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एशिया का सबसे बड़ा ओपन कास्ट माइंस का दर्जा दिलाने की तैयारी
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
कोरबा 5 जून। एसईसीएल के गेवरा खदान का सालाना उत्पादन 70 मिलियन टन करने के लिए इसका और विस्तार किया जाएगा। इसके बाद यह एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान हो जाएगी। इसकी पर्यावरणीय जन सुनवाई कल 6 जून को होने जा रही है। पर्यावरण के जानकारों ने इस पहल को लेकर चिंता जताई है।
विश्व पर्यावरण दिवस के दिन यह खबर आई है कि गेवरा जो इस समय एशिया की सबसे दूसरी बड़ी कोयला खदान है, उसके विस्तार के लिए कल 6 जून को पर्यावरणीय जन सुनवाई होने जा रही है। जन सुनवाई के बाद केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मंजूरी मिलने के बाद करीब आधा दर्जन गांवों का अधिग्रहण किया जाएगा। हालांकि इससे कुल 25 गांव प्रभावित हो रहे हैं। इनमें गेवरा, मनगांव, घाटमुंडा, धुरेना, दीपका, जूनाडीह, बरेली, बिंझरी, बेलटिकरी, झिंगटपुर, पोंडी, कुसमुंडा, अमगांव, रलिया, बम्हन पाठ, भठोरा, भिलई बाजार, नरई बोध, खोडरी, चुरेल, सलोरा, पंडरीपानी, बतारी, केसला व बरभाठा शामिल हैं।
गेवरा खदान विस्तार के लिए करीब 600 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की जा रही है। वर्तमान में यह खदान 4200 हेक्टेयर में फैला है। वर्तमान में इसकी उत्पादन क्षमता 52.5 मिलियन टन है। विस्तार के बाद सालाना उत्पादन बढ़कर 70 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा। साथ ही यह एशिया की सबसे बड़ी खुली कोयला खदान हो जाएगी। इस समय उत्पादन की दृष्टि से इंडोनेशिया की संगट्टा सबसे बड़ी खदान है।
उल्लेखनीय है कि कोरबा देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। कई बार यहां प्रदूषण का स्तर राजधानी दिल्ली से भी अधिक चला जाता है। खुली खदानों से हो रहे प्रदूषण को रोकने के लिए एसईसीएल प्रबंधन और जिला प्रशासन की ओर से समय-समय पर कार्ययोजना बनाई जाती है। इसके तहत खदान क