संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इतने बड़े पैमाने पर हो रहे हैं साइबर-जुर्म कि बस...
22-Apr-2023 4:05 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  इतने बड़े पैमाने पर हो रहे हैं साइबर-जुर्म कि बस...

दिल्ली पुलिस ने अभी बंगाल से जालसाजों के एक गिरोह को पकड़ा है जो कि फर्जी नामों से सिमकार्ड जारी करवाकर झारखंड के कुख्यात जामताड़ा के जालसाजों को देते थे, और वहां से वे देश भर में उससे ठगी करते थे। हैरानी की बात यह है कि बंगाल के जिस आदमी को पुलिस ने अपने घेरे में लिया उसके पास से 22 हजार सिमकार्ड मिले हैं जिनमें से अधिकतर हिन्दुस्तान के थे, लेकिन उनमें बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, और श्रीलंका के सिमकार्ड भी थे। जामताड़ा के जालसाज बड़ी-बड़ी कंपनियों और बैंकों के नकली वेबसाइट बनाकर ऐसे सिमकार्ड के नंबर उस पर पोस्ट करते थे, और फिर कस्टमर केयर बनकर फोन करने वाले ग्राहकों को ठगते थे। मिलते-जुलते नामों वाली  असली सरीखी दिखने वाली वेबसाइटें बनाना एक अलग किस्म का जुर्म था, और इसका कोई भी हिस्सा इंटरनेट पर कई तरह की जानकारी डाले बिना पूरा नहीं हो सकता था। अब सवाल यह उठता है कि देश की बड़ी-बड़ी मोबाइल कंपनियां केन्द्र सरकार के नियमों के मुताबिक कई तरह की शिनाख्त पाने के बाद ही सिमकार्ड दे सकती हैं, इसी तरह इंटरनेट कनेक्शन और वेबसाइट के डोमेन नेम भी कई तरह की शिनाख्त के बाद ही हो पाते हैं। निपट अनपढ़ लोग भी जामताड़ा की जालसाजी की परंपरा से सरकार और कारोबार की ऐसी सभी जांच को पार करते दिख रहे हैं, और एक-दो मामलों में नहीं, रोजाना हजारों मामलों में। 

हिन्दुस्तान में साइबर अपराधी जब लूट का माल ठिकाने लगा चुके रहते हैं, तब पुलिस लाठी लेकर उनके पांवों के निशान पीटते दिखती है। अभी दिल्ली पुलिस ने बंगाल जाकर जो गिरफ्तारी और जब्ती की है, वह सिलसिला भी यही मुजरिम साल भर से अधिक से चला रहे थे। हर दिन वहां का एक-एक जालसाज नौजवान दर्जनों लोगों को ठगता है, और उस किस्म के हजारों लोग वहां से काम करते हैं। उस इलाके की शिनाख्त इतनी अच्छी तरह हो चुकी है कि सरकारी एजेंसियां चाहें तो उस गांव से निकलने वाले हर मोबाइल और हर इंटरनेट सिग्नल को जालसाजी का मानकर उस पर निगरानी रख सकती हैं, लेकिन पता नहीं क्यों ऐसा होता नहीं है। सरकार का पूरा का पूरा तंत्र जुर्म के बाद की जांच तक सीमित है, जुर्म के पहले निगरानी रखकर लोगों को बचाने के मामले में सरकार बिल्कुल बेअसर है। और यह बात सिर्फ केन्द्र सरकार की नहीं है, उस प्रदेश सरकार के बारे में भी सोचना चाहिए जिसके तहत जामताड़ा आता है, और जहां से देश भर में हर दिन दसियों हजार लोग ठगे जाते हैं। जहां एक गांव इंटरनेट और साइबर जालसाजी को कुटीर उद्योग की तरह चला रहा है, जिस पर फिल्में बन रही हैं, उसकी इतनी पुख्ता पहचान के बाद भी सरकार वहां कुछ नहीं कर पा रही है, यह बेबसी समझ से परे है। 

भारत में और इसके प्रदेशों में जुर्म की जांच के लिए बहुत सी एजेंसियां हैं। लेकिन संभावित जुर्म को रोकने के लिए निगरानी रखने की एजेंसियां बिल्कुल नहीं हैं। जबकि निगरानी रखने की एजेंसी होती, तो वह जुर्म हो जाने के बाद की जांच एजेंसी के लिए भी मददगार रहती। जुर्म की जांच करने के बाद मुजरिम पकड़े जाने पर भी उनकी ठगी या लूटी गई रकम तो बरामद नहीं हो पाती है। इसलिए इस देश को एक मजबूत निगरानी एजेंसी की जरूरत है, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपना काम करे, और राज्य भी अपने स्तर पर ऐसी एजेंसी बना सकते हैं जो कि चर्चा और खबरों से, मुजरिमों और खबरियों से मिली जानकारी के आधार पर मुजरिमों को जुर्म करने के पहले ही, या जुर्म करते ही दबोच सके। हिन्दुस्तान में खुफिया एजेंसियां जो निगरानी करती हैं, वे राजनीतिक, आंतरिक सुरक्षा से जुड़े आतंक सरीखे मामलों की रहती हैं, ठगी-जालसाजी, चिटफंड और मार्केटिंग जैसे मामले लोगों के लुट जाने के महीनों बाद सामने आते हैं, तब तक हाथ आने लायक कुछ बचता नहीं है। 

अभी जिस तरह एक मुजरिम से 22 हजार सिमकार्ड मिले हैं, उन्हें देखते हुए मोबाइल कंपनियों पर भी कार्रवाई की जरूरत है जो कि गलाकाट बाजारू मुकाबले में बिना जांच-पड़ताल सिमकार्ड बेचने में लगी रहती हैं। अगर संगठित अपराध जगत इस हद तक, इतनी आसानी से सिमकार्ड हासिल कर सकता है, तो फिर ग्राहकों की जांच-पड़ताल का पूरा सिलसिला ही बोगस साबित होता है। यह मामला, और इससे जुड़ा जामताड़ा का मामला ऐसा है कि जांच एजेंसियों को इन मुजरिमों को ले जाकर देश के बड़े पुलिस-प्रशिक्षण संस्थानों में अफसरों की इनसे ट्रेनिंग करवानी चाहिए ताकि वे अपराध करने के तरीकों को समझ सकें, और बाद में दूसरे मुजरिमों को पकड़ सकें। 

हिन्दुस्तान बड़ी तेजी से एक डिजिटल इकॉनॉमी के रास्ते पर धकेल दिया गया है। अब हर मोबाइल फोन लोगों का बैंक बन चुका है, और उस पर पैसे आ भी रहे हैं, और उससे जा भी रहे हैं। लोग इंटरनेट का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने लगे हैं, और अधिकतर कारोबार किसी भी तरह की ग्राहक सेवा इंटरनेट के रास्ते ही देता है। ऐसे में आम ग्राहक किसी तरह से भी इन औजारों के इस्तेमाल से नहीं बच सकते। सरकार को ही साइबर-निगरानी बढ़ानी होगी वरना घर बैठे एक मोबाइल फोन से, एक कम्प्यूटर से जुर्म करने का आसान सिलसिला और नए मुजरिम बनाते ही चलेगा। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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