सामान्य ज्ञान

होली या होलाका
26-Mar-2023 6:16 PM
होली या होलाका

होली भारत का  बहुत प्राचीन उत्सव है। इसका आरम्भिक शब्दरूप होलाका था। भारत में पूर्वी भागों में यह शब्द प्रचलित था। जैमिनि एवं शबर का कथन है कि  होलाका सभी आर्यो द्वारा सम्पादित होना चाहिए। काठकगृह्य में एक सूत्र है राका होला के, जिसकी व्याख्या टीकाकार देवपाल ने  की है-  होला एक कर्म-विशेष है जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए सम्पादित होता है, उस कृत्य में राका  देवता है। 

होलाका उन बीस क्रीड़ाओं में एक है जो सम्पूर्ण भारत में प्रचलित हैं। इसका उल्लेख वात्स्यायन के कामसूत्र  में भी हुआ है जिसका अर्थ टीकाकार जयमंगल ने किया है। फाल्गुन की पूर्णिमा पर लोग श्रृंग से एक-दूसरे पर रंगीन जल छोड़ते हैं और सुगंधित चूर्ण बिखेरते हैं। हेमादि ने बृहद्यम का एक श्लोक उद्भृत किया है। जिसमें होलिका-पूर्णिमा को हुताशनी  कहा गया है। लिंग पुराण में आया है-  फाल्गुन पूर्णिमा को  फाल्गुनिका कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति, ऐश्वर्य देने वाली है।  वराह पुराण में आया है कि यह  पटवास-विलासिनी  है।

जैमिनि एवं काठकगृह्य में वर्णित होने के कारण यह कहा जा सकता है कि ईसा की कई शताब्दियों पूर्व से  होलाका  का उत्सव प्रचलित था। कामसूत्र एवं भविष्योत्तर पुराण इसे वसन्त से संयुक्त करते हैं, इसलिए यह उत्सव पूर्णिमान्त गणना के अनुसार वर्ष के अन्त में होता था।  होलिका हेमन्त या पतझड़ के अन्त की सूचक है और वसन्त की कामप्रेममय लीलाओं की द्योतक है।

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