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नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता में नौ साल सरकार के सामने क्या हैं नौ चुनौतियां?
30-May-2023 3:42 PM
नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता में नौ साल सरकार के सामने क्या हैं नौ चुनौतियां?

  जुबैर अहमद

30 मई 2019 को ही नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने मंगलवार को सत्ता में अपने नौ साल पूरे कर लिए हैं। इसके साथ ही नरेंद्र मोदी किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री बने रहने वाले शख्स बन गए हैं। इन नौ सालों में जहां उनकी ढेर सारी उपलब्धियां रहीं, वहीं उन्हें कई नाकामियां भी मिलीं।

उनके प्रशंसकों के मुताबिक, बीते नौ सालों में मोदी सरकार की खास कामयाबियां ये रहीं-

मोदी सरकार ने गरीबी हटाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं जिनमें जनधन योजना शामिल है। इसके साथ ही ‘हर घर शौचालय’, स्वच्छ भारत अभियान और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं ख़ास हैं।

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद से वहां तेज़ी से विकास कराए जाने का दावा किया जाता है।

पीएम मोदी के समर्थक कहते हैं कि दिल्ली में कभी कोई ऐसी सरकार नहीं आई जिसने पूर्वोत्तर राज्यों के विकास पर इतना ध्यान दिया हो जितना मोदी सरकार ने अब तक दिया है।

मोदी सरकार की विदेश नीति के कारण दुनिया भर में भारत का कद बढ़ा है, इसे उनके आलोचक भी मानते हैं।

कहां नाकाम मानी जा रही है मोदी सरकार

हालांकि, कुछ विवादित पहलुओं के चलते कुछ लोग मोदी सरकार को नाकाम मानते हैं, खासतौर से इन क्षेत्रों में-

आर्थिक सुधार- कुछ लोगों का मानना है कि मोदी सरकार की आर्थिक सुधार की नीतियां सभी वर्गों को फायदा पहुंचाने में सफल नहीं रही हैं। वे दावा करते हैं कि नौकरियां बढऩे की जगह बेरोजग़ारी बढ़ रही है और आय वितरण में खाई गहरी होती जा रही है। अदानी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों की संपत्ति कई गुना बढ़ी है जबकि गरीबों की आय घटी है।

इनका ये भी कहना है कि नोटबंदी काले धन को सिस्टम से खत्म करने का नाकाम और असफल कदम साबित हुई क्योंकि काला धन सिस्टम में उसी मात्रा में वापस आया जिस मात्रा में नोटबंदी से पहले मौजूद था।

किसानों से जुड़ी नीतियां- मोदी सरकार की कृषि क्षेत्र से जुड़ी कुछ नीतियों पर भी विवाद देखा गया है। किसान आंदोलन के दौरान, किसान संगठनों की ओर से इन कृषि कानूनों पर विरोध दर्ज कराया गया था। उनका कहना था कि ये कानून उनकी आय कम करेंगे और कृषि व्यवसाय को बड़ी कंपनियों के हवाले करेंगे।

धार्मिक मुद्दे- कुछ लोगों के मुताबिक़, मोदी सरकार के दौर में समाज में विभाजन बढ़ा है। चुनावों के दौरान हिंदू-मुस्लिम मुद्दों का सहारा लिया जाता है जिससे देश में विविधता और धार्मिक सद्भाव को ठेस पहुंची है।

अब लोगों की नजऱ मोदी सरकार की चुनौतियों पर टिकी होगी। विशेषज्ञ कहते हैं कि 2024 का आम चुनाव जीतना उनके लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है।

इसके साथ ही उनके सामने और भी कई अहम चुनौतियां हैं-

1. विपक्षी एकता- विपक्षी एकता मोदी सरकार की एक बड़ी चुनौती बन सकती है। आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष कहते हैं, ‘कर्नाटक में कांग्रेस की भारी जीत के बाद नरेंद्र मोदी को घरेलू मोर्चे पर फिर से एकजुट होने की कोशिश करते विपक्ष का सामना करना पड़ रहा है।

