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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नौकरियां पाने में बड़ा भ्रष्टाचार तो है, लेकिन सब कुछ अंधेरा नहीं है..
27-May-2023 4:09 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नौकरियां पाने में बड़ा भ्रष्टाचार तो है, लेकिन सब कुछ अंधेरा नहीं है..

फोटो : सोशल मीडिया

जिस वक्त अलग-अलग कई राज्यों में सरकारी नौकरियों के लिए इम्तिहान करने वाले राज्य के लोकसेवा आयोग या दूसरे संस्थान तरह-तरह के भ्रष्टाचार में उलझे हुए दिखते हैं, केन्द्र सरकार के मातहत काम करने वाली संस्था यूपीएससी ऐसे विवादों से परे दिखती है। सत्तारूढ़ पार्टी कोई भी रहे, देश के लिए सबसे ऊंचे अफसर छांटने वाली संघ लोकसेवा आयोग का काम ठीक चलते रहता है। इसलिए अभी जब यूपीएससी के नतीजों ने दिल्ली पुलिस के हवलदार रामभजन को चुना है, तो यह इस इम्तिहान की आम साख के मुताबिक ही बात है। रामभजन एक गरीब मजदूर परिवार से आए हैं, और खुद भी मजदूरी करते थे। राजस्थान से आकर दिल्ली पुलिस में नौकरी मिली, उन्होंने एक दूसरे पुलिस अफसर को देखा जो पहले दिल्ली पुलिस में सिपाही थे, और फिर यूपीएससी पास करके आईपीएस बने, तब से वे लगातार यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे। उनकी जिंदगी की इस असल कहानी पे हम यहां इसलिए लिख रहे हैं कि अगर नौकरियां और कॉलेजों में दाखिला देने वाले इम्तिहानों में ईमानदारी हो, तो कुछ ऐसे गरीब लोगों को भी मौका मिल सकता है। रामभजन की कहानी गांव के सरकारी स्कूल से शुरू, और फिर 12वीं के बाद पुलिस सिपाही बनने की है। नौकरी करते हुए ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन, रोज ड्यूटी के बाद सात-आठ घंटे यूपीएससी की तैयारी, और इम्तिहान के एक महीने पहले छुट्टी लेकर पूरे वक्त तैयारी। कई बार की कोशिशों के बाद उन्हें यह कामयाबी मिली है। 

अब सरकारी नौकरी के लिए छांटने वाले संस्थानों की बात अलग है, हम लोगों के सपनों के बारे में भी लिखना चाहते हैं। भ्रष्ट व्यवस्था को तो लोग बदल नहीं सकते, लेकिन उनके बीच ही जहां-जहां गुंजाइश निकल सकती है, उसके लिए तैयारी और कोशिश जरूर कर सकते हैं। हर बरस यूपीएससी और कई राज्यों के इम्तिहानों की खबरें आती हैं कि किस तरह किसी ऑटोरिक्शा ड्राइवर की बेटी ने कामयाबी पाई, या किसी मजदूर के बेटे ने। जिन लोगों को यह लगता है कि सब कुछ भ्रष्ट है, सब कुछ बिका हुआ है, ईमानदार मेहनत से कुछ भी हासिल नहीं हो सकता, उन्हें यह भी देखना चाहिए कि भ्रष्ट व्यवस्था के भीतर भी छोटी-मोटी ऐसी संभावना शायद हर जगह बची ही रहती है। और इन संभावनाओं तक वही गरीब पहुंच पाते हैं जो जमकर मेहनत करते हैं। जिन लोगों को यह लगता है कि भ्रष्ट व्यवस्था में मेहनत बेकार है, उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि जब तक वोटों के बहुमत से ऐसी सरकार न आए जो कि भ्रष्टाचार को खत्म करे, तब तक अपनी मेहनत और अपनी कोशिश के अलावा और कोई रास्ता तो है नहीं। एक भ्रष्ट परीक्षा या प्रतियोगिता तंत्र के भीतर मेहनत करते हुए भी लोग चाहे वहां कामयाबी न पा सकें, लेकिन अपने आपको तो मांज ही सकते हैं, अपने को पहले से बेहतर बना सकते हैं, और जिंदगी के दूसरे गैरसरकारी मुकाबलों के लिए भी तैयार कर सकते हैं। पाया हुआ ज्ञान, सीखा हुआ हुनर, और हासिल की हुई समझ कहीं नहीं जाते, किसी न किसी वक्त वे काम आते हैं, और उसी को ध्यान में रखते हुए लोगों को अपनी तैयारी तो जारी रखनी ही चाहिए, फिर चाहे वे भ्रष्ट तंत्र के भीतर कुछ पा सकें या नहीं। 

दूसरी बात यह भी है कि सरकारी नौकरियां बहुत बुरी तरह से घटती चल रही हैं। केन्द्र सरकार हर सार्वजनिक प्रतिष्ठान को बेचने के फेर में हैं, और उसके बाद तो नौकरियां सिर्फ निजी कंपनियों के हाथ रह जाएंगी, सरकार का अपना आकार घट जाएगा। इसलिए घटती हुई नौकरियों और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से अधिक उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, लोगों को अपने आपको अधिक काबिल, अधिक बेहतर बनाना चाहिए, और यह मानकर चलना चाहिए कि इम्तिहानों से परे ऐसे इंटरव्यू का सामना भी करना पड़ सकता है जहां पर उनका व्यक्तित्व भी काम आ सकता है, भाषा, बोलने का लहजा, सामान्य ज्ञान, और सहज-समझ सबकी कीमत हो सकती है। हिन्दुस्तान में आज दिक्कत यह लगती है कि बेरोजगार इतने हताश हैं, और सरकारी नौकरी के लिए रिश्वत का इंतजाम करते लगे रहते हैं कि वे सही तैयारी नहीं करते। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि सरकारी नौकरियों से परे निजी क्षेत्र में न तो उस तरह की रिश्वत चलती, न ही सलेक्शन में वैसा भ्रष्टाचार रहता। इसलिए असल तैयारी रिश्वत के बाद भी सरकारी नौकरी पाने में मदद कर सकती है, और बिना रिश्वत के निजी नौकरी पाने में भी। 

जिस मिसाल से हमने आज की यह बात शुरू की है उस पर लौटें, तो एक तकरीबन अनपढ़ मजदूर परिवार से निकलकर रामभजन 12वीं के बाद से दिल्ली पुलिस की मुश्किल नौकरी भी कर रहा है, और इम्तिहान की तैयारी भी। अपने ही दम पर, बिना किसी महंगी कोचिंग के, वो यहां तक पहुंचा, साथ-साथ 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ चुकी पत्नी की भी पढ़ाई शुरू करवाई, और गांव के स्कूल में उसका जाना शुरू करवाया। यह पूरा मामला उन तमाम लोगों के लिए एक बहुत बड़ी मिसाल है जो लोग मेहनत न करने के हजार किस्म के बहाने तलाशकर बैठे रहते हैं। बहुत से लोगों को बेहतर सहूलियते हासिल रहती हैं, और उन्हें यह भी देखना चाहिए कि वंचित तबके का एक लडक़ा किस तरह की अभावग्रस्त जिंदगी में कामयाबी हासिल करता है। आज इस मुद्दे पर लिखना सिर्फ इसीलिए है कि चारों तरफ भ्रष्टाचार का अंधेरा दिखता है, लेकिन ऐसी ही अंधेरी सुरंग के आखिर में इस किस्म की एक रौशन मिसाल भी दिखती है जिसे देखकर हर किसी को मेहनत करनी चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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