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चौधरी साहब पीछे देखो !
ओपी चौधरी की गिनती काबिल आईएएस अफसरों में होती रही है। मगर राजनीति में आने के बाद उन निर्देशों को भूल गए, जिसका पालन वो कलेक्टर रहते करते थे। अब उन्हीं निर्देशों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
बात जीएडी के उस आदेश की हो रही है, जिसमें रमजान के मौके पर मुस्लिम कर्मचारियों को एक घंटा पहले घर आने की छूट होती है। उनके लिए मंत्रालय से अलग से बस संचालन होता है। भाजपा नेता चौधरी ने जीएडी के इस आदेश पर कड़ी आपत्ति करते हुए कहा कि सरकार की ऐसी तुष्टिकरण की नीतियों की वजह से सांप्रदायिक विद्वेष फैल सकता है। उन्होंने सरकार के रवैये को भेदभाव वाला निरूपित करते हुए कह गए कि भूपेश सरकार का झुकाव धर्म विशेष के प्रति रहा है।
अब चौधरी जी को कौन समझाए, रमजान के मौके पर मुस्लिम कर्मचारियों को एक घंटा घर आने की छूट का आदेश 2003 से जारी हो रहा है। पहले मंत्रालय डीकेएस भवन में होता था तब उनके लिए अलग से बस संचालन नहीं होता था। मगर नवा रायपुर में शिफ्टिंग के बाद रमजान के मौके पर मुस्लिम कर्मचारियों को घर छोडऩे के लिए अलग से बस का संचालन होने लगा। यह सब रमन सिंह सरकार में भी होता रहा है। तब किसी ने चूं-चपड़ नहीं की। चुनावी साल है, तो अब सरकार के हर फैसले को राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है।
राहुल मामले में ओबीसी दांव
राहुल गांधी पर गुजरात की न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत से हुई सजा और उसके बाद लोकसभा की सदस्यता को रद्द होने पर भाजपा ने खासकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग, ओबीसी के सम्मान के साथ जोड़ दिया। इसकी प्रतिक्रिया में दिए गए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के इस बयान को मीडिया में जगह नहीं मिली कि मोदी समुदाय में बहुत से लोग सामान्य वर्ग से भी आते हैं। स्वराज अभियान के संस्थापक और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने भी कहा सूरत की अदालत में केस दायर करने वाले भाजपा विधायक पूर्णेन्दु मोदी सामान्य वर्ग से हैं। यह भी, कि जिस नीरव मोदी और ललित मोदी पर सवाल किया गया वे भी सामान्य वर्ग से ही हैं। इन तथ्यों के उलट भाजपा ओबीसी सहानुभूति हासिल करने की कोशिश में है।
अनेक जानकार अप्रैल महीने में होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव और इस साल के आखिर में हो रहे छत्तीसगढ़ सहित तीन राज्यों के चुनाव से इसे जोडक़र देख रहे हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट में आरक्षण की सीमा बढ़ाने और ओबीसी की कैटेगरी पर आपत्ति लगाते हुए याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए वहां आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करने पर स्थगन लगा दिया था। पर अभी 2 दिन पहले राज्य सरकार की अपील पर वह स्थगन हटा लिया गया है, लेकिन मामले की सुनवाई चल रही है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि सरकार का नया आरक्षण विधेयक हाईकोर्ट के अंतिम फैसले से बाधित रहेगा। यह कुछ उसी तरह की स्थिति है जब 2012 में छत्तीसगढ़ सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाई थी और वह हाईकोर्ट के अंतिम फैसले तक लागू था। 2012 के प्रावधानों को रद्द करने के फैसले के बाद दिसंबर महीने में बीते साल छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नया विधेयक विशेष सत्र बुलाकर पारित किया। तब और अब के राज्यपाल इस पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं। वजह यह बताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट में मामले से जुड़ी लंबित याचिकाओं पर सुनवाई होनी है।
इधर कर्नाटक में राज्यपाल की मंजूरी में कोई बाधा नहीं आई। नजर यह आ रहा है कि भाजपा बड़ी बारीकी से यह तौल रही है कि आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर रुकने से उसकी छत्तीसगढ़ में चुनावी संभावनाओं पर क्या असर पड़ेगा। छत्तीसगढ़ सरकार के नए विधेयक से सबसे अधिक लाभ आदिवासी वर्ग और पिछड़ा वर्ग को ही मिलना है। आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण के मुद्दे को उसने उठा ही रखा है। अब यह देखना होगा कि क्या वह राहुल गांधी पर आए फैसले के बहाने ओबीसी अस्मिता का सवाल खड़ा कर इस वर्ग के वोटों को अपनी तरफ मोडऩे में सफल होती है।
दूसरे राज्यों में ऐसी ट्रेन क्यों नहीं चलती?
कटनी रूट हो या मुम्बई हावड़ा रूट, छोटे स्टेशनों पर मेल-एक्सप्रेस के अलावा अनेक पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव रेलवे ने बंद कर रखा है। कई पैसेंजर ट्रेनों का परिचालन भी अब तक बंद रखा गया है। तर्क यह है कि इनसे होने वाली टिकटों की बिक्री कम है।
पैसेंजर हाल्ट छोटे-छोटे स्टेशनों में ही होते हैं, यहां एक दिन में हजारों रुपयों की रेल टिकट कैसे बिक सकती है और सैकड़ों यात्री सफर कैसे कर सकते हैं? पहले तो कभी इन स्टेशनों को मुनाफे का जरिया माना ही नहीं जाता था। रेलवे की कमाई तो प्राय: लदान और परिवहन से है।
छत्तीसगढ़ के मामले में तो यह और भी अनुचित है। उदाहरण के लिए गेवरा स्टेशन है। यहां से चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों को बंद करके रखा गया है। सांसद, सलाहकार और रेल यात्री मांग करते हैं तो आमदनी का ही तर्क दिया जाता है। यह वही गेवरा है, जहां एसईसीएल ने 50 लाख मिलियन टन कोयला उत्पादन का रिकॉर्ड अभी कुछ दिन पहले ही बनाया है। एसईसीएल ने इसे अपनी कामयाबी के रूप में दर्ज किया और लोगों को बताया, पर रेलवे यह नहीं बता रहा है कि गेवरा से कोयले के परिवहन से उसे अरबों रुपयों का मुनाफा हुआ है, हो रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही रायगढ़ और राजनांदगांव की दिशा से हजारों यात्री रोजाना राजधानी रायपुर पहुंचते हैं। उसी समय से राजधानी के दोनों दिशाओं को जोडऩे वाली प्रतिदिन निरंतर चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों की मांग की जा रही है। ऐसा हो तो रायपुर, कोरबा, दुर्ग, रायगढ़ से राजनांदगांव तक के लोग एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से सफर कर सकेंगे, जो लोगों की आमदनी बढ़ाने और जीवन स्तर उठाने में भी मदद करेगा। राजधानी तक पहुंच भी आसान करेगा।
एक रेल यात्री ने 24 मार्च को ली गई मुंबई के बांद्रा से बोरोवली की एक टिकट सोशल मीडिया पर शेयर की है, जिसमें दो लोगों का कुल किराया 20 रुपये दर्ज है। यानि 10 रुपये में एक यात्री 20 किलोमीटर सफर कर रहा है। इस यात्री का सुझाव है कि उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे दूसरे राज्यों में भी मुंबई की तरह ऐसी ही सस्ती और सुलभ सुविधा रेलवे दे। इससे बेरोजगारी दूर करने, व्यवसाय को बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी। पर यहां तो रेलवे के भरोसे रहने वाले छोटे स्टेशनों के सैकड़ों लोगों के रोजगार और आजीविका का साधन ही खत्म कर दिया गया है।
जीवनदीप समितियों का क्या होगा?
सरकारी अस्पतालों में पहले से ही आयुष्मान भारत व डॉ. खूबचंद बघेल योजना के तहत आने वाले लगभग तीन चौथाई मरीजों का उपचार मुफ्त होता है। पर अब जून माह से सौ फीसदी मरीजों का कैशलेस इलाज शुरू हो जाएगा। यूनिवर्सल स्वास्थ्य कांग्रेस के सन् 2018 के घोषणा पत्र में शामिल था। इस वर्ष इसे पूरा किया जा रहा है। दूसरी ओर प्रदेशभर के अस्पतालों में जीवनदीप समितियां बनी हुई हैं, जिला स्तर पर कलेक्टर तो अनुभाग स्तर पर एसडीएम इसके अध्यक्ष होते हैं। जीवनदीप समितियां इन अस्पतालों में आने वाले मरीजों से पंजीयन शुल्क लेती थी, जांच और इलाज पर भी थोड़ा खर्च जुटा लिया जाता था। ये समितियां स्थानीय स्तर पर अस्पताल की व्यवस्था ठीक रखने का काम करती हैं। बिगड़े मशीनों की मरम्मत, तत्काल जरूरी दवाओं की खरीदी, अस्पताल की साफ-सफाई, मरीजों के लिए भोजन, पंखे, कूलर, चादर आदि की व्यवस्था इन समितियों के फंड से हो जाती थी। कैशलेस इलाज शुरू होने के बाद अब किसी तरह का कलेक्शन ये समितियां नहीं कर पाएंगीं। महत्वपूर्ण यह भी है कि इसी फंड के भरोसे जीवन दीप समितियों ने कई कर्मचारियों की अस्थायी भर्ती भी कर रखी है। किसी-किसी अस्पताल में तो इनकी संख्या 30-40 तक भी है। प्रदेशभर में अब इनकी नौकरी छिनने का खतरा भी मंडरा रहा है। स्वास्थ्य विभाग ने अब तक नहीं बताया है कि नई व्यवस्था के बाद क्या जीवनदीप समितियों को भंग कर दिया जाएगा या वे अस्तित्व में रहेंगीं तो उसके लिए फंड कहां से आएगा।
अहिंसक प्रतिरोध
महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा की एक प्रति भेजी है। तुषार ने कहा है कि इसमें सब लिखा है कि गांधीजी ने कहा लॉ की डिग्री ली, बैरिस्टर की उपाधि पाई और डिप्लोमा कोर्सेस किए। तुषार गांधी ने एक वीडियो जारी कर दी गई अपनी प्रतिक्रिया में यह भी कहा है कि हालांकि गांधीजी के पढ़ा-लिखा नहीं होने का बयान उन्होंने जानबूझकर, वफादारी निभाने के लिए दिया होगा, फिर भी वे किताब अपनी तरफ से भेज रहे हों, ताकि गलती से नहीं पढ़ पाए हों तो पढ़ लें।