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मीडिया के भी नाम हैं?
एक प्रतिष्ठित वेबसाइट की खबर है कि दिल्ली के शराब स्कैम में कुछ मीडिया जगत के नामी गिनामी लोग भी लपेटे में आ सकते हैं। एक-दो की गिरफ्तारी तक का अंदेशा जताया है। झारखंड में भी शराब स्कैम में कुछ मीडियाकर्मी लपेटे में आ चुके हैं।
आप सोच रहे होंगे कि दिल्ली, और झारखंड के शराब स्कैम का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है। दरअसल, ईडी यहां भी दो हजार करोड़ के शराब स्कैम का आरोप लगा चुकी है, और कई जेल में हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या कोई स्कैम से छत्तीसगढ़ के मीडिया जगत के लोगों का कोई लेना-देना है? इसे लेकर दावे से कुछ नहीं कहा जा रहा है।
ईडी कोल-शराब स्कैम केस में कई नेताओं से पूछताछ कर चुकी है, और हल्ला है कि एक ने तो हितग्राही मीडिया कर्मियों के नाम भी गिनाए हैं। मगर अब तक ईडी ने किसी भी मीडियाकर्मी से सीधे कोई पूछताछ नहीं की है। ऐसे में यह अफवाह भी हो सकती है। अलबत्ता, पिछले सालों में कुछ घटनाएं ऐसी हो चुकी है जिसकी चर्चा काफी रही है।
बताते हैं कि पिछली सरकार में एक ताकतवर नेता ने दीवाली के मौके पर संपादकों को सोने का चेन गिफ्ट किया था। बात तब सार्वजनिक हुई जब एक प्रतिष्ठित अखबार के संपादक ने न सिर्फ चेन लेने से मना कर दिया, बल्कि अखबार में लिख भी दिया। जिन्होंने चुपचाप ले लिया वो जरूर असहज थे।
यही नहीं, छत्तीसगढ़ विधानसभा में तो पिछली सरकार में विधानसभा सचिवालय के अफसर बजट से पहले विभागों पर दबाव डालकर विधायकों, और अपने सचिवालयों के अफसरों के लिए महंगे उपहार लेते थे। चूंकि सारे विधायक इसमें हिस्सेदार थे, इसलिए कभी किसी ने कुछ नहीं कहा।
मीडिया के लोगों को भी उपहार मिल जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय से यह परम्परा बंद हो गई। इसके पीछे मीडिया के लोगों की भीड़ को प्रमुख वजह मानी जाती रही है। खैर, शराब स्कैम को नजदीक से देख रहे लोगों का कहना है कि राशि ज्यादा होगी, तो देर सवेर पूछताछ जरूर होगी। देखना है आगे क्या होता है।
बस्तर पर फोकस
बस्तर की 12 सीटों पर भाजपा के रणनीतिकारों की नजर है। माइक्रो लेवल पर पार्टी को मजबूत करने की दिशा में काम चल रहा है। प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम माथुर, और पवन साय विधानसभावार पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की। उनका कार्यकर्ताओं को एकमात्र संदेश था कि मतभेदों को भुलाकर बस्तर की सारी सीटें जीतना है, और प्रदेश में पार्टी की सरकार बनाना है।
ये नेता जगदलपुर में पार्टी के एक पूर्व निगम के चेयरमैन के आलीशान होटल में रूके थे। वो बुधवार को कांकेर के लिए निकल गए। इसके बाद वो देर शाम तक रायपुर आने का कार्यक्रम है। संगठन के एक और बड़े नेता अजय जामवाल बालोद में तीनों विधानसभा की कोर कमेटी, और पदाधिकारियों की बैठक लेते रहे।
उनका भी यही संदेश था कि एकजुटता बनाए रखना है, और किसी भी तरह सीट जीतकर प्रदेश में सरकार बनाना है। बस्तर की तरह बालोद की स्थिति भी अच्छी नहीं रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों को बुरी हार का सामना करना पड़ा। दोनों जगहों पर पार्टी गुटबाजी से जूझ रही है। बैठकों में संगठन नेताओं की समझाइश का कितना असर पड़ता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
बस्तर को लेकर दोनों दलों की बेचैनी
