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चेन्नई में उत्तर भारत से आने वाले बाल मजदूरों की बढ़ती संख्या, समाधान क्या है?
21-May-2023 4:38 PM
चेन्नई में उत्तर भारत से आने वाले बाल मजदूरों की बढ़ती संख्या, समाधान क्या है?

  प्रमिला कृष्णन

विग्नेश (बदला हुआ नाम) अभी सात साल के नहीं हैं, उन्हें बिहार के सीतामढ़ी जिले से चेन्नई लाया गया था।

सीतामढ़ी के छोटे से गांव रूपाली के विग्नेश ने चेन्नई आने से पहले ट्रेन नहीं देखी थी और ना ही रेलवे स्टेशन के बारे में सुना था। उन्हें ये भी नहीं मालूम था कि पहली ट्रेन यात्रा करके वे चेन्नई के एक वर्कशॉप में बंधुआ मजदूरी करने जा रहे हैं।

विग्नेश पिछले एक साल से सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक एक स्कूल बैग फैक्ट्री में किसी बंधुआ मज़दूर की तरह काम कर रहे थे। जब एक जांच में पता चला कि विग्नेश जैसे 29 लडक़े वहां काम कर रहे हैं, तब जाकर सरकारी अधिकारी उन्हें बचाने के लिए पहुंचे।

वहां विग्नेश सहित कई छोटे लडक़े ढेर सारे स्कूली बैग और रूई के बीच मानो फंसे हुए थे।

विग्नेश ने बताया, ‘मैं साँस नहीं ले सकता। सेठ ने कहा है कि कुछ मत बोलना। मुझे कुछ नहीं मालूम। मेरी मां के पास ले चलो। मुझे जल्दी से ले चलो।’

विग्नेश उस व्यक्ति का नाम भी नहीं जानते जिसने यहां काम पर रखा था। विग्नेश ने बताया, ‘एक दिन एक अंकल आए और उसे ट्रेन में ले आए और कुछ दिनों बाद ही उसे पता चला कि वह चेन्नई आ पहुंचा है।’

उसने बताया, ‘यहां आपको घंटों एक जगह बैठना पड़ता है और एक-एक जि़प सिलना पड़ता है। मेरे हाथ बुरी तरह से जख़्मी हो गए हैं।’ इसके बाद वो शांत होकर बैठ गया।

एक हफ्ते में 400 बैग बनाने का टारगेट

विग्नेश सहित सभी 29 बच्चों को अस्थायी रूप से चेन्नई के रायपुरम में सरकारी किशोर गृह में रखा गया है।

बीबीसी तमिल ने इन बाल श्रमिकों से मुलाकात की। आठ से 15 वर्ष के बीच के कई बच्चे कभी स्कूल नहीं गए।

बैग के लिए जि़प सिलने, बैग के लिए कपड़ा काटने और सिलने जैसे काम में लगे बच्चों की उंगलियों पर कैंची से कटने के निशान हैं। बच्चों के हाथ में छाले भी पड़े हुए थे।

विग्नेश जैसे लडक़े एक हफ्ते में करीब 400 बैग की सिलाई करते थे। विग्नेश जैसे कई बच्चे पैसा कमाने के लिए बिहार के सीतामढ़ी जिले के रूपाली गांव से चेन्नई आए हैं।

श्रम कल्याण विभाग के अधिकारियों के अनुसार, कई सौ बाल श्रमिक कोरोना लॉकडाउन के बाद छोटे समूहों में तमिलनाडु में प्रवेश कर चुके हैं। साथ ही उनका कहना है कि उनका सर्वे करना बहुत मुश्किल है।

13 वर्षीय सुभाष (बदला हुआ नाम) को इन मज़दूरों में शामिल हुए तीन महीने हो चुके हैं। जैसे ही दोनों बड़ी बहनों की शादी हुई, सुभाष और बड़े भाई दोनों चेन्नई में काम करने आ गए।

सुभाष ने बताया कि उन्हें पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए काम पर आए, लेकिन यहां आने के बाद ही एहसास हुआ कि वो फंस गए हैं।