कर्नाटक की जीत ने वो मिथक तोड़ दिया है कि मोदी उस समय भी चुनाव जीत सकते हैं जब भाजपा को तीव्र सत्ता-विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा हो। एकजुट विपक्ष 2024 में मोदी के लिए सबसे बड़ी समस्या बनने जा रहा है। जीत और हार का फ़ैसला शायद विपक्षी एकता सूचकांक द्वारा तय किया जाएगा।’

2.बढ़ती बेरोजगारी- विशेषज्ञ मानते हैं कि बेरोजग़ारी मोदी सरकार की सबसे अहम चुनौतियों में से एक है क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण, भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा है। मोदी सरकार के सामने अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और करोड़ों बेरोजग़ारों के लिए नौकरी के अवसर पैदा करने की चुनौती है।

3. किसान संकट- भारतीय किसान कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जिन्हें हल करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि मोदी सरकार को किसानों की समस्याओं का समाधान निकालने की जरूरत है।

4. आत्मनिर्भर भारत और सप्लाई चेन- प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना महामारी के बीच 12 मई, 2020 को देशवासियों से भारत को एक आत्मनिर्भर देश बनाने का वादा किया था। उन्होंने आयात कम करने और निर्यात को बढ़ावा देने की योजनाएं लाने की भी घोषणा की थी।

इस कदम का मतलब चीन से आयात को काफी हद तक कम करना और उस पर अपनी निर्भरता को बहुत हद तक कम करना था। लेकिन आत्मनिर्भरता की घोषणा के बाद से चीन से द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल के अंत तक एक साल में ये व्यापार 130 अरब डॉलर के करीब पहुँच गया था।

सरकार ने देश को उत्पादन का हब बनाने और भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहन देने के लिए एक योजना भी शुरू की जिसे ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ कहा जाता है। इसके तहत कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारी मदद मिलती है।

इससे उत्पादन बढ़ा है और भारत अब स्मार्टफोन बनाने वाले दुनिया के सबसे अहम देशों में से एक बन गया है। विशेषज्ञ कहते हैं कि किसी भी देश को आत्मनिर्भर बनने में समय लगता है।

दिल्ली स्थित फोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में चीन से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर फैसल अहमद कहते हैं, ‘चीन की सप्लाई चेन पर निर्भरता कम करना एक लंबी प्रक्रिया है और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहल को हमारी ‘आपूर्ति से जुड़ी बाधाओं’ (supply-side constraints) को कम करने के साथ ही हमारी ‘घरेलू उत्पादन क्षमता' को विकसित करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे हमें और अधिक लचीला बनने और हमारी वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में मदद मिलेगी।’

5.विदेश नीति की चुनौतियां- विदेशी मामलों पर नजऱ रखने वालों के मुताबिक, मोदी सरकार के लिए आने वाले सालों में चीन से डील करना एक अहम चुनौती बनी रहेगी और चीन भारत के लिए सिरदर्द बना रहेगा।

वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष कहते हैं, ‘विदेश नीति के स्तर पर चीन एक बढ़ता हुआ सिरदर्द है और आगे चलकर भी चीन मोदी सरकार के लिए सिरदर्द बना रहेगा। अब तक सरकार ने भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के मुद्दे पर भारत के लोगों को केवल धोखा दिया है।’

‘एक झूठ फैलाया गया है और मीडिया ने एक सरकार प्रायोजित कहानी बनाई है कि मोदी सुपरमैन हैं जिन्होंने चीन को सबक सिखाया है। लेकिन आम तौर से लोग उस पर विश्वास नहीं कर रहे हैं।’

प्रोफेसर फ़ैसल अहमद कहते हैं, ‘चीन के साथ भारत का तालमेल एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा बना हुआ है, चाहे वो सीमा विवाद को हल करना हो या चीनी सप्लाई चेन पर निर्भरता कम करना और हिंद महासागर में सुरक्षा और नेविगेशन की स्वतंत्रता बनाए रखना, ये सब चुनौतियां बनी हुई हैं।’

उनका कहना है कि इन सब मुद्दों को हल किया जा सकता है और ये भारत के पक्ष में जा सकता है। वे कहते हैं, ‘वास्तव में, इन सभी मोर्चों पर भारत के लिए व्यावहारिक लाभ की संभावनाएं हैं।’

