जहां से इसे खत्म करना बेहद मुश्किल है।’
उदाहरण के लिए उप सहारा अफ्रीका में दुनिया की सबसे अधिक 35 प्रतिशत गरीबी की दर है और यहां दुनिया की 60 प्रतिशत चरम गरीब आबादी बसती है। सतत विकास लक्ष्य-1 को 2030 तक पूरा करने के लिए यहां के प्रत्येक देश की विकास दर अगले आठ वर्षों तक 9 प्रतिशत होनी चाहिए। मौजूदा स्थितियों में यह असंभव प्रतीत होता है, खासकर यह देखते हुए महामारी से पहले यहां की विकास दर दो प्रतिशत से भी कम थी। (डाऊन टू अर्थ)

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