वो बताते हैं, ‘हम हफ्ते में एक बार माता-पिता से बात करते हैं, लेकिन मैं इस तरह काम नहीं करना चाहता। आराम के बिना, मेरे दोस्तों के बिना और माँ के हाथ से बने खाने के बिना, मुझे काम करना पसंद नहीं है।’

सुभाष ने यह भी बताया कि घर जाने के बाद अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलेंगे और टीवी पर मोटू पतलू सीरियल देखेंगे।

उन्होंने कहा, ‘कई दिन हो गए चैन से सोए। हमारे पास छुट्टियां नहीं थी। हम एक ही कमरे में काम करते थे, वहीं एक तरह शौचालय था और दूसरी तरफ़ रसोई। जिस दिन हमें वहां से निकाल कर किशोर गृह में भर्ती कराया गया उस दिन हम शांति से सोए थे।’

कोरोना के बाद बाल श्रम बढ़ा

श्रम कल्याण विभाग के चेन्नई जोन की असिस्टेंट कमिश्नर जयालक्ष्मी ने उस वर्कशॉप की जांच की थी, जहां विग्नेश और सुभाष काम कर रहे थे।

उन्होंने बीबीसी तमिल को बताया, ‘मुझे नहीं पता कि एक जगह इतने सारे बच्चे कैसे काम कर रहे थे। वे बहुत खराब कामकाजी परिस्थितियों में रहे थे। ना तो रहने की जगह थी, और ना ही अच्छा खाना। उन्हें लगातार काम करना पड़ रहा था।’

पिछले एक साल में अकेले चेन्नई शहर में 113 बाल मजदूरों को रेस्क्यू किया गया है। बड़ी संख्या में बच्चे उत्तरी राज्यों से हैं।

अधिकारियों ने कहा कि अप्रैल में बचाए गए 29 बच्चों में से 28 बिहार राज्य के थे, जबकि एक नेपाल से। तमिलनाडु में पिछले साल बाल श्रम के 160 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। अधिकारियों ने बताया कि 40।46 लाख रुपये जुर्माना वसूला गया है।

जयालक्ष्मी ने बीबीसी तमिल को बताया, ‘हम कॉलेज के छात्रों को प्रशिक्षित कर रहे हैं और शहरों और गांवों में बाल श्रमिकों का पता लगा रहे हैं।’

‘बाल मजदूरों की पहचान करने में समस्या होती है क्योंकि वे उन्हें समूह में लाकर घर में रखते हैं। हमारे बचाव के समय, ये 29 बच्चे दूसरी मंजिल पर एक छोटे से कमरे में ठूंसे गए थे। कुछ बच्चे रुई के ढेर के बीच छिपे हुए थे।’

उनका यह भी कहना है कि राज्य सरकारें खुद यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि छुड़ाए गए बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप दिया जाए और वे फिर से बाल मज़दूर न बनें।

उन्होंने कहा, ‘29 बच्चों को रोजग़ार देने वाले दो लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। जब हम बच्चों को छुड़ाने गए तो उन्होंने हमें धमकी दी थी।’

देश में 81 लाख बाल मजदूर

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 तक दुनिया भर में बाल श्रमिकों की संख्या बढक़र 16 करोड़ हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना काल के लॉकडाउन के चलते बाल मज़दूरों की संख्या बढ़ी है।

भारत में बाल श्रम को लेकर काम कर रहे कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में आने वाले सालों में बाल मजदूरों की संख्या में कमी होगी।

बाल मजदूरों की संख्या 2021 में 81.2 लाख थी, इसके 2025 में घटकर 74.3 लाख होने की संभावना है। लेकिन रिपोर्ट कहती है कि इस संख्या को केवल तभी कम किया जा सकता है जब लगातार प्रयास न केवल बच्चों को बचाने पर केंद्रित हों, बल्कि उन्हें स्कूल भेजने और उन्हें काम पर लौटने से रोकने पर भी ध्यान दिया जाए।

बच्चे जो बिहार से तमिलनाडु पहुंचे

बीबीसी तमिल से बात करते हुए एक बाल मज़दूर की मां 35 साल की रंजू देवी ने बताया कि रुपाली गांव में बच्चों को काम पर भेजना कोई नई बात नहीं है।

