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गेंद फिर शरद पवार के पाले में, क्या बदलेंगे अपना फैसला?
05-May-2023 4:11 PM
गेंद फिर शरद पवार के पाले में, क्या बदलेंगे अपना फैसला?

रोहन नामजोशी, मयूरेश कोण्णूर

एनसीपी की कोर कमेटी की शुक्रवार को हुई बैठक प्रस्ताव पारित कर शरद पवार से पार्टी चीफ के पद पर बने रहने की गुजारिश की गई है। हालांकि शरद पवार ने इस पर अभी अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है।

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि वो पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देंगे। इसके तुरंत बाद से एनसीपी कार्यकर्ता उनसे इस्तीफा वापस लेने की मांग करने लगे थे। इसके बाद पार्टी के नेता अजित पवार ने कार्यकर्ताओं से कहा था कि च्साहब इस्तीफा वापस नहीं लेंगे और जो फैसला वो लेंगे, सही होगा।ज्

शुक्रवार को एनसीपी की कोर कमेटी की अहम बैठक में शरद पवार के ही नेतृत्व में पार्टी को आगे चलाने पर आम सहमति बनी है।

बहरहाल, हमने कुछ विशेषज्ञों से बात कर समझने की कोशिश की कि अगर पवार अभी भी कोर कमेटी के प्रस्ताव को नहीं मानते हैं तो एनसीपी का अगला अध्यक्ष कौन हो सकता है।

१९९९ में शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया था। संगमा ने पवार के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। तब से शरद पवार पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं।

इसलिए उनकी विरासत को कौन आगे बढ़ाएगा, इस सवाल का जवाब देते हुए वरिष्ठ पत्रकार विजय चोरमारे कहते हैं, च्अजित पवार ने बार-बार कहा है कि उन्हें राज्य की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी है।

पार्टी अध्यक्ष पद में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं। इसलिए सुप्रिया सुले पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकती हैं, क्योंकि एक सीमा के बाद उन्हें प्रदेश की राजनीति में भी खास दिलचस्पी नहीं है। वह अपने संसदीय और राष्ट्रीय कार्यों से ख़ुश हैं।ज्

अजित पवार, सुप्रिया सुले या फिर कोई और?

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई भी चोरमारे की बात से सहमत हैं।

वो कहते हैं, च्अजित पवार के लिए अध्यक्ष बनना मुश्किल है, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो उन्हें अपना सुर बदलना होगा।

पिछले कुछ समय से अजित पवार बीजेपी की आलोचना करते हुए बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहे हैं। साथ ही अजित पवार का प्रभाव उतना नहीं है जितना शरद पवार का है। इसलिए, मुझे लगता है कि सुप्रिया सुले शरद पवार के विचारों की विरासत को आगे बढ़ाएंगी।ज्

बीबीसी मराठी के एक प्रोग्राम में वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने अलग राय व्यक्त की।

उनके मुताबिक, शरद पवार के बाद अजित पवार पार्टी में नंबर एक हैं। अजित पवार चाहते हैं कि उनके चाचा रिटायर हो जाएं। इसलिए अजित पवार ही पार्टी के अध्यक्ष बनेंगे।

इस्तीफे की घोषणा के बाद अजित पवार ने कार्यकर्ताओं को शांत करने और उन्हें आक्रामक तरीके से दूर रहने के लिए कहा।

हालांकि, चोरमारे के अनुसार, उन्होंने संरक्षक की भूमिका से कार्यकर्ताओं को समझाने की कोशिश की।

इस्तीफे की टाइमिंग को लेकर उठते सवाल

शरद पवार के राजनीतिक करियर को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेश भटेवारा की राय अलग है।

उनके अनुसार, अदानी के बारे में सकारात्मक राय व्यक्त करने के लिए शरद पवार की आलोचना की गई थी। इसलिए उन्होंने पार्टी के रास्ते में न आने के लिए इस्तीफा दे दिया।

उनके मुताबिक, अजित पवार और सुप्रिया सुले दोनों ही अध्यक्ष नहीं बनेंगे।

भटेवारा के अनुसार, श्रीनिवास पाटिल अगले अध्यक्ष हो सकते हैं।

वो कहते हैं, च्उन्होंने कई संवैधानिक पदों पर कार्य किया है, राजनीति और प्रशासन में व्यापक अनुभव रखते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि यह इस पद के लिए उपयुक्त हैं।ज्

एक अहम सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर शरद पवार ने इस्तीफा अभी क्यों दिया।

हेमंत देसाई के मुताबिक, उनके स्वास्थ्य और उम्र को देखते हुए अभी इस्तीफा देना उचित ही है।

पुणे लोकमत के संपादक संजय अवटे कहते हैं, च्२०१४ के लोकसभा चुनावों ने पूरा संदर्भ ही बदल दिया। जन्म से ही सत्ता में रही एनसीपी सत्ता से बाहर हो गई।

देश में कांग्रेस का नुक़सान हुआ है। राज्य में भी हालात बिगड़े। फिर भी पवार नई राजनीति में च्प्रासंगिकज् बने रहने की कोशिश करते रहे।

उनके गुरु यशवंतराव चव्हाण के आखिरी दौर ने पवार को बहुत कुछ सिखाया।

इंदिरा गांधी, जिनका यशवंतराव ने विरोध किया, सत्ता में वापस आ गईं और यशवंतराव का राजनीतिक जीवन समाप्त हो गया।

सोनिया का विरोध करने वाले पवार के साथ ऐसा नहीं हुआ, वजह ये है कि सोनिया की राजनीतिक पूंजी कम थी।ज्

राजनीतिक करियर पर एक नजर

शरद पवार ने १९६० में राजनीति शुरू की और छह दशकों तक महाराष्ट्र की राजनीति की धुरी रहे हैं।

आपातकाल के बाद कांग्रेस में दो फाड़ हो गया और पवार च्रेड्डी कांग्रेसज् के साथ चले गए।

जुलाई १९७८ में उन्हें महाराष्ट्र का सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

साल १९८६ में कांग्रेस में वापसी और १९८८ में महाराष्ट्र के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।

साल १९९३ में, पवार तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।

पवार १९९६ से ही केंद्र की राजनीति में अहम किरदार बन गए।

१९९९ में पवार ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया और कांग्रेस से अलग होकर च्राष्ट्रवादी कांग्रेसज् बनाई।

महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन का श्रेय मुख्य रूप से पवार को ही दिया जाता है।

पवार बीसीसीआई और आईसीसी के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे।

पवार की प्रासंगिकता

लेकिन, शरद पवार भी सतर्क हैं। संदर्भ कितना भी बदल जाए, पवार जानते हैं कि उन्हें च्प्रासंगिकज् रहना है।

कांग्रेस जैसी ताक़तवर पार्टी को चुनौती देकर अपनी पार्टी बनाने के बाद कैंसर जैसी बीमारी का पता चलने के बावजूद वो लड़ते रहे हैं।

हालांकि, २०१९ के लोकसभा चुनावों ने तस्वीर बदल दी। शरद पवार के राजनीति के अंत की बात होने लगी। पवार से जुड़े लोग पार्टी छोडक़र बीजेपी में शामिल होने लगे।

लेकिन पवार विचलित नहीं हुए। वे इससे बाहर निकले। च्ईडीज् के सामने पेश हुए। बारिश में भीगते हुए प्रचार किया और फिर असंभव को संभव कर दिखाया।

सत्ता हाथ में लेने को तैयार हैं अजित पवार?

जैसे ही शरद पवार ने संन्यास की घोषणा की, हंगामा शुरू हो गया। अजित पवार के हाव-भाव से पता चल रहा था कि वे सभी मुद्दों को अपने हाथ में लेने को तैयार हैं।

सुप्रिया सुले को बोलने से रोका गया। अजित पवार कार्यकर्ताओं को शांत करने की पूरी तरह से कोशिश कर रहे थे।

वहीं, उनकी कुछ बातें उत्साहवर्धक भी थीं। अजित पवार ने कार्यकर्ताओं से तीखी भाषा में कहा, च्समय-समय पर कुछ निर्णय लेने होते हैं, और अगर साहेब की नजर में एक नया अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए, तो आप ऐसा क्यों नहीं चाहते?ज्

उन्होंने ये भी बताया कि ये फैसला पहले ही लिया जा चुका है।

उन्होंने कहा, च्यह काम कभी न कभी तो होना ही था। वे १ मई को ही इसकी घोषणा करने वाले थे, लेकिन कल एक बैठक थी। तो आज दूसरी तारीख है। उन्होंने अपने फैसले का एलान कर दिया। हम वही करेंगे जो उनके मन में है।ज्

इस पूरे मामले में सुप्रिया सुले ने लो प्रोफ़ाइल रखा। वे कार्यकर्ताओं के बीच ऐसी सीट लेकर बैठ गईं जो सीधे कैमरे के एंगल में न आए।

यहां तक कि जब उनसे बोलने का आग्रह किया गया तो वे इससे बचती नजऱ आईं। यहां तक कि उनकी मां भी नहीं चाहती थीं कि वे बोलें।

उन्होंने उन्हें न बोलने की चेतावनी दी। इसके अलावा, अजित पवार ने उन्हें सीधे तौर पर न बोलने के लिए कहा।

हालांकि अजित पवार का यह व्यवहार दिखाता है कि वो सत्ता संभालने के लिए तैयार हैं। लेकिन असल में सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि शरद पवार क्या फ़ैसला लेते हैं। क्योंकि उन्होंने हाल ही में कहा था कि यह रोटी पलटने का समय है। उन्होंने तो रोटी को घुमाने का सिलसिला भी शुरू कर दिया है।

सुरेश भटेवाड़ा का कहना है कि शरद पवार इस फैसले को वापस नहीं लेंगे, च्क्योंकि वह आज तक कभी भी अपने बयान से पलटे नहीं हैं। ऐसे में लगता नहीं है कि वह इस्तीफ़ा वापस ले लेंगे।ज्

लेकिन बालासाहेब ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया और पार्टी पर अपनी शक्ति को और मजबूत करने के लिए वापस ले लिया। इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि शरद पवार भी इस्तीफा वापस ले सकते हैं।

अब एनसीपी की कोर कमेटी ने उन्हें ही पार्टी का अध्यक्ष बनाए रखने का प्रस्ताव पारित किया है। ऐसे में देखना होगा कि शरद पवार अपने फैसले पर क़ायम रहते हैं या उसे बदल देते हैं। (bbc.com)

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