पहले भी छत्तीसगढ़ विधानसभा पहुंचने का दरवाजा बस्तर से खुलता है ऐसा माना जाता था। सन् 2018 के चुनाव परिणाम ने इस तर्क को अच्छी तरह स्थापित कर दिया। दंतेवाड़ा उप-चुनाव के बाद अब भाजपा के पास वहां कोई सीट नहीं है। मगर इस साल होने वाले चुनाव के लिए हौसले जबरदस्त दिखाई दे रहे हैं। सीटें भले ही नहीं आई लेकिन कई सीटों पर तो करारी टक्कर दी ही गई थी। लता उसेंडी और केदार कश्यप कम मार्जिन से हारे थे। दंतेवाड़ा सीट उप-चुनाव में गंवानी पड़ी। इस बार 2018 से अलग परिस्थिति यह है कि कम से कम दो और दल यहां अपनी प्रभावी मौजूदगी दिखाने जा रहे हैं। सर्व आदिवासी समाज और आम आदमी पार्टी।
सर्व आदिवासी समाज पार्टी पेसा कानून को लेकर कांग्रेस के खिलाफ चल रही है, वहीं भाजपा से भी जल, जंगल, जमीन पर सवाल कर रही है। भानुप्रतापपुर के उप चुनाव में जिस तरह से सर्व आदिवासी समाज की मौजूदगी के बावजूद भाजपा 11 हजार मतों से पिछड़ी, उसने दोनों पारंपरिक दलों के बीच एक उलझन पैदा कर दी। आखिर इसके मैदान में उतरने से किसे नुकसान हुआ था और आगे होगा। कई कांग्रेसी नेता यह मान रहे हैं कि अगर सर्व आदिवासी समाज मैदान में नहीं होता तो जीत का अंतर 30 हजार तक पहुंचता। वहीं भाजपा को लगता है कि तीसरे दमदार प्रत्याशी की मौजूदगी ने उसे नुकसान पहुंचाया, वरना यह सीट नहीं छिनती।
इधर, छत्तीसगढ़ के संगठन प्रभारी ओम माथुर 4 दिन से बस्तर दौरे पर हैं। उन्होंने लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में बैठकर कर ली है और आज बुधवार को उनके दौरे का समापन होगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा फरवरी में आ चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान उनके बस्तर जाने का भी प्लान बताया जा रहा है। कांग्रेस ने भी कम से कम एक बड़ी सभा प्रियंका गांधी की हो ही है। ताजा हालात बता रहे हैं कि कि कांग्रेस के लिए बस्तर सन् 2018 की तरह अगर आसान नहीं है तो बीजेपी के लिए खोई हुई सीटों पर दोबारा कब्जा कर पाना मुश्किल है। कम से कम 6 सीटें ऐसी है जहां पिछली बार कड़ी टक्कर थी। ऐसे में सर्व आदिवासी समाज और आम आदमी पार्टी के प्रति मतदाताओं का रुख नतीजों को प्रभावित करेंगे। उन सीटों पर बाजी पलट सकती है जहां जीत हार का फासला 20-25 हजार वोटों का है।
उफ्फ! इस गर्मी में भी लेटलतीफी
नौतपा की गर्मी में यात्री ट्रेनों के घंटों देरी से चलने से यात्रियों की तकलीफ दोगुनी हो गई है। यह रायपुर से दुर्ग जा रही लोकल ट्रेन है। जितने यात्री सीटों पर बैठे हुए हैं उससे अधिक कहीं खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं।
पीने वालों, अत्याचार मत सहो
शराब दुकान बंद करने की मांग पर ज्ञापन, आंदोलन, प्रदर्शन तो होते रहे हैं लेकिन बालोद जिले के करहीभदर के ग्रामीणों ने अपने यहां शराब दुकान खोलने की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट में ज्ञापन सौंपा। उनका कहना है कि 10 साल पहले यहां शराब दुकान होती थी। अब 10-12 किलोमीटर में कोई दुकान नहीं रह गई है। इसलिए यहां अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है। पुलिस और आबकारी विभाग कार्रवाई करती है लेकिन दिखावे के लिए। सरकारी शराब दुकान खोली जाए ताकि लोग जान को खतरे में डालने वाला अवैध शराब खरीदने के लिए मजबूर ना हो। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि यदि दुकान नहीं खोली गई तो वह आगे चक्का जाम करेंगे। हालांकि इसके अलावा भी तीन-चार मांगे है जिनमें से एक उप तहसील खोलने की भी है।
वैसे, इन दिनों शराब दुकानों से ब्रांडेड माल गायब है। घटिया शराब की भी अनाप-शनाप कीमत ली जा रही है। बालोद जिले के ग्रामीणों ने शराब के शौकीनों को एक रास्ता बताया है वे भी अपनी समस्याएं बताएं। प्रशासन से सवाल करें और आंदोलन की चेतावनी दें।