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​गुवाहाटी: रेलवे स्टेशन पर खुला पहला ट्रांसजेंडर टी स्टॉल, चलाने वाली बोलीं 'सम्मान की है लड़ाई'
19-Mar-2023 4:23 PM
​गुवाहाटी: रेलवे स्टेशन पर खुला पहला ट्रांसजेंडर टी स्टॉल, चलाने वाली बोलीं 'सम्मान की है लड़ाई'

DILIP SHARMA/BBC

दिलीप कुमार शर्मा

गुवाहाटी 19 मार्च। इस महीने 10 मार्च को गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर बड़ी संख्या में ट्रांसजेंडर सज-धज के पहुंचे थे. मौक़ा था एक चाय के स्टॉल के उद्घाटन का.

ट्रेन पकड़ने की जल्दी में स्टेशन पहुंच रहे यात्री भी थोड़ा रुक कर ट्रांस टी स्टॉल नामक इस चाय स्टॉल को निहार रहे थे, क्योंकि अक्सर जो ट्रांसजेंडर ट्रेन के डिब्बे में ताली बजाकर पैसा मांगते दिखते है वो लोग अब चाय बेच रहे हैं.

उस रोज़ वहां पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के महाप्रबंधक अंशुल गुप्ता समेत रेलवे प्रशासन के कई बड़े अधिकारी भी मौजू़द थे.

दरअसल गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर ट्रांसजेंडर लोगों द्वारा विशेष रूप से चलाया जा रहा एक चाय का स्टॉल इन दिनों सुर्खियों में है.

ऐसा दावा किया जा रहा है कि असम का राजधानी शहर गुवाहाटी अब भारतीय रेलवे का पहला स्टेशन बन गया है जहां ट्रांसजेंडर चाय बेचते नजर आ रहे हैं.

'बसों में हमारे साथ कोई बैठना नहीं चाहता'

27 साल की ट्रांसजेंडर रानी पिछले कई दिनों से इस चाय के दुकान पर बिना आराम किए काम कर रही है.

वो कहती है, "लोग बड़े अनादर के साथ हमसे बात करते हैं, हमें छेड़ते हैं और अपशब्द कहते हैं. लेकिन चाय स्टॉल में आने वाले लोग बड़ी इज्ज़त के साथ बाइदो (असमिया भाषा में बड़ी बहन) कहकर बात करते है. वो लोग हमसे चाय ख़रीद रहे हैं. हम ट्रांसजेंडर समूचे समाज से ऐसा सम्मान चाहते हैं."

वो कहती हैं, "बसों की सीटों पर महिला-पुरुष लिखा रहता है लेकिन हमारे लिए वहां अलग सीट नहीं होती. हम लोग ज़्यादातर महिला वाली सीट पर ही बैठते हैं. लेकिन जब महिलाओं की सभी सीट भरी रहती है तो हम कई बार पुरुषों वाली सीट पर भी बैठ जाते है. लेकिन उसके बाद हमारे बगल की खाली सीट पर कोई नहीं बैठता."

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रानी कहती हैं, "हमें कोई नौकरी पर नहीं रखता. हम अच्छे मकान में रहना चाहते हैं लेकिन हमें कोई भी अपना घर किराए पर नहीं देता."

"हमें हर जगह से भगा दिया जाता है. इसलिए हमारे ज़्यादातर लोग गंदगी वाले इलाक़ों में गुज़र-बसर करते है. हमें इन सारे अधिकारों के लिए अभी लंबी लड़ाई लड़नी होगी."

ऑल असम ट्रांसजेंडर एसोसिएशन के प्रयास से गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर यह टी स्टॉल खोला गया है. एसोसिएशन ने रानी समेत कुछ ट्रांसजेंडर को इस स्टॉल को चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी है.

असम में ट्रांसजेंडर एसोसिएशन के अंतर्गत क़रीब 25 हज़ार सदस्य हैं और इनमें ज़्यादातर लोग ट्रेनों, बसों और दुकानों में जाकर भीख मांगते है.

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ट्रांस टी-स्टॉल चलाने वाली रानी

ट्रांस टी-स्टॉल चलाने वाली रानी

'सरकार मदद करेगी तो जीविका चला लेंगे'

ऐसे ही एक सवाल का जवाब देते हुए रानी कहती है, "भीख कौन मांगना चाहता है. जिस तरह रेलवे ने चाय स्टॉल खोलने में हमारी मदद की है अगर सरकार भी हमारे समुदाय की मदद करे तो हम सब काम करके अपनी जीविका चला सकते है. हममें से ज़्यादातर लोग अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए क्योंकि समाज के डर के कारण घरवालों ने हमारा साथ छोड़ दिया. हममें से अधिकतर ने कम उम्र में घर छोड़ दिया था."