फोन पर बात करते हुए रंजूदेवी ने कहा, ‘हमारे गांव में गरीब परिवार वाले अपने पहले बच्चे को इस तरह बाहर के शहरों में भेज देते हैं। (बाकी पेज 8 पर)

मेरे पति को बुखार से मरे आठ साल हो चुके हैं। मुझे चार बच्चों का पेट भरना है। इसलिए, मैंने अपने पहले बेटे को चेन्नई भेजा। उन्होंने मुझे 30 हजार रुपये दिए, इसलिए मैंने भेजा था।’

अब जब उनके बेटे की बरामदगी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि दो हफ्ते पहले काम वाली जगह से फोन आया था कि अधिकारियों ने उनके बेटे को बरामद कर लिया है।

वह कहती हैं, ‘और क्या कर सकती हूं? परिवार में गरीबी है, खर्च करने के लिए पैसा नहीं है। तो, मैंने इसे भेज दिया। मुझे डर है कि उन्हें लेने वाले एजेंट वापस आएंगे और पैसे वापस मांगेंगे।’

सरकारी चिल्ड्रेन होम शेल्टर

संसद में राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन कार्यक्रम पर 2021 में पेश की गई रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि बिहार, ओडिशा और उत्तर प्रदेश सहित राज्यों में 2018 से 2021 तक एक भी बाल मजदूर को मज़दूरी के दुष्चक्र से नहीं निकाला गया।

इसी अवधि के दौरान तमिलनाडु में हर साल कम से कम 1,500 बच्चों को इस दलदल से बाहर निकाला गया। साल 2019-2020 के दौरान तमिलनाडु में 3,928 बाल मजदूरों को बचाया गया है।

हमने सीतामढ़ी के जि़लाधिकारी मनीष कुमार मीणा से संपर्क करने की कई बार कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। जवाब मिलने पर हम इस स्टोरी को अपडेट करेंगे।

दोनों राज्यों के लिए समस्या

अन्य राज्यों से बाल श्रम को रोकने के उपायों के बारे में बात करते हुए, बाल कल्याण कार्यकर्ता, देवनियन कहते हैं कि दो बिहार और तमिलनाडु के अधिकारी इसका समाधान ढूंढ सकते हैं।

उन्होंने बताया, ‘जब बड़ी संख्या में बच्चों को बचाया जाता है, तो संबंधित राज्य के अधिकारियों और तमिलनाडु के अधिकारियों को तुरंत बात करनी चाहिए और बचाए गए बच्चों को काम पर वापस जाने से रोकने के प्रयास करने चाहिए।’

‘बिहार राज्य के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे कम से कम तीन साल तक स्कूल में रहें। जहां तक तमिलनाडु का सवाल है, अगर उत्तर भारत के बच्चे ट्रेन और बस स्टेशनों पर समूहों में आते हैं, तो उनसे पूछताछ की जानी चाहिए कि वे किसके साथ हैं और क्यों यहां आए हैं।’

देवनियन कहते हैं, ‘कई बार, हम इस जांच में तुरंत बाल श्रम का पता लगा सकते हैं।’

उनका कहना है कि चूंकि प्रवासियों की संख्या दर्ज नहीं की जाती है, इसलिए बाल श्रमिकों के आगमन की निगरानी नहीं होती।

उन्होंने बताया, ‘अगर बच्चों को बचाया जाता है और वे काम पर वापस नहीं जाते हैं, तो इसका मतलब है कि हम सफल हुए हैं। कई बार, ऐसे बच्चों को फिर से दूसरे शहरों में काम करने के लिए भेजा जाता है।’

उन्होंने यह भी कहा कि बाल श्रम की समस्या को दोनों राज्यों के लिए एक समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए और यदि समस्या का समाधान खोजने की दृष्टि से देखा नहीं गया तो बच्चों को महज आंकड़ों के रूप में देखा जाएगा।

बाल श्रम की सूचना देने के लिए हेल्पलाइन नंबर: 1098

 

शिकायत दर्ज करने के लिए: आप www.ebaalnidan.nic.in पर पंजीकरण करा सकते हैं। (www.bbc.com/hindi)

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