राष्ट्रीय
दिव्या आर्य
बारह साल से भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और छह बार से सासंद चुने जा रहे बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ एक महीने पहले जब पुलिस एफ़आईआर हुई तो चर्चा होने लगी कि उनकी गिरफ़्तारी अब तय है.
इसकी वजह ये कि पुलिस शिकायत में महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के साथ-साथ एक नाबालिग़ पहलवान के ख़िलाफ़ यौन हिंसा का आरोप भी शामिल है.
बृजभूषण सिंह सभी आरोपों को ग़लत बताते हैं.
भारतीय क़ानून औरतों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा से भी ज़्यादा संगीन नाबालिग़ों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा को मानता है. इसलिए ऐसे मामलों के लिए साल 2012 में विशेष पॉक्सो क़ानून पारित किया गया.
इस क़ानून में नाबालिग़ को सुरक्षा देने और विशेष अदालत में सीमित समय में केस की सुनवाई जैसे प्रावधान हैं.
साल 2019 में इसके तहत सज़ाएं और कड़ी की गईं और अधिकतम सज़ा आजीवन क़ैद से बढ़ाकर मौत की सज़ा कर दी गई.
बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ यौन हिंसा का एक मामला पॉक्सो क़ानून के तहत ही दर्ज किया गया है.
लेकिन रविवार को जब बृजभूषण सिंह की गिरफ़्तारी की मांग उठा रहे पहलवानों को उनके प्रदर्शन स्थल से पुलिस ने जबरन हिरासत में लिया तब वो नई संसद के उद्घाटन समारोह में हिस्सा ले रहे थे.
पहलवानों के मामले में क्या कहता है पॉक्सो क़ानून?
शिकायतकर्ताओं की पहचान छुपाने और उनकी सुरक्षा के लिए बृजभूषण सिंह के खिलाफ़ की गई एफआईआर सार्वजनिक नहीं की गई है.
बीबीसी को मिली जानकारी के मुताबिक एफ़आईआर में यौन उत्पीड़न से जुड़ी धाराओं 354, 354A, 354D के अलावा पॉक्सो क़ानून की धारा (10) 'ऐग्रवेटेड सेक्सुअल असॉल्ट' यानी 'गंभीर यौन हिंसा' है.
पॉक्सो क़ानून में दर्ज किए जानेवाले बलात्कार, सामूहिक बलात्कार जैसे अति-संगीन अपराधों में पुलिस को फ़ौरन गिरफ़्तारी करनी होती है, लेकिन 'गंभीर यौन हिंसा' उस श्रेणी में नहीं आता.
इस धारा में कम से कम पांच और ज़्यादा से ज़्यादा सात साल की सज़ा का प्रावधान है.
बाल अधिकार एनजीओ 'हक़' में वकील, कुमार शैलभ के मुताबिक़ पॉक्सो धारा (10) में ज़मानत का प्रावधान है और अक्सर इसमें एफ़आईआर दर्ज होने पर अभियुक्त अग्रिम ज़मानत ले लेते हैं.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया, "इस धारा में पुलिस पर गिरफ़्तारी की कोई बाध्यता नहीं है, अगर पुलिस को लगे कि इसके बिना जांच में बाधा आएगी, या जिस पर आरोप लगे हैं वो भाग जाएंगे तो उस बिनाह पर वो गिरफ़्तार कर सकती है."
दिल्ली के जंतर मंतर के फ़ुटपाथ पर एक महीने तक दिन-रात बिताते रहे पहलवानों की मांग है कि बृजभूषण सिंह को गिरफ़्तार किया जाए.
गिरफ़्तारी की मांग की वजह
बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ उनकी एफ़आईआर आसानी से नहीं हुई थी. थाने में शिकायत करने के बाद भी जब एफ़आईआर जर्ज नहीं हुई तो महिला पहलवानों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. कोर्ट के पुलिस को नोटिस देने के बाद ही एफ़आईआर दर्ज हुई.
किसी नाबालिग़ के जननांगों को सेक्सुअल मकस़द से छूना या उसे अपने जननांगों को छूने के लिए मजबूर करना 'यौन हिंसा' की परिभाषा में आता है.
अगर ऐसा बर्ताव करनेवाला व्यक्ति ताक़तवर है और अपने पद, नौकरी इत्यादि की वजह से नाबालिग़ के विश्वास का ग़लत इस्तेमाल कर सकता है तो इसे 'गंभीर यौन हिंसा' माना जाता है.
कुमार शैलभ का मानना है कि पहलवानों में ये संदेह है कि अभियुक्त की ताक़त और दबदबे के चलते वो पीड़िताओं और गवाहों पर दबाव बना सकते हैं, इसलिए उनका गिरफ़्तार किया जाना ज़रूरी है.
