संपादकीय
photo : twitter
कश्मीर और केरल पर फिल्में आ जाने के बाद देश के इतिहास और वर्तमान को तोड़-मरोडक़र पेश करने का सिलसिला थमा नहीं है। गांधी और गोडसे पर बदनीयत से कुछ फिल्में बनाई गई हैं, कुछ बनाई जा रही हैं। ताजा मामला सावरकर पर बनी एक फिल्म का है जिसमें बॉलीवुड के एक चर्चित कलाकार ने सावरकर का किरदार किया है। इस कलाकार ने फिल्म के प्रचार के लिए ट्विटर पर लिखा कि सावरकर अंग्रेजी राज के सबसे अधिक तलाशे जाने वाले हिंदुस्तानी थे, और वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, और खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों की प्रेरणा थे। अब भगत सिंह और खुदीराम बोस के कोई संबंधी शायद इस झूठ के खिलाफ बोलने मौजूद न हों, लेकिन नेताजी के पड़पोते ने इस बात को झूठ करार दिया है और कहा है कि उनके परदाता सावरकर से नहीं, विवेकानंद से प्रेरित थे। चंद्रकुमार बोस ने इस बात को भी गलत बताया कि सावरकर पर बन रही फिल्म में दूसरे क्रांतिकारियों की कहानी बताई जा रही है, और उन्हें सावरकर से प्रेरित बताया जा रहा है। चंद्रकुमार बोस ने कहा कि सावरकर की सोच और उनके विचार सभी से अलग थे, सावरकर हिंदुत्ववादी सोच के समर्थक थे, और हिंदू महासभा से जुड़े हुए थे, लेकिन नेताजी हिंदू महासभा के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि नेताजी धर्मनिरपेक्षता पर भरोसा रखते थे, और उन्होंने विवेकानंद को अपना गुरू माना था। उन्होंने कहा कि अगर सावरकर की इज्जत करनी है, तो उसके लिए इतिहास के साथ खिलवाड़ मत कीजिए। उन्होंने यह भी लिखा कि अंग्रेज सरकार की नजर में नेताजी मोस्ट वांटेड थे, और वे अकेले ऐसे प्रमुख नेता थे जिनके खिलाफ अंग्रेज सरकार ने देखते ही गोली मारने का हुक्म जारी किया था।
दरअसल आज हिंदुस्तान जिस दौर से गुजर रहा है उसमें फिल्में तो दूर रहीं, स्कूल-कॉलेज की किताबों को भी बदला जा रहा है, और इतिहास के बहुत से अध्याय मिटाए जा रहे हैं। हमने कुछ समय पहले लिखा भी था कि जो लोग कोई इतिहास लिखने लायक नहीं रहते हैं, वे असल इतिहास को मिटाने का काम तो कर ही सकते हैं। ऐसे लोग पेंसिल की तो नोंक भी नहीं करते, और पीछे लगे रबर से दूसरों का लिखा मिटाते जरूर हैं। आज हिंदुस्तान में हकीकत को झूठ के साथ मिलाकर फिल्में बनाई जा रही हैं, जिनमें अदालती दखल के बाद जोड़ा जा रहा है कि वे हकीकत नहीं हैं, काल्पनिक कहानी हैं, लेकिन देश का एक बड़ा राजनीतिक तबका ऐसी कहानी को असल इतिहास साबित करने के लिए झोंक दिया जा रहा है। जब लाखों लोग रात-दिन इसे सच साबित करने पर उतारू हो जाते हैं, तो करोड़ों लोगों को वह सच ही लगने लगता है, उसमें काल्पनिक कुछ नहीं रह जाता। एक के बाद एक फिल्मों को बनाकर, उनका चुनावी, राजनीतिक, साम्प्रदायिक, और नफरती-हिंसक इस्तेमाल करके इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जहर घोला जा रहा है। सावरकर क्या थे, इसे अगर इतिहास के एक छोटे हिस्से को ही दिखाकर, और बाकी की हकीकत को छुपाकर कोई उन्हें हीरो दिखाना चाहते हैं, तो भी ठीक है, लेकिन जिस भगत सिंह ने सबसे बहादूरी से फांसी के फंदे को चूमा, उस भगत सिंह को माफी मांगने वाले सावरकर का प्रेरणास्रोत बताया जा रहा है, तो यह केंद्र सरकार के लिए कानूनी कार्रवाई करने का सामान है। भगत सिंह के नाम के साथ सावरकर का नाम लेना भी एक खराब बात होगी, और अगर सावरकर को भगत सिंह का प्रेरणास्रोत बताया जा रहा है तो केंद्र सरकार तुरंत इस पर कार्रवाई करे। यह मांग उठाने के साथ ही हम जानते हैं कि यह कचरे की टोकरी के लायक मानी जाएगी क्योंकि आज की केंद्र सरकार ऐसी तमाम राजनीतिक कोशिशों की हिमायती दिख रही है, और तरह-तरह से हिंदुत्व के प्रतीकों को हर किस्म के क्रांतिकारियों के ऊपर दिखाया जा रहा है। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। इस देश के आम लोग भी ऐसी हरकत के खिलाफ जनहित याचिका लेकर अदालत जा सकते हैं। भगत सिंह के इतिहासकार प्रोफेसर चमन लाल अभी जिंदा हैं, और हम इंतजार कर रहे हैं कि वे इस फिल्म के इस दावे के खिलाफ ऐतिहासिक तथ्य सामने रखेंगे। नेताजी की तरफ से उनका परिवार सामने आया है, और उन्हें भी अदालत जाना चाहिए।