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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बंदूकों के सामने भला कौन सी जागरूकता खड़ी होगी?
30-Apr-2023 6:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बंदूकों के सामने भला कौन  सी जागरूकता खड़ी होगी?

टेक्सास में एक व्यक्ति ने पांच पड़ोसियों की गोली मारकर हत्या की. फोटो : सोशल मीडिया

अमरीका में हर किसी को तरह-तरह की बंदूकें रखने का हक है। लोग फौजी दर्जे के ऐसे ऑटोमेटिक हथियार भी रखते हैं जिनसे मिनट भर में सौ लोगों को मारा जा सके। यह बड़ा ही अजीब और सिरफिरा देश है जो कि अपने हर नागरिक को इतने हथियार रखने का हक देता है जिससे एक-एक अमरीकी सैकड़ों लोगों को मार सके। और वहां पर हथियारों की वकालत करने वाले लोग यह मानकर चलते हैं कि इससे देश में लोकतंत्र सुरक्षित रहेगा क्योंकि अमरीकी सेना कभी तख्ता पलट नहीं कर सकेगी क्योंकि जनता के पास इतने हथियार हैं। अभी वहां एक नौजवान अपने घर के अहाते में रोज गोलियां चला रहा था, और पड़ोसियों ने जब इस पर विरोध दर्ज किया, तो उसने पांच लोगों को मार डाला। नाजायज काम से रोकने का यह बहुत बड़ा दाम चुकाना पड़ा। लेकिन इस बात को हम दुनिया के बाकी देशों की उन अलग-अलग घटनाओं से जोडक़र भी देखना चाहते हैं जिनमें जायज विरोध के जवाब में इस तरह के कत्ल हो रहे हैं। हिन्दुस्तान में ही सडक़ों पर किसी की गुंडागर्दी को रोकने की कोशिश हो तो लोग मार डाल रहे हैं, छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट के कड़े हुक्म के बाद भी लगातार बजने वाले डीजे के शोरगुल का विरोध करने पर कत्ल हुए हैं, और आज के वक्त समझदार लोग कोई भी जागरूकता दिखाने के पहले यह मान लेते हैं कि उसका नतीजा जिंदगी देना भी हो सकता है। 

अब सवाल यह उठता है कि लोकतंत्र में छोटी-छोटी बातों के लिए लोग अगर अपने हक का इस्तेमाल न कर सकें, और हर बात की शिकायत के लिए पुलिस, सरकार, या अदालत तक जाना पड़े, तो कितनी नाजायज बातों को रोकना मुमकिन हो पाएगा? जब लोगों के बीच कानून की फिक्र खत्म हो जाती है, जब राजनीति मुजरिमों को बचाने का काम करने लगती है, जब पुलिस और अदालती कार्रवाई सबसे अधिक दाम देने वाले के हाथ बिकने को तैयार खड़ी रहती हैं, तब लोगों की जागरूकता जवाब देने लगती है। लोकतंत्र में इससे बुरी कोई नौबत नहीं रहती कि लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता को घर छोडक़र बाहर निकलें, क्योंकि अधिक जागरूक बनने के बाद इस बात की गारंटी नहीं रहेगी कि वे घर लौट सकेंगे या नहीं। आज आस-पड़ोस की गुंडागर्दी पर भी कुछ बोलने का धरम नहीं रह गया है क्योंकि हर गुंडे-मवाली को बचाने के लिए उसके धर्म के लोग, उसकी जाति के लोग, उसके राजनीतिक दल के लोग खड़े रहते हैं। और शरीफों का कोई संगठन नहीं रहता, शरीफ की मदद करने से किसी नेता का कोई फायदा नहीं होता, और शरीफ के पास ऐसा पैसा भी नहीं रहता कि पुलिस और अदालत उसके साथ इंसाफ करे। नतीजा यह होता है कि थाने से लेकर अदालत तक शरीफ सबसे अधिक प्रताडि़त रहते हैं, और मुजरिम घर जैसी सहूलियत पाते रहते हैं। 

हिन्दुस्तान में अधिकतर प्रदेशों में अमरीका की तरह की बंदूकबाजी नहीं होती, लेकिन फिर भी यूपी-बिहार जैसे राज्य देखें तो वहां पर आम लोगों के बीच बंदूक की जिस तरह की संस्कृति प्रचलित है, और कानूनी और गैरकानूनी हथियार जितने आम हैं, उनके बीच शरीफों का गुजारा कम है। यही वजह है कि वहां पर बड़े-बड़े मुजरिमों के गिरोह राज करते हैं, वे किसी धर्म और किसी जाति की गिरोहबंदी करते हैं, और नेता उन्हें अपने भाड़े के हत्यारों की तरह बचाने का काम करते हैं। बंदूकों का राज चाहे वह मुजरिमों का हो, चाहे वह कश्मीर या बस्तर जैसे इलाकों में सुरक्षाबलों की बंदूकों का हो, उनमें अराजकता आ ही जाती है। अमरीका में एक अलग किस्म की अराजकता है जिसे वहां कानून की बुनियाद हासिल है, हिन्दुस्तान में सुरक्षाबलों को ज्यादती करने पर किसी तरह की कानूनी हिफाजत तो नहीं है, लेकिन अघोषित हिफाजत उन्हें इतनी मिली हुई है कि सुरक्षाबल ज्यादतियां करते हैं, तो भी उनका कुछ बुरा नहीं होता, उनकी सरकारें उन्हें बचाने का काम करती हैं, फिर चाहे वे एक गाड़ी के सामने एक बेकसूर कश्मीरी को बांधकर क्यों न चलें। कश्मीर हो या बस्तर ऐसे इलाकों में यह लगातार देखने में आ रहा है कि जो लोग जागरूकता की बात करते हैं, उन्हें सुरक्षाबल और उनकी सरकारें अलग-अलग किस्म के मामलों में फंसाने की कोशिश करते हैं। ऐसा उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी होता है, और जहां कहीं किसी उग्रवाद का बहाना बनाया जा सकता है, वहां पर सरकारें लोकतंत्र को जिंदा रखने के नाम पर जागरूकता को कुचलने का काम करती हैं। अब लोग न निजी हकों की बात कर सकते हैं, न सार्वजनिक हक की, और न ही समाज के लोकतांत्रिक अधिकारों की। इन सबके खिलाफ मवालियों से लेकर सरकारों तक की बंदूकें तैनात हैं। लोकतंत्र के लिए यह एक बड़ी तकलीफदेह और निराशाजनक नौबत है, कि ऐसे में लोग क्या जागरूकता दिखाएं? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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