विचार / लेख
-अरूण दीक्षित
शुक्रवार, 2 जून 2023 की शाम ओडिशा के बालासोर में हुई भयानक रेल दुर्घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। एक तरफ इस दुर्घटना की असली वजह जानने की उत्सुकता सभी के मन में है तो दूसरी तरफ यह सवाल भी है कि क्या रेल मंत्री को हटाया जाएगा?
फिलहाल इस दुर्घटना पर रेलवे के सभी जिम्मेदार अफसरों ने अपने मुंह और मोबाइल दोनों बंद कर लिए हैं। दुर्घटना के 24 घंटे के बाद भी वे अपने स्तर पर बात करने को तैयार नहीं है।
प्रधानमंत्री भी शनिवार को मौके पर हो आए हैं। रेलमंत्री तो दुर्घटना स्थल पर ही हैं। मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।24 घंटे बाद भी सही जानकारी सरकार की ओर से नहीं दी जा रही है।
हादसे की पहली शिकार हावड़ा से चेन्नई जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस हुई। वह बाहानगा बाजार रेलवे स्टेशन पर लूप लाइन पर खड़ी मालगाड़ी पर जा चढ़ी। वह पूरी तरह चकनाचूर हुई। उसके कुछ डिब्बे दूसरी ओर से आ रही सर एम विश्वेश्वरैया हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस पर जा गिरे। चूंकि वह रेल ट्रैक हाल ही में हाई स्पीड ट्रेक में बदला गया था इसलिए इन दोनों गाड़ियों की गति 125 किलोमीटर प्रति घंटा के करीब थी। इस तरह तीन गाड़ियां एक साथ टकरा गई। बहुत बड़ा हादसा हो गया।
किसकी गलती से यह टक्कर हुई? क्या टक्कररोधी उपकरण इस टक्कर को बचा सकता था?असली गलती किसकी थी?
यह और ऐसे ही अनेक सवाल सभी की जुबान पर हैं।
हमेशा की तरह सरकार ने जांच कमेटी बना दी है।जब जांच हो जायेगी तब बता देंगे कि गलती किसकी थी!
रेल मंत्रालय को 7 साल कवर किया है।काफी चीजों को नजदीक से देखा है। अभी भी कुछ मित्र हैं रेलवे में। पहली बार ऐसा देख रहा हूं कि दिल्ली से लेकर बालासोर तक सभी जिम्मेदारों के मुंह और मोबाइल दोनों बंद हैं। मौके से जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक मरने वालों की संख्या सरकार द्वारा बताई जा रही संख्या से दोगुनी हो सकती है। घायलों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। सरकार उन्हीं का आंकड़ा दे रही है जो अस्पतालों में हैं। जिन लोगों को गंभीर चोट नहीं लगी है उन्हें गिना ही नहीं गया है। इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि सही आंकड़ा सामने आ पाएगा।
दुर्घटना के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि रेलमंत्री को तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए! विपक्ष के नेताओं ने मांग भी की है। देश के इतिहास में ऐसे उदाहरण भी हैं।
आजादी के 1956 के साल की बात है। अगस्त महीने में हुई रेल दुर्घटना में 112 लोग मारे गए। लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे। उन्होंने प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया। लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। इस साल नवंबर में फिर एक बड़ी रेल दुर्घटना हो गई। 144 लोग मारे गए। शास्त्रीजी ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। वे अपनी बात पर अड़ गए। उनका इस्तीफा मंजूर किया गया।
1999 में असम के गैसल में बड़ी रेल दुर्घटना हुई। उसमें 290 लोग मारे गए। नीतीश कुमार रेल मंत्री थे। अटलजी प्रधानमंत्री थे। नीतीश ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया। उसे मंजूर किया गया। सन 2000 में ममता बनर्जी रेल। मंत्री थीं। पंजाब में ट्रेन दुर्घटना हुई। ममता ने रेलमंत्री की कुर्सी छोड़ दी।
पिछले नौ साल में यह प्रथा करीब करीब बंद सी हो गई है। 2017 में हुई रेल दुर्घटनाओं के चलते तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने इस्तीफे की पेशकश की थी। लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें इस्तीफा नही देने दिया। बाद में कई मंत्रियों पर अलग-अलग आरोप लगे लेकिन किसी को भी मोदी ने हटाया नही है। मंत्री वही हटे जो मोदी की नजर से उतरे। ऐसे लोगों की सूची बहुत लंबी है जिन्हें सिर्फ नापसंदगी की वजह से मंत्रिमंडल से हटाया गया। इनके नाम सभी को याद होंगे। 9 साल का समय इतना ज्यादा लंबा नहीं है कि उनके नाम भुला दिए जाएं!
वर्तमान रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव जोधपुर में जन्में थे। उन्होंने आईआईटी कानपुर से पढ़ाई के साथ विदेश में भी पढ़ाई की है। वह ओडिशा कैडर के आईएएस अधिकारी थे। नौकरी छोड़ कर राजनीति में आए हैं। बीजू जनता दल की मदद से राज्यसभा के लिए चुने गए थे। जुलाई 2021 में मोदी ने पियूष गोयल की जगह इन्हें रेल मंत्री बनाया था।
बताया जाता है कि रेल मंत्री को गुजरात के ही एक बड़े नेता का संरक्षण है। इसकी कई वजह बताई गई हैं। इसी वजह से उन्हें रेलवे जैसा अति महत्वपूर्ण विभाग दिया गया है। इन वजहों में एक व्यवसायिक हित भी हैं।
इसलिए जो लोग इस्तीफा मांग रहे हैं उन्हें यह समझना होगा कि उनके मांगने से इस्तीफा नहीं होगा। वैसे केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई ऐसे सदस्य हैं जिन्हें वहां नहीं होना चाहिए था..लेकिन साहब को पसंद हैं..तो मंत्री हैं।
एक बात और..अगर आज रेलमंत्री का इस्तीफा ले लिया गया तो कल सब मणिपुर के लिए गृहमंत्री का इस्तीफा मांगेंगे! ऐसा कहीं होता है क्या!
इसलिए जान लीजिए कि रेलमंत्री का इस्तीफा नहीं होगा! हां लोगों का मुंह बन्द करने के लिए कुछ अफसरों को बलि का बकरा बना दिया जायेगा।
इस दुर्घटना में मरने वालों की वास्तविक संख्या पिछले सालों में हुई दुर्घटनाओं की संख्या से बहुत ज्यादा है। यह बात रेलवे के अफसर मान रहे हैं। लेकिन सबके मुंह बंद हैं। तय हुआ है कि मरने वालों की संख्या को धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा।
यही तो स्टायल है!