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घर में नहीं दाने, मामा चले हवाई तीर्थ कराने
02-Jun-2023 4:44 PM
घर में नहीं दाने, मामा चले हवाई तीर्थ कराने

 बादल सरोज

अपनी चतुराई पर आत्ममुग्ध मामा इस भ्रम में हैं कि इस तरह के दिखावों से प्रदेश की जनता उनका किया-धरा भूल जाएगी। उन्हें जमीन की तपन का अभी भी पूरा भान नहीं है।

बहुत ही घबराए और बिल्लियाये हुए हैं शिवराज सिंह चौहान और उतनी ही सिड़बिल्याई हुई है भाजपा और जनादेश की जेबकटी करके बनी उनकी सरकार। कभी ‘लाड़ली बहना’ योजना के नाम पर सरकारी अमले के दम पर महिलाओं को इक_ा कर उनके बीच हाथ जोड़े, कातर भाव में, घुटने-घुटने चलकर याचक की मुद्रा में घिसटते हुए उनकी तस्वीरें और वीडियो नजर आते हैं, तो कभी अलग-अलग जातियों, उपजातियों के नाम पर आयोगों की घोषणा कर सबको साधने के चक्कर में चकरघिन्नी होते हुए दीखते हैं, तो कभी इतना बौखला जाते हैं कि ‘मैं नहीं जानता कर्नाटक-फर्नाटक को’ जैसे सन्निपाती बयान देने लगते  हैं। स्वाभाविक भी है, राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं, इसलिए धरातल की असलियत से वाकिफ हैं -दीवार पर लिखी पराजय की इबारत इतने मोटे और चमचमाते हरूफों में हैं कि उनके राज में मध्यप्रदेश पर थोपे गए सतत अमावस के अँधेरे और लगातार होती बिजली कटौती के बीच भी साफ-साफ पढऩे में आ जाती है। इसलिए उन्होंने शपथ-सी उठाई हुई है कि ऐसा कोई बचने नहीं देंगे, जिन्हें वे चुनाव से पहले ठगेंगे नहीं।  तीर्थ-यात्रियों को सरकारी खर्च पर हवाई यात्रा ऐसा ही एक और शिगूफा है। 

मई के तीसरे रविवार 21 मई को 32 तीर्थ यात्रियों को लेकर इंडिगो की फ्लाइट भोपाल से प्रयागराज के लिए रवाना हुई। इसमें 24 पुरुष और 8 महिला तीर्थयात्री शामिल थे। इस तीर्थ यात्रा का पूरा खर्च मध्य प्रदेश सरकार उठाएगी।  उन्हें विदा करने और उनका हाथ अपने सिर पर रखवा कर आशीर्वाद लेते हुए फोटो खिंचवाने स्वयं शिवराज सिंह हवाई अड्डे पहुंचे। मध्यप्रदेश सरकार साल 2012 से ‘मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन’ योजना चला रही है और अब तक करीब 8 लाख तीर्थ यात्रियों को सरकार के खर्चे पर ट्रेन के जरिए तीर्थ स्थलों की यात्रा करवा चुकी है। सनद रहे कि भोपाल से प्रयागराज तक एक या दो नहीं, 5 रेलगाडिय़ाँ हैं। प्रयागराज वाला जत्था भी ट्रेन से जा सकता था ; मगर उस से वह ब्रेकिंग न्यूज नहीं बनती, लिहाजा यह प्रहसन किया गया। बात एक जत्थे की नहीं है, यह हवाई तीर्थाटन 19 जुलाई 2023 तक चलने वाला है और  इस दौरान 25 जिलों के तीर्थ-यात्री 25 फ्लाइट्स से प्रयागराज, शिर्डी, मथुरा-वृंदावन और गंगासागर धाम की तीर्थ यात्रा करेंगे। इन चारों तीर्थों के लिए भी भोपाल से सीधी ट्रेन उपलब्ध हैं- मगर इसके बावजूद पब्लिसिटी के लिए कुछ करोड़ रूपये फूंके जायेंगे। वह भी उस मध्यप्रदेश में, जो आपादमस्तक-सिर से लेकर पाँव तक-कर्ज में डूबा हुआ है।

‘घर में नहीं हैं दाने, मामा चले हवाई तीर्थ कराके वोट भुनाने’ का यह ढोंग वह मध्यप्रदेश सरकार कर रही है, जो अपना जरूरी खर्च चलाने में असमर्थ है। इसके लिए हर महीने 16-17 हजार करोड़ रूपये का कर्जा उठा रही है। रिजर्व बैंक और बाकी बैंकों के ओवरड्राफ्ट की सीमा पार हो चुकी है, इसलिए औने-पौने ऊंची ब्याज दरों पर बाजार से भी कर्जा उठाया जा रहा है। चुनावी साल के बजट वायदों को पूरा करने के लिए, लिए जा रहे कर्ज को जोड़ लें, तो कुल ऋण की तादाद 4 लाख करोड़ है। यह कर्जा राज्य के वर्ष भर के सकल घरेलू (जीडीपी) उत्पाद 13.22 लाख करोड़  का 33.31त्न  है। दो वर्ष से ज्यादा की कुल राजस्व आमदनी के बराबर है। जमा पूँजी और आमदनी दोनों से कई गुना कर्ज हो जाने की अवस्था के लिए आर्थिक भाषा में सिर्फ एक शब्द है- दिवालिया होना। स्थिति वैसी ही हुयी पड़ी है। बेसहारा, वृद्धों और विधवाओं की पेंशन महीनों से लटकी है, पंचायतों के सारे काम ठहरे हुए हैं, हो चुके कामों के बिल लटके हैं, मनरेगा पूरी तरह से बंद है, अनुसूचित जाति-जनजाति के विद्यार्थियों की छात्रवृत्तियां लटकी हुई हैं, कर्मचारियों के वेतन भुगतान पर अनिश्चितता की तलवार लटकी हुयी है, सरकारी  अस्पतालों से दवाई गायब है, अनेक सरकारी दफ्तरों और बिल्डिंगों की बिजली बिल अदा न करने के चलते कटने की स्थिति में आ गयी है। और मामा हैं कि हवाई जहाजों के बेड़े बुक करके वोट लुभावन-असफलता छुपावन- तीर्थाटन कराने में लगे हैं।

वैसे लगता है कि  कुछ हवाई जहाज शिवराज सिंह को और बुक करने पड़ेंगे और उनमे अपने कुनबे के कुछ अपूर्ण संतुष्ट और भरपूर असंतुष्टों को भी कहीं भेजना होगा, जिनकी इन दिनों बहार-सी आई हुई है; लेकिन इस पर विस्तार से बाद में कभी।

फिलहाल तो ऐसा लगता है कि सबको मामू बनाने की अपनी चतुराई पर आत्ममुग्ध मामा इस भ्रम में हैं कि इस तरह के दिखावों से प्रदेश की जनता उनका किया-धरा भूल जाएगी। उन्हें जमीन की तपन का अभी भी पूरा भान नहीं है।  दुष्यंत कुमार इन्हीं के लिए लिख गए थे कि-

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं

कमाल ये है कि, फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं

(लेखक ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)

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