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मसले के हल के तीन चरण हैं...
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 1 अप्रैल । सामाजिक कार्यकर्ता, और नालसार नेशन्ल लॉ यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के पूर्व शोध सलाहकार बीके मनीष ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण विवाद पर कानूनी पहलुओं को रखा है। उन्होंने कहा कि आरक्षण के जारी विवाद में 6 माह बाद भी क्षुद्र जातिवादी राजनीति प्रभावी है।
बीके मनीष ने एक बयान में कहा कि कांग्रेस-भाजपा सामाजिक न्याय और जनहित की उपेक्षा कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों में लाभ लेने के लिए कांग्रेस-भाजपा का ओबीसी नेतृत्व आरक्षण विवाद को लटकाए रखने की जिद्द पर अड़ा है। अदालती, राजनीतिक, प्रशासनिक विवादों के बीच सब की कोशिश है कि अकाट्य तथ्यों की अवहेलना की जाए और उन पर से ध्यान भटकाया जाए।
उन्होंने आरक्षण विवाद मसले के हल के लिए 3 चरण है। क-हाईकोर्ट के फैसलों से आई पेचीदगी का कानूनी उपाय निकालना। (12-32 आरक्षण की तार्किकता और अनुसूचित क्षेत्रों में भी 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा की बाध्यता विषयक हाई कोर्ट की टिप्पणियों मात्र को मा. उच्चतम न्यायालय से मिटवाने का उपाय)।
ख-समुचित आरक्षण के लिए जमीनी रिसर्च से ठोस आधार निर्मित करना।
(सामाजिक विज्ञान के स्थापित मानकों के हिसाब से आरक्षण का आधार बनाने के लिए बहिष्करण की प्रकृति-मात्रा को सटीक मापने और छत्तीसगढ की विशेष परिस्थितियों को रेखांकित करने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों का आरक्षण पर प्रभाव पहलू पर उच्च गुणवत्ता की अशासकीय, स्वतंत्र स्टडी कराना)
ग-ड्राफ्टिंग और पारित करने की प्रक्रिया को विधि सम्मत रखने का पर्यवेक्षण।
(यह सुनिश्चित करना कि नए अधिनियम/अध्यादेश/परिपत्र के संबंध में छग शासन कार्यपालिक नियम एवं विधानसभा नियम का हर चरण पर सम्यक पालन किया जाए। प्रस्ताव पारित करते समय मंत्रिपरिषद एवं विधानसभा/राज्यपाल के समक्ष समुचित आरक्षण के ठोस आधार (आंकड़े/व्याख्या) प्रदान करने वाली रिपोर्ट उपस्थित हो, एवं इस प्रकार दर्ज की जाए)।