विचार / लेख
शंभूनाथ
आज पुणे विश्वविद्यालय में आया हुआ हूं। बड़ी इच्छा थी कि 1896-97 में सावित्री बाई फुले ने प्लेग महामारी के दौरान इलाज के लिए अपने डॉक्टर बेटे के साथ मिलकर जहां एक मेडिकल क्लिनिक खोला था, वह जगह देखूंगा। कम लोग जानते हैं कि सावित्री फुले का शिक्षा के प्रसार में योगदान के अलावा एक कठिन समय में मेडिकल क्लिनिक खोलने का भी श्रेय है। इसमें सभी जाति के लोग इलाज करा सकते थे। उस समय सामान्य चिकित्सा केंद्रों में छोटी समझी जाने वाली जातियों के बीमार प्रवेश नहीं कर सकते थे। दुखद यह है कि प्लेग के शिकार 10 साल के एक बच्चे को बचाने में खुद सावित्री बाई की जान प्लेग से ही गई थी, उनके बेटे की भी!यह मानव सेवा का एक विरल और मार्मिक उदाहरण है!
मैंने कई लोगों से पूछा, पर उस क्लिनिक का पुणे में कोई चिह्न न था। पुणे में उनके नाम के किसी मेडिकल अस्पताल का भी पता नहीं चला। हर 50 कदम पर मंदिर मिले, अपार भीड़। 19वीं सदी के चमत्कारी स्वामी समर्थ के आश्रम में भक्तों की लाइन देखें! फेसबुक पर आत्ममुग्ध विद्रोह से इस भीड़ का सामना कैसे करेंगे? चित्र देखें।
मैं अब सावित्री बाई द्वारा खोले गए लड़कियों के पहले स्कूल (1848) की खोज में निकला, जो विदेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यह मुझे पुणे में विढुरी सेठ हलवाई के सबसे भव्य गणेश मंदिर के ठीक सामने अति जीर्ण-शीर्ण दशा में मिला। (देखें चित्र)। उसमें ऊपर जाने के लिए बस ढाई फुट की टूटी फूटी सीढ़ी है। किसी ने ऊपर फुले दंपति का चित्र स्मृति के तौर पर रख दिया है। देखें चित्र।
दरअसल सामने के हिस्सों पर दुकानदारों ने कब्जा कर रखा है। भारत में लड़कियों के इस पहले स्कूल को स्मारक बनाने की चिंता किसी को नहीं है। बाजार ने विरासत को ग्रस लिया है!
अभी 10 मार्च को सावित्री फुले की पुण्यतिथि पर फेसबुक पर उनकी काफी प्रशस्ति देखने को मिली थी, जयजयकार! लेकिन वास्तविकता देखकर लगता है कि हमारी स्मृति किस तरह एक सुंदर खंडहर से ज्यादा नहीं है!
फिर शनिवारवाड़ा गया, पेशवाओं का किला! इस बंद विराट दरवाजे को कैसे खोलूं ! ! देखिए, रोशनी नीचे से आ रही है!!!