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राजपथ-जनपथ : वक्त बदल रहा है
02-Jun-2023 3:47 PM
राजपथ-जनपथ : वक्त बदल रहा है

वक्त बदल रहा है 

विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही अफसरशाही का रंग धीरे-धीरे बदलता दिख रहा है। अफसरों के प्रति कुछ जनप्रतिनिधियों का व्यवहार रूखा रहा है। पहले तो अफसर उनकी उल्टी-सीधी बातें खामोशी से सुन लिया करते थे लेकिन अब उन्हें जवाब मिलने लगा है।

ऐसे ही एक विधायक के व्यवहार को लेकर जिले के अफसर काफी परेशान रहे हैं। उनको लेकर यह प्रचारित है कि वो अफसरों से दबावपूर्वक हर काम करा लेते हैं। विधायक महोदय भी शासन-प्रशासन में अपनी पकड़ दिखाने के लिए अक्सर कहते सुने जा सकते हैं कि फलां एसपी को हटवा दिया। फलां कलेक्टर की पोस्टिंग भी मनमाफिक हुई है।

मगर पिछले दिनों विधायक महोदय उस वक्त झटका लगा कि जब जिले में पदस्थ नई महिला आईएएस को फोन लगाया, और अपनी आदत के मुताबिक कुछ काम के लिए कहा। विधायक का लहजा महिला अफसर को पसंद नहीं आया। उन्होंने न सिर्फ विधायक का काम करने से मना कर दिया बल्कि दोबारा फोन न करने की नसीहत दे दी। अब चुनाव नजदीक आ चुका है। ऐसे में हर किसी से शालीनता बरतने में समझदारी है।

नये आये लोगों से परेशानी 

प्रदेश भाजपा ने तामझाम के साथ छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेता पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए अनुज शर्मा और राधेश्याम बारले व पार्षद अमर बंसल समेत कई को पार्टी में शामिल किया। मगर उनके आने से पार्टी के भीतर कई नेता असहज हैं। मसलन, अनुज को भाटापारा से टिकट का दावेदार माना जा रहा है। वहां से शिवरतन शर्मा तीसरी बार के विधायक हैं।

बताते हैं कि वर्ष-2013 के चुनाव में अनुज को प्रत्याशी बनाने की चर्चा थी। मगर अंतिम समय में बृजमोहन अग्रवाल के प्रयासों से तत्कालीन प्रदेश प्रभारी जेपी नड्डा ने लगातार दो चुनाव हार चुके शिवरतन को फिर से प्रत्याशी बनवा दिया। इसके बाद शिवरतन चुनाव जीत गए। मगर पिछला चुनाव ले-देकर त्रिकोणीय मुकाबले में जीते थे।  ऐसे अब जब अनुज आ गए हैं, तो उनके समर्थक परेशान बताए जाते हैं।

यही नहीं, पार्षद अमर बंसल को रोकने की भी काफी कोशिश हुई थी। उन्होंने चुनाव में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी ओंकार बैस को तीसरे स्थान पर ढकेल दिया था। चर्चा है कि उनके पार्टी में शामिल न करने के लिए कुछ नेताओं ने सीधे प्रभारी ओम माथुर से बात की थी, लेकिन उन्होंने शिकायत करने वाले नेताओं को अनसुना कर दिया। दरअसल, अमर बंसल को पार्टी में शामिल करने के लिए आरएसएस ने पैरवी की थी। इसी तरह रिटायर्ड आईएसएस आरपीएस त्यागी का विरोध तो नहीं हुआ लेकिन यह जरूर कहा गया कि वो कांग्रेस में रहकर भाजपा सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करते रहे हैं। कुछ भी हो, एक साथ नेताओं के आने से माहौल बना है।

खास दाम वाले आम

इन दिनों बाजार में आम की रौनक है। तमाम वेरायटी उपलब्ध हैं। 30 रुपये से लेकर 140 रुपये किलो तक। पर यह आम खास है। महाराष्ट्र के रत्नागिरी इलाके में हापुस आम की भरपूर पैदावार होती है। अपने स्वाद और सुगंध के लिए इसकी देशभर में मांग है। इन दिनों बाजार में आकर्षक पैकिंग के साथ यह आम भी उपलब्ध है। कीमत दो किलो वजन वाले डिब्बे का केवल 800 रुपये है। 