उनके मुताबिक, तीन तरीकों से इसका हल निकाला जा सकता है। पहला, भारत-चीन बॉर्डर अफ़ेयर्स को लेकर दोनों पक्ष के बीच बातचीत हर हाल में जारी रखनी चाहिए और उच्च स्तरीय बातचीत के लिए माहौल सहज करने की कोशिश जारी रखनी चाहिए।

दूसरे चीन पर निर्भरता कम करने के लिए सप्लाई चेन को मजबूत करना चाहिए और उत्पादकता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।

प्रोफेसर फैसल। के मुताबिक, तीसरा रास्ता ये है कि सभी ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक कारणों से भारत हिंद महासागर में ‘सुरक्षा समाधान प्रदान’ करने की स्थिति में है। अमेरिका या चीन जैसे देश इस क्षेत्र में ख़ुद को मुखर कर सकते हैं, लेकिन भारत को नौसैनिक आधुनिकीकरण कार्यक्रमों का विस्तार करके हिंद महासागर में सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं का समाधान करने वाले देश की भूमिका निभानी होगी।

नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक कहने लगे हैं कि मोदी काल में भारत एक विश्वगुरु बन चुका है और इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साख बहुत बेहतर हुई है।

जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में अप्लायड इकोनॉमिक्स विभाग के प्रोफेसर स्टीव एच. हैंकी के मुताबिक, ‘प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत भले ही वैश्विक शक्ति न बना हो, लेकिन विश्व पटल पर एक महत्वपूर्ण देश जरूर बन गया है।’

डॉक्टर हैंकी का कहना है कि भारत की प्रभावशाली विदेश नीति का लाभ भारत को मिल रहा है। मोदी अपनी विदेश नीति कार्ड का बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग कर रहे हैं।

उनके अनुसार, एक विश्वगुरु बनने के लिए मोदी सरकार को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यूक्रेन में जारी युद्ध में तटस्थ रुख बनाए रखना भारत की विदेश नीति के लिए एक बड़ी चुनौती है। डॉक्टर फैसल कहते हैं कि भारत के लिए अमेरिका-पश्चिमी देशों और रूस के बीच निष्पक्षता बनाए रखना एक चुनौती होगी।

6. विभाजित समाज को जोडऩा एक बड़ी चुनौती- सामाजिक कार्यकर्ताओं और उदार राजनीतिक विश्लेषकों के बीच आम सहमति यह है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय समाज हिंदुओं और मुसलमानों के बीच, ऊंची और निचली जातियों के बीच विभाजित हो गया है।

आशुतोष कहते हैं, ‘उनकी राजनीति ‘फूट डालो और राज करो’ की है। उनका समाज को एकजुट करने का कोई इरादा नहीं है क्योंकि वह हिंदुत्व द्वारा निर्देशित हैं जो अपने स्वभाव से मुस्लिम विरोधी भावना पर आधारित है। चूंकि उन्होंने देखा है कि धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण एक जीत का फ़ॉर्मूला है, ख़ासकर उनके अपने चुनावों के लिए।  ऐसे में मुझे उनकी ओर से किसी सुलह के प्रयास की कोई संभावना नजऱ नहीं आती।’

7. लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष भारत को बचाना- लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के एक्टिविस्ट कहते हैं कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकतंत्र पीछे जा रहा है और संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।

8. पर्यावरण संरक्षण- मोदी सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं। हालांकि, पर्यावरण संरक्षण नीतियों का सख़्ती से कार्यान्वयन ज़रूरी है।

9. भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही- कई विदेशी निवेशक और देश तमाम व्यापारी आम तौर पर ये शिकायत करते हैं कि भ्रष्टाचार और लालफीताशाही भारत में अभी भी प्रचलित है, जो आर्थिक वृद्धि और विकास में बाधक है। मोदी सरकार को भ्रष्टाचार से निपटने और नौकरशाही प्रक्रियाओं को कारगर बनाने के उपायों को अपनाने की जरूरत है। (bbc.com/hindi)

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