विचार / लेख

फिराक साहेब पीने के बाद थोड़ा बहक जाते थे। एक बार हॉलैंड हॉल में फिराक साहेब को एक जिरह में बुलाया गया। चूँकि फिराक साहेब ने शराब पी थी तो उन्होंने जिरह के शुरुआत में ही उस समय के कुलपति अमर नाथ झा को उल्टा सीधा कहने लगे।
सुबह जब झा साहेब को पता लगा तो उन्होंने एक आदेश निकाला कि अगर फिराक साहेब को किसी आयोजन में बुलाया जाय तो दिन में ही और दिन ढलने के बाद उनको किसी भी आयोजन का निमंत्रण न दिया जाय। न फिराक ने कभी वो आदेश माना न किसी और ने। सबको फिराक को सुनना बहुत पसंद था।
एक किस्सा और है। 1950 में एक बार अली सरदार जाफरी साहेब एक मुशायरे में शिरकत करने इलाहाबाद आये। पहले तो फिराक साहेब और जाफरी ने पी और उसके बाद मुशायरे में पहुंचे। अली सरदार जब बोलने लगे तो फिराक साहेब उनको पीछे से गरियाने लगे। शायद कोई गजल पे मसला हो गया था। आयोजकों ने बहुत समझया फिराक साहेब को, माने नहीं और अंत में फिराक साहेब को घर छोड़ दिया गया। बहुत देर तक जब फिराक साहेब की आवाज जाफरी साहेब के कानो में नहीं आई तो उन्होंने आयोजकों से पूछा तो उन्हें बताया गया कि फिराक घर छोड़ दिया गया है।
उस समय माइक्रोफोन उनके हाथ में था और उन्होंने मंच से कहा ‘हरामजादों, वो मुझे गाली दे रहा था या तेरे माँ-बाप को, उसका हक है मुझे गाली देना, तुम बीच में कौन होते हो। तेरे मुशायरे की ऐसी कि तैसी मुझे मेरे फिराक पे पास ले चलो।’
जाफरी साहेब ने मुशायरा वहीं छोड़ दिया और फिराक के घर पहुंचे। फिराक साहेब अपने लॉन में टहल रहे थे। जाफरी साहेब उनके पास पहुंचते ही उनको गले लगा लिया। दोनों रोने लगे। जाफरी साहेब बोले ‘हरामजादे, न हम दोनों को गाली देने देते हैं , न हॅसने देते हैं न रोने देते हैं’। दोनों तब तक गले मिलते रहे जब तक पड़ोसी अपने घर से बाहर नहीं निकल आये।
( FIRAQ , The poet of pain and ecstasy -Ajay Mansingh )