शैलभ कहते हैं, "इस मामले में कार्रवाई ना करना एक बहुत बुरा संदेश दे रहा है, और पॉक्सो क़ानून बनाने की नीयत और अहमियत पर ही सवाल खड़े कर रहा है."
यौन उत्पीड़न की जांच समिति ने क्या पाया?
बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोप पहली बार इस साल जनवरी में तब सामने आए जब विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया ने दिल्ली के जंतर-मंतर में जुटकर इन्हें मीडिया के सामने रखा.
भारतीय कुश्ती महासंघ में उस वक्त यौन उत्पीड़न की शिकायतों का समाधान करने के लिए और जागरूकता फैलाने के लिए कोई 'इंटरनल कमेटी' नहीं थी.
ऐसी कई कमेटियों की सदस्य रहीं, वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी मूर्ति के मुताबिक़ यौन उत्पीड़न रोकथाम क़ानून 2013 के तहत हर बड़े कार्यक्षेत्र के लिए ऐसी कमेटी बनाना इसलिए ज़रूरी है कि काम की जगह सुरक्षित बने.
बीबीसी से बातचीत में लक्ष्मी ने कहा, "कमेटी सिर्फ़ शिकायत आने पर बनाई जाएगी तो उतनी कारगर नहीं होगी, इसमें सदस्यों का चयन भी शिकायत करनेवालों और जिनके ख़िलाफ़ आरोप लगे हैं, उसके मुताबिक़ हो सकता है, और पूरी कमेटी की स्वायत्तता पर सवाल उठ सकते हैं."
जनवरी में प्रदर्शनकारियों की शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए 'इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन' ने एक 'ओवरसाइट कमेटी' का गठन किया जिसकी रिपोर्ट के एक छोटे हिस्से को अप्रैल में सार्वजनिक किया गया.
खेल मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि जांच समिति के सुझावों पर गौर किया जा रहा है और कुछ प्रारंभिक बातें निकल कर आई हैं, "संघ में यौन उत्पीड़न की रोकथाम और जागरूकता फैलाने के लिए इंटर्नल कमेटी नहीं है और संघ और खिलाड़ियों के बीच बेहतर संवाद होने, और बातचीत में पारदर्शिता लाने की ज़रूरत है."
जब तक फ़ैसला ना हो, महिला पहलवान सुरक्षित कैसे रहें?
लक्ष्मी मूर्ति कहती हैं, "कमेटी के काम करने को तौर तरीक़े पर पहलवानों ने पहले ही सवाल उठाए हैं, ये सभी सदस्य एक पूरे प्रशासन का हिस्सा हैं जिसमें सबके तार सबसे जुड़े हैं. सबसे कारगर तो ये होता कि कमेटी में एकदम बाहर के सदस्य रखे जाते."
उनके मुताबिक़, मौजूदा माहौल में संघ और खिलाड़ियों के बीच विश्वास वापस कायम करने के लिए 'ओवरसाइट कमेटी' की रिपोर्ट सार्वजनिक करना पहला क़दम होगा.
यौन उत्पीड़न रोकथाम क़ानून 2013 के तहत आरोप साबित होने पर सज़ा के तौर पर पद से हटाए जाने या सस्पेंड किए जाने जैसे प्रावधान हैं.
बृजभूषण सिंह अभी भी भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद पर हैं.
हालांकि खेल मंत्रालय के मुताबिक़, आरोप सामने आने के बाद से कुश्ती महासंघ का रोज़मर्रा का काम पहले 'ओवरसाइट कमेटी' देख रही थी और अब एक दो सदस्यीय 'ऐड-हॉक कमेटी'.
यही 'ऐड-हॉक कमेटी' कुश्ती महासंघ के आगामी चुनाव भी आयोजित करवाएगी.
बृजभूषण सिंह पिछले बारह साल से अध्यक्ष पद पर हैं और नियमों के मुताबिक़ अब अगला चुनाव नहीं लड़ सकते.
इसके बावजूद पहलवानों ने बार-बार उनके प्रभुत्व और प्रदर्शन करने की वजह से अपने करियर के डूबने के डर की बात कही है.
'ओवरसाइट कमेटी' की सीलबंद रिपोर्ट दिल्ली पुलिस को दे दी गई है. पर जब तक इसे सार्वजनिक नहीं किया जाता, ना आरोपों की तस्दीक हो सकती है ना बृजभूषण शरण सिंह पर कोई कार्रवाई.' (bbc.com/hindi)