संपादकीय

दिल्ली में भारत के कुश्ती-चैंपियन महीनों से अपने फेडरेशन के तानाशाह और बदनाम अध्यक्ष, भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, और जब सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो अब पहलवानों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है। देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को बहुत गंभीर माना है। पहलवानों के आरोप हैं कि फेडरेशन को मनमाने तरीके से हांकने वाले अध्यक्ष सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने महिला पहलवानों का यौन उत्पीडऩ किया जिनमें नाबालिग भी शामिल है। ये पहलवान अभी दिल्ली में धरने पर बैठे हुए हैं, उनकी दर्ज कराई गई यौन उत्पीडऩ की शिकायत के बावजूद पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की है, जबकि यौन शोषण की शिकार लड़कियों में एक उस वक्त 16 बरस की थी जिसने गोल्ड मैडल भी जीता था। इनकी तरफ से अदालत में खड़े हुए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि ऐसे जुर्म के मामले में जांच न करने के लिए जिम्मेदार पुलिसवालों पर भी मुकदमा चलना चाहिए।
महीनों हो गए हैं यह देश पहलवान लडक़े-लड़कियों को आंसू बहाते देख रहा है। वे सार्वजनिक जगहों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, बड़ी संख्या में खिलाडिय़ों के ऐसे आरोप हैं, और यौन शोषण की शिकार कुछ लड़कियों की तरफ से उनके साथी पहलवान सामने आए हैं ताकि उन्हें शर्मिंदगी न झेलनी पड़े। लेकिन केन्द्र सरकार के बड़े-बड़े मंत्रियों से लेकर पुलिस तक कुछ भी नहीं कर रहे। लीपापोती करने के अंदाज में भारतीय कुश्ती संघ की एक जांच का नाटक सा किया जा रहा है। इस संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप है कि उन्होंने कम से कम 10 महिला कुश्ती खिलाडिय़ों का यौन उत्पीडऩ किया है। जैसा कि कोई भी आरोपी करते हैं, इस आदमी ने भी अपने पर लगे आरोपों को गलत बताया है। इस मामले को भारत में खेलों के जानकार मान रहे हैं कि यह इंसाफ के लिए लड़ाई की एक बड़ी शुरुआत है। जो लोग खेलों की दुनिया की हकीकत जानते हैं, वे यह भी मानते हैं कि महिला खिलाडिय़ों को अक्सर ही ऐसे शोषण का सामना करना पड़ता है, उनमें से कुछ बच पाती हैं, कुछ नहीं बच पातीं। लेकिन उनका प्रशिक्षण, उनका चयन, उन्हें आगे बढऩे के मौके, इन सबके लिए मर्द पदाधिकारियों के शोषण का सामना करना पड़ता है। आज हालत यह है कि कुश्ती संघ के इस अध्यक्ष पर ही महीनों से इतने गंभीर आरोप लग रहे हैं, लेकिन न तो सरकार की तरफ से जांच कमेटी बनाने की एक खानापूरी के अलावा और कुछ किया गया, और न ही भाजपा की तरफ से अपने इस सांसद से कोई जवाब-तलब किया गया। ऐसा माना जाता है कि यह सांसद उत्तर भारत के अपने इलाके में वोटरों पर खासा दबदबा रखता है, और पार्टी उसके खिलाफ कुछ करने की हिम्मत नहीं कर सकती।
इस एक मामले से परे भी हमें हमेशा यह लगता है कि भारत में खेल संघों पर नेताओं और अफसरों का जिस बुरी तरह कब्जा है, उसके चलते उनके शिकार खिलाडिय़ों को कभी इंसाफ नहीं मिल सकता। वे ही सांसद-विधायक हैं, वे ही मंत्री-अफसर हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई करे तो कौन करे? शायद यही देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आज नाराजगी के साथ पुलिस को हुक्म दिया है। हम राष्ट्रीय स्तर पर, और प्रदेशों में भी यह देखते हैं कि राजनीतिक सत्ता, सरकारी ताकत, और कारोबारी दौलत, इससे परे कोई खेल संघ नहीं चल सकते। इन तीनों दायरों में जो सबसे ताकतवर हैं, उन्होंने पूरी जिंदगी में उस खेल का मैदान भी न देखा हो, वे ही लोग राज करते हैं, और होनहार खिलाडिय़ों को किस तरह खत्म किया जाए, इसका इंतजाम भी करते हैं। चारों तरफ ऐसे खेल संघ खिलाडिय़ों से परे हैं, उनके चुनावों में दौलत और सत्ता का बोलबाला रहता है, और उन्हें माफिया अंदाज में चलाया जाता है। यह सिलसिला जब तक खत्म नहीं होगा, तब तक हिन्दुस्तान में खेलों का भला नहीं हो सकता, शोषण के शिकार खिलाडिय़ों को कोई इंसाफ नहीं मिल सकता। देश ने देखा है कि किस तरह बीसीसीआई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महीनों तक दखल दी, एक रिटायर्ड जज की अगुवाई में कमेटी बनाई, लेकिन किसी भी तरह से खेल की यह संस्था खिलाडिय़ों के हाथ नहीं आ पाई। देश और प्रदेशों में क्रिकेट बड़े-बड़े सबसे ताकतवर नेताओं, और कारोबारियों के कब्जे में चले आ रहा है। और क्रिकेट से परे के भी दर्जनों खेल पदाधिकारियों की ताकत के शिकार हैं। ऐसे में अगर किसी पदाधिकारी, प्रशिक्षक, मैनेजर, या वरिष्ठ खिलाड़ी के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत है, तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है। ऐसा सिर्फ हिन्दुस्तान में हो ऐसा भी नहीं है, अमरीका में अभी कुछ बरस पहले जिम्नास्टिक्स के सबसे बड़े प्रशिक्षकों पर दर्जनों खिलाडिय़ों के यौन शोषण का मामला सामने आया जिसमें सैकड़ों, कम से कम 368 जिम्नास्ट लड़कियों के यौन शोषण की बात जांच में साबित हुई, और वहां के खेल पदाधिकारी या अधिकारी इसकी अनदेखी करते चले आ रहे थे। बाद में जब एक सबसे बड़ी जिम्नास्ट एक मुकाबले के बीच ही अपनी मानसिक स्थिति के चलते पीछे हट गई, तो यह पूरा मामला उजागर हुआ, वरना यह दशकों से चले आ रहा था।
अब चूंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है, तो यह मानना चाहिए कि अदालत खेल संघों की हालत को भी देखेगी। भूतपूर्व खिलाडिय़ों को लेकर, और खेल के दायरे से परे के कुछ लोगों को लेकर एक बड़ी जांच कमेटी बनानी चाहिए, जो कि पहलवानों की इस ताजा शिकायत से परे भी बाकी हालात की भी जांच करे।