विचार / लेख

विपक्ष का भाजपामुक्त भारत अभियान
19-May-2023 3:10 PM
विपक्ष का भाजपामुक्त भारत अभियान

अभी लोकसभा चुनाव होने में लगभग एक साल बाकी है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे विपक्षी दलों के मेल मिलाप की बैठकों का दौर भी बढ़ेगा। नीतीश कुमार और ममता बनर्जी भले ही ज्यादा मुखरता से इस अभियान को हवा दे रहे हैं लेकिन इसकी मजबूती के लिए कांग्रेस पर ही निर्भर रहना पड़ेगा क्योंकि वही एक ऐसी पार्टी है जिसकी जड़ें अभी भी पूरे देश में फैली हैं।

 डॉ. आर.के.पालीवाल

विपक्षी दलों के भाजपा मुक्त अभियान में दो सबसे प्रमुख किरदार हैं। भाजपा ने कांग्रेस मुक्त अभियान चलाया था लेकिन भाजपा मुक्त अभियान में कांग्रेस अभी फ्रंट पर नहीं है। इसके एक प्रवक्ता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश यादव और दूसरी ममता बनर्जी हैं। नीतीश यादव के साथ उपग्रह की तरह तेजस्वी यादव भी रहते हैं। दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े, कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के दौरान भी तेजस्वी यादव मौजूद थे और कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मुलाकात में भी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी थी। ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार के लिए अब बिहार के प्रशासन पर ध्यान देने से ज्यादा जरूरी भाजपा मुक्त भारत अभियान हो गया है।

कांग्रेस की भी धीरे धीरे यह समझ में आने लगा है कि वह अगले आम चुनाव में अपने बूते सरकार बनाने के आसपास दूर दूर तक नहीं है। यही कारण था कि महाराष्ट्र में उसने अपनी धुर विरोधी रही शिव सेना के साथ गठबंधन की सरकार में तीसरे दर्जे पर शामिल होना स्वीकार किया था। यदि कांग्रेस को केंद्र की सत्ता में वापसी करनी है तो वह किसी बड़े गठबंधन के साथी के रूप में ही हो सकती है। यह लोकसभा में सीट संख्या पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस की स्थिति नेतृत्व प्रदान करने की रहेगी या किसी और दल के नेतृत्व में सरकार में प्रवेश पाने की।

अरविंद केजरीवाल भी अब समझ गए हैं कि उन्हें भी अब केंद्र की सत्ता में शिरकत करने के लिए और भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार से दो दो हाथ करने के लिए अपनी अब तक की एकला चलो की नीति में बदलाव करना पड़ेगा। शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया के जेल जाने और खुद  पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने के बाद आम आदमी पार्टी की आंतरिक स्थिति काफ़ी कमजोर हुई है , इसलिए उन्हें भी निकट भविष्य में गठबंधन की बैसाखियों के सहारे की सख्त जरूरत महसूस हो रही है।

जिस तरह से नीतीश कुमार उत्तर भारत की हिंदी बेल्ट में विपक्षी एकता के लिए प्रयास कर रहे हैं उसी तरह ममता बनर्जी पड़ोसी उड़ीसा के साथ अपने क्षेत्रीय गठबंधन को ज्यादा विस्तार देने की कोशिश कर रही हैं और इस सिलसिले में नवीन पटनायक से उनकी मुलाकात हुई है। नीतीश कुमार और ममता बनर्जी की तरह दक्षिण में भी भाजपा के सामूहिक विरोध की सुगबुगाहट है।दक्षिण में जिस तरह कभी आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू राष्ट्रीय राजनीति में ज्यादा प्रभावी भूमिका निभाने की महत्वाकांक्षा रखते थे कुछ वैसी ही महत्वाकांक्षा तेलंगाना के काफ़ी समय से मुख्यमंत्री रहे के चंद्रशेखर राव में दिखाई देती है। वे भी अरविंद केजरीवाल सहित अन्य विपक्षी नेताओं से संपर्क साध रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति का विस्तार कर भारत राष्ट्र समिति के लिए अभियान शुरू कर दिया है।

मजबूत विपक्ष निश्चित रूप से लोकतंत्र के सही क्रियान्वयन और विशेष रूप से लोकतंत्र को तानाशाही की तरफ बढऩे से रोकने के लिए बहुत आवश्यक है। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी का विजय रथ लगातार आगे बढ़ा है उसे देखते हुए बिना एकजुट हुए अकेले अकेले लड़ता विपक्ष मजबूत नहीं हो सकता। इस लिहाज से विपक्षी एकता अधिकांश दलों की मजबूरी भी है। लगातार दो बार केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता थोडी ढलान पर तो है लेकिन इसमें अभी इतनी कमी दिखाई नहीं देती जिससे विपक्षी दल एंटी इनकंबेंसी फैक्टर की नैया के सहारे लोकसभा की चुनावी वैतरणी पार करने की उम्मीद कर सके। अभी लोकसभा चुनाव होने में लगभग एक साल बाकी है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे विपक्षी दलों के मेल मिलाप की बैठकों का दौर भी बढ़ेगा। नीतीश कुमार और ममता बनर्जी भले ही ज्यादा मुखरता से इस अभियान को हवा दे रहे हैं लेकिन इसकी मजबूती के लिए कांग्रेस पर ही निर्भर रहना पड़ेगा क्योंकि वही एक ऐसी पार्टी है जिसकी जड़ें अभी भी पूरे देश में फैली हैं।

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