आप से निपटने का कांग्रेस को मौका

अफसरों के तबादले पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को शून्य करने के लिए लाए गए अध्यादेश के खिलाफ समर्थन लेने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष के नेताओं से लगातार संपर्क में हैं। कांग्रेस यह तो चाहती है कि दिल्ली पर केंद्र की ओर से मनोनित उप –राज्यपाल का हस्तक्षेप कम हो और निर्वाचित मुख्यमंत्री को अधिक अधिकार मिले लेकिन आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की ताकत बढ़े यह उसे मंजूर नहीं है। छत्तीसगढ़ उन राज्यों में शामिल है, जहां आप ने सभी 90 सीटों पर फिर विधानसभा चुनाव लडऩे की योजना बनाई है। इसकी गंभीर तैयारी भी दिखाई दे रही है। अगले कुछ दिनों में केजरीवाल की रैली भी होने वाली है। जाहिर है यहां सत्ता में कांग्रेस है तो उसने कांग्रेस के ही खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इधर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है कि उनके 31 सदस्य राज्यसभा में केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ वोट करेंगे या नहीं। वह यह देख रही है कि राज्यों में पार्टी के नेता क्या कहते हैं। दिल्ली और पंजाब की कांग्रेस कमेटियों ने केजरीवाल के प्रस्ताव का विरोध किया है। मगर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने अब तक अपना का रुख अब तक साफ नहीं किया है। हो सकता है यहां उन्हें लग रहा हो कि आप या तो बेअसर रहेगी या फिर भाजपा को ही नुकसान पहुंचाएगी।

किस दिशा में जाएगी जोगी की पार्टी?

पूर्व विधायक और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष अमित जोगी ने कार्यकर्ताओं को भावुक चि_ी लिखकर सन् 2023 के चुनाव में पार्टी की भूमिका के लिए राय मांगी है। स्व. अजीत जोगी के बाद भी परिवार के साथ जुड़े रहने के लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं का आभार माना है और कहा है कि जो भी निर्णय होगा, आपका भविष्य उज्ज्वल रहेगा। एक बात उन्होंने यह भी लिखी है कि दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों से मुकाबला करने के लिए बड़े संसाधन की जरूरत पड़ेगी। और भी कई बातें हैं।

करीब एक माह पहले भी उन्होंने एक बयान दिया था कि वे अपनी अस्वस्थ मां विधायक डॉ. रेणु जोगी को पूरा समय देना चाहते हैं, तब लगा था कि वे पार्टी का काम छोड़ देंगे। बाद में साफ किया कि पार्टी की जिम्मेदारी तो उठाते रहेंगे। इसके बाद पार्टी का सदस्यता अभियान भी कई विधानसभा क्षेत्रों में चला। इसके पहले वे जनवरी महीने में छह सात विधानसभा क्षेत्रों को कव्हर करते हुए पदयात्रा भी कर चुके हैं।

उनसे जुड़े तमाम दिग्गज नेता जो पार्टी के संस्थापक थे वे भी अब उनके साथ नहीं हैं। विधायक धर्मजीत सिंह बर्खास्त हैं। बलौदाबाजार विधायक प्रमोद शर्मा पार्टी से लगभग अलग हो चुके हैं। कुल मिलाकर अमित जोगी अकेले दिखाई दे रहे हैं। डॉ. रेणु जोगी अपनी उम्र और स्वास्थ्य की वजह से अधिक योगदान पार्टी में दे नहीं पा रही हैं। अमित जोगी का यह पत्र पार्टी का विलय किसी और दल में करने के लिए कार्यकर्ताओं को मानसिक रूप से तैयार करने का प्रयास लग रहा है।  

कांग्रेस का एक खेमा डॉ. रेणु जोगी की वजह से उन्हें पार्टी में लाना चाहते हैं, पर एक धड़ा विरोध कर रहा है। भाजपा की ओर से भी कोई उत्सुक नहीं दिखाई दे रहा है। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने जोगी कांग्रेस और भाजपा के बीच साठगांठ की हवा बनाई थी। उसे इसका काफी नुकसान हुआ। मरवाही उप-चुनाव में भाजपा को समर्थन मिला था लेकिन चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं हुआ। बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन पिछले लोकसभा चुनाव में ही समाप्त हो गया था, जब बसपा ने छजकां से पूछे बिना अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। अब और कुछ छोटे दल बच जाते हैं। सर्व आदिवासी समाज जोगी परिवार को आदिवासी नहीं मानता। उन्हें साथ लेने से विवाद खड़ा हो जाएगा। आम आदमी पार्टी का रुख भी साफ नहीं है। दल से जुड़े लोग बताते हैं कि हमारे बीच यह सवाल आया ही नहीं है। ये सब आकलन उस स्थिति में है जब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ किसी दल में अपने विलय के लिए तैयार हो। असली तस्वीर एक सप्ताह बाद साफ होगी, जब कार्यकर्ता अपनी राय जाहिर कर चुके होंगे।

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