संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लाशों के पहाड़ पर बैठे नफरती झूठ के सौदागर, मोदी कड़ी कार्रवाई करें
04-Jun-2023 3:07 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  लाशों के पहाड़ पर बैठे नफरती झूठ के सौदागर, मोदी कड़ी कार्रवाई करें

हिन्दुस्तान में पेशेवर दिखते सोशल मीडिया एक्टिविस्ट लोगों की एक बड़ी फौज ऐसी है जो रात-दिन सिर्फ नफरत फैलाने में लगी है। यह काम करते हुए उसे यह परवाह भी नहीं है कि वह लगातार सुबूत छोड़ते चल रही है, और किसी दिन देश-प्रदेश की सरकार ईमानदारी से कार्रवाई करेगी तो ऐसे लोग लंबी कैद पाएंगे। ताजा मामला परसों रात ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे का है। कल जब लाशों की गिनती बढ़ती चल रही थी, उस वक्त भी समर्पित और पेशेवर नफरतियों की यह फौज यह फैलाने में लगी थी कि जहां यह भयानक एक्सीडेंट हुआ है उसके पास एक मस्जिद है, और परसों का दिन शुक्रवार का था, और यह एक्सीडेंट मासूम नहीं था। बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर हादसे की तस्वीर के साथ एक इमारत की तरफ तीर का निशान दिखाकर लिखा कि शुक्रवार का दिन है और पड़ोस में मस्जिद है जेहाद करने को ही हाईवे और रेलवे ट्रैक से लगते हुए मुस्लिम कॉलोनी और मस्जिद उगाई जा रही हैं। कुछ ऐसी तस्वीरें भी गढक़र या कहीं से काटकर लगाई गई हैं जिनमें पटरियों पर टायर पड़े दिख रहे हैं, और मस्जिद और जुम्मे का जिक्र करके लिखा जा रहा है कि यह साजिश के तहत किया गया है। बात भयानक है, और जब प्रधानमंत्री कल उस जगह पर जाकर आए हैं, और रेलमंत्री 24 घंटों से वहां डेरा डाले हुए हैं, तो ऐसे आरोपों की जांच होनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा है कि इसके पीछे जो भी जिम्मेदार हैं उन्हें बहुत कड़ी सजा दी जाएगी, इसलिए भी यह जरूरी है कि सोशल मीडिया पर लगे इन आरोपों की जांच की जाए, और अगर ये आरोप सच न निकलें, तो इन्हें लगाने वाले लोगों को सुप्रीम कोर्ट के हुक्म के मुताबिक जेल भेजा जाए। ये आरोप छोटे नहीं है, ये एक धर्मस्थल और एक समुदाय को इतने बड़े हादसे के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। 

अब हिन्दुस्तान में एक-एक करके बहुत सी ऐसी वेबसाइटें हो गई हैं जो कि फैक्ट चेक का काम करती हैं। जिनका सारा काम ही झूठ को पकडऩे, और साजिश का भांडाफोड़ करने का है। इसमें देश में सबसे आगे ऑल्टन्यूज नाम की वेबसाइट है, और उसकी एक हिन्दू रिपोर्टर ने इन आरोपों की जांच की। उसने एक-एक करके बहुत से ऐसे सोशल मीडिया पोस्ट निकाले जिनमें यह आरोप लगाया गया है कि यह मुसलमानों द्वारा किया गया एक हमला था। बाद में ऑल्टन्यूज ने कुछ दूसरे एंगल से ली गई तस्वीरों को देखा तो उनमें यह ढांचा मस्जिद की जगह मंदिर दिख रहा था। उसके बाद इस वेबसाइट ने दुर्घटना स्थल पर मौजूद एक पत्रकार से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि यह बाहानगा का इस्कॉन मंदिर है, और पांच महीने पहले इसका एक यूट्यूब वीडियो भी पोस्ट किया गया था। इस पत्रकार ने मंदिर तक जाकर वहां से इसी इमारत की बोर्ड सहित एक तस्वीर खींची, और उसे भेजा। जिस ढांचे को नफरतियों ने मस्जिद बताकर मुसलमानों को इस साजिश का जिम्मेदार बताया था, वह ढांचा कई तरह की तस्वीरों और वीडियो से इस्कॉन का मंदिर निकला, और मंदिर के लोगों से संपर्क करने पर उन्होंने भी बताया कि वह मंदिर उसी जगह है जहां बगल की पटरी पर एक्सीडेंट हुआ है, उन्होंने यह भी बताया कि हादसे की जो तस्वीरें चारों तरफ फैली हैं, उनमें जो ढांचा दिख रहा है वह इसी मंदिर का है। ऑल्टन्यूज ने यह भी पाया है कि रेलवे के सूत्रों ने पहली नजर में इसे सिग्नल की एक गलती माना है, और जिस लाईन में मालगाड़ी खड़ी थी, उसी लाईन में कोरोमंडल एक्सप्रेस छोड़ दी गई थी। 

अब अगर यह वेबसाइट नफरत की इस साजिश का भांडाफोड़ करने के लिए नहीं रहती, तो जाहिर है कि इस रेल हादसे को मुस्लिमों की साजिश करार दिया गया रहता। आज भी जरूरी नहीं है कि इस झूठ और नफरती साजिश का भांडाफोड़ हो जाने के बाद भी बाकी नफरती लोग चुप बैठ जाएंगे, वे हो सकता है कि इस झूठ को और बढ़ाते चलें, क्योंकि इसके झूठ साबित हो जाने के बाद भी इसे आगे बढ़ाने वाले समर्पित लोग रहेंगे ही। अभी इस पल जब हम इस झूठ के बारे में लिख रहे हैं तब भी लगातार लोग इसे आगे बढ़ा ही रहे होंगे क्योंकि उन्हें मुस्लिमों को बदनाम करना अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद लग रहा होगा। 

चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वहां कुछ घंटे गुजारकर आए हैं, और उन्होंने कहा है कि इस दुर्घटना के जो भी जिम्मेदार होंगे, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी, ऐसे में यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि इस दुर्घटना की झूठी खबरें गढक़र देश में साम्प्रदायिकता और नफरत फैलाने की एक बड़ी साजिश पर भी उन्हें कार्रवाई करनी चाहिए, और सजा दिलवानी चाहिए। इसके बिना हो सकता है कि इस ट्रेन हादसे की तीन सौ के करीब मौतों से कहीं ज्यादा मौतें किसी साम्प्रदायिक घटना में हो जाएं। जिस तरह रेलवे को ट्रेनों की टक्कर रोकने के लिए कवच नाम की एक तकनीक की जरूरत बताई जाती है, उसी तरह देश में समुदायों के बीच जानलेवा टकराव रोकने के लिए भी सद्भाव के एक कवच की जरूरत है, और हिंसक-नफरती लोगों को सजा दिलवाने की जरूरत है। अगर प्रधानमंत्री के स्तर पर एक बार ऐसी कार्रवाई हो जाएगी, तो पूरा देश सुधर जाएगा क्योंकि उन्हें अपने जुर्म के बचाव का भरोसा नहीं रह जाएगा। इससे कम कुछ भी होने पर हिंसा और नफरत का यह सिलसिला चलते ही रहेगा। जिस सुप्रीम कोर्ट ने हेटस्पीच पर पुलिस को खुद होकर जुर्म दर्ज करने कहा है, उसे रोज सुबह ऑल्टन्यूज जैसी दर्जन भर वेबसाइटें देखने के लिए हमारे किस्म का कोई न्यायमित्र नियुक्त कर देना चाहिए जो कि रोज सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राज्य सरकारों से जवाब मांगते रहें। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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