"मैंने 10 साल की उम्र में घर छोड़ा, उसके बाद यही एक रास्ता बचा था. समाज का एक बड़ा वर्ग आज यही सोच रखता है कि किन्नर या हिजड़ा लोग ताली बजाकर खाएंगे. हमारे देश में पुरुषों और महिलाओं को जो अधिकार मिले हुए हैं क्या वो हम ट्रांसजेंडरों को नहीं मिलना चाहिए? हमारे समुदाय में बुज़ुर्ग हैं जो भीख मांगने भी नहीं जा सकते. हम सबको सरकार और समाज से मदद की ज़रूरत है."

रेलवे प्लेटफार्म पर चाय स्टॉल चलाकर रानी बहुत खुश हैं क्योंकि उन्हें इतना सम्मान पहले कभी नहीं मिला.

रानी की मानें तो उनका टी-स्टॉल अच्छा चल रहा है और लोग ट्रांस टी-स्टॉल से चाय या फिर खाने-पीने का सामान खरीदने में किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं बरत रहे.

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पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी सब्यसाची डे ट्रांस टी-स्टॉल को ट्रांसजेंडर समुदाय के उत्थान की ओर एक कदम बताते है.

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पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी सब्यसांची डे ट्रांसजेंडर समुदाय को टी-स्टॉल चलाने के लिए दी गई सुविधा को ट्रांसजेंडरों के सशक्तिकरण के लिए उठाया गया कदम बताते हैं.

उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "हम लंबे समय से इस तरह के उपेक्षित समुदाय की मदद करने की योजना पर विचार कर रहे थे. इस बीच हमारी मुलाकात ऑल असम ट्रांसजेंडर एसोसिएशन के लोगों से हुई. उन्होंने हमसे ट्रांस टी स्टॉल खोलने का प्रस्ताव दिया. हमें भी लगा कि इस दिशा में कुछ किया जाना चाहिए."

"इसके अलावा भारत सरकार ने ट्रांसजेंडरों के लिए "सपोर्ट फॉर मार्जिनलाइज़्ड इंडिविजुअल फ़ॉर लाइवलिहुड एंड इंटरप्राइजेज" नामक एक व्यापक योजना को मंज़ूरी दी है जिसमें ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के कल्याण के लिए व्यापक पुनर्वास की योजना भी है."

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रेलवे अधिकारी डे की मानें तो भारतीय रेल में इस तरह का ये पहला कदम है और रेल प्रशासन अन्य रेलवे स्टेशनों पर भी इस तरह के ट्रांस टी स्टॉल संचालित करने की योजना बना रही है.

इस बीच असम के ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की सहायक उपाध्यक्ष स्वाति बिधान बरुआ ने बताया कि गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर खोले गए ट्रांस टी-स्टॉल से जो भी कमाई होगी उसका एक बड़ा हिस्सा ट्रांसजेंडरों के कल्याण में ख़र्च किया जाएगा.

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रानी कहती हैं कि चाय का स्टॉल चलाने से उनके समुदाय के प्रति लोगों का नज़रिया बदलेगा.

बेहतर जीवन के उम्मीद में ट्रांसजेंडर समुदाय

इतने बड़े समुदाय के कल्याण का काम क्या एक चाय स्टॉल की कमाई से संभव है?

इस सवाल का जवाब देते हुए स्वाति बिधान बरुआ कहती है, "यह संभव नहीं है कि एक चाय के स्टॉल से बहुत से ट्रांसजेंडरों की मदद की जा सके. इस ट्रांस टी-स्टॉल को खोलने का मक़सद यह है कि इससे अन्य क्षेत्रों में भी ट्रांसजेंडरों के लिए जीविका के विकल्प तलाशने के प्रयास हो सके.

"इससे एक और काम होगा. जब लोग रेलवे स्टेशन पर आएंगे और ट्रांसजेंडरों को काम करते हुए देखेंगे तो हमारे समुदाय के प्रति उनका नज़रिया बदलेगा. हम सरकार से भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत एक बेहतर जीवन की उम्मीद लगाए हुए है." 

(bbc.com/hindi)

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