संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से उपजी पहली हड़ताल..
15-May-2023 4:11 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस  से उपजी पहली हड़ताल..

photo : wikipedia

अमरीका में टीवी और फिल्म लेखकों की हड़ताल को आज दस दिन पूरे हो गए हैं, और वे बेहतर भुगतान के लिए एक एसोसिएशन के बैनरतले हड़ताल पर हैं। अमरीकी स्टूडियो 15 बरस के बाद लेखकों की ऐसी हड़ताल देख रहे हैं। लेखकों का यह भी कहना है कि सिनेमाघरों और टीवी चैनलों से परे ओटीटी प्लेटफॉम्र्स पर उनके काम का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन उन्हें उसका कोई भुगतान नहीं मिल रहा है। फिल्मों और टीवी की जो ग्लैमरस दिखती है, वह बहुत से लेखकों को जिंदा रहने जितना भी मेहनताना नहीं देती। साढ़े 11 हजार लेखकों की राइटर्स गिल्ड ऑफ अमरीका ने 15 बरस बाद ऐसी हड़ताल की है, और बहुत से मशहूर टीवी कार्यक्रमों के नए एपिसोड की जगह उनके कोई पुराने एपिसोड दिखाना शुरू हो गया है। लेकिन इसमें बाकी तमाम बातों के साथ-साथ लेखकों के अस्तित्व पर एक बड़ा खतरा ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित लिखने वाली वेबसाइटें हैं जो कि लिखने के काम को हल्का कर रही हैं। हड़ताल कर रहे लेखक यह नारे भी लगा रहे हैं कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस उनकी जगह नहीं ले सकता। 

हॉलीवुड के लेखकों की हड़ताल से हमारा सीधा कुछ लेना-देना नहीं है क्योंकि हिन्दुस्तान में भी बहुत से तबके हड़ताल की नौबत पर चल रहे हैं, लेकिन हड़ताल इसलिए नहीं कर रहे कि मौजूदा मजदूर कानूनों और सरकारी रवैये के चलते उन्हें कोई कामयाबी मिलनी नहीं है। हड़ताल की नौबत वहीं मजदूरों के काम आ सकती है जहां कानून तक उनकी पहुंच हो, और जहां कानून अंधा न हो। लेकिन अमरीका की इस हड़ताल से ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का खतरा दुनिया में पहली बार हड़ताल तक पहुंचा है, और आने वाला वक्त इसी किस्म की हड़तालों से भरा हुआ दिख रहा है। टेक्नालॉजी लोगों की जगह लेने जा रही है, कम से कम बहुत से मौजूदा रोजगार खाने जा रही है, और लोगों को दूसरे कोई ऐसे रोजगार देखने पड़ेंगे जिन्हें ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस न कर सके। अब फिल्म और टीवी लेखकों की तरह के ही काम मीडिया के हैं, अखबारों, टीवी, और वेबसाइटों पर लिखने का बहुत सारा काम रहता है, और चैटजीपीटी जैसी ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस वेबसाइट ने यह साबित कर दिया है कि मामूली गलतियों के साथ वह बहुत सारा कामचलाऊ लेखन कर सकती है जिससे कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी के इम्तिहान भी पास किए जा सकते हैं। अब मीडिया में लिखने का काम अगर चैटजीपीटी और उसी किस्म का गूगल का बार्ड नाम का ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस साफ्टवेयर करने लगेंगे, तो जाहिर है कि काम कम्प्यूटरों से होने लगेगा, रोजगार घटने लगेंगे। एक सीधा खतरा ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के साथ मौजूदा संचार टेक्नालॉजी और टीवी स्क्रीन मिलाकर दिख रहा है कि अब बहुत से स्कूल पढ़ाई-लिखाई के कोर्स ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से गिने-चुने टीचर्स से वीडियो-कैमरों पर करवाकर बाकी स्कूलों को भी बेच सकेंगे, और क्लासरूम में एक बड़ी सी स्क्रीन टीचर की जगह ले सकती है। शुरू में टेक्नालॉजी कुछ महंगी पड़ सकती है, लेकिन आगे जाकर वह टीचरों की तनख्वाह से सस्ती पडऩे लगेगी, और चुनिंदा सबसे अच्छे टीचर्स के वीडियो लेक्चर पूरे देश में बिक सकते हैं, और टीचर्स को घटा सकते हैं। 

यह पूरा सिलसिला इतनी तेजी से बढ़ सकता है कि लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि कब वे नौकरी खो बैठे। चैटजीपीटी के मुकाबले गूगल का बार्ड बहुत से और फीचर्स लेकर आया है, और लोग इन पर बोल-बोलकर तस्वीरें भी बना सकते हैं, और भी कई किस्म के काम कर सकते हैं, और यह तो सिर्फ शुरुआत है। अभी दो दिन पहले हिन्दुस्तान के एक अखबार ने यह रिपोर्ट छापी है कि उसने गूगल के बार्ड से उसका यह अंदाज निकलवाया कि हिन्दुस्तान की किसी एक खास कंपनी के शेयर के दाम कितने होने चाहिए, और उसने आंकड़ों में अपना अंदाज बतला दिया। अब तक चैटजीपीटी इससे परहेज करता है, लेकिन गूगल को चूंकि उससे आगे निकलना था, शायद इसलिए उसने यह परहेज छोड़ दिया, और वित्तीय भविष्यवाणी भी करने लगा। 

दुनिया में ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आगे रिसर्च रोकने की मांग उठ रही है, और यह इसलिए उठ रही है कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जाने किस पल इंसानी अक्ल से आगे निकल जाएगी, शायद निकल चुकी है, और उस पर किसी नैतिकता का बोझ नहीं है, परंपराओं और सामाजिक मूल्यों का बोझ नहीं है। ऐसे किसी भी बोझ से मुक्त ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस दुनिया के लिए तबाही का सामान पल भर में बना सकता है, क्योंकि वह किसी अपराधबोध, प्रायश्चित, और झिझक से पूरी तरह मुक्त भी है। चूंकि दुनिया को आपसी सहमति से ऐसा कोई कानून बनाते बरसों लग जाएंगे कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को आगे बढ़ाने का रिसर्च रोका जाए। तब तक दुनिया की कंपनियां इतनी रफ्तार से एक-दूसरे के मुकाबले इसे बढ़ाते चलेंगी कि बरसों बाद अगर ऐसे कानून बनते भी हैं तो वे किसी काम के नहीं रह जाएंगे, विज्ञान का इतिहास मुगल शासन काल की तरह मिटाया नहीं जा सकता। 

लोगों को आज के अपने कामकाज, आज के अपने रोजगार के बारे में एक बार फिर से सोचना चाहिए क्योंकि इन सबका भविष्य कैसा रहेगा, इसका कोई ठिकाना नहीं है। एक तरफ ड्रोन सरीखी टेक्नालॉजी, और दूसरी तरफ ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी तकनीक, इन दोनों का मेल दुनिया के लिए जानलेवा साबित हो सकता है, कामगारों के लिए बेरोजगारी ला सकता है, और दुनिया के लोगों के पास महज इसे देखते रहने के सिवाय और कुछ नहीं है क्योंकि सरकारें रफ्तार से इस सुनामी को रोक नहीं सकतीं। हम तो इसकी सिर्फ चर्चा कर रहे हैं क्योंकि लोगों को ऐसे किसी खतरे की तरफ से सावधान रहना चाहिए, तैयार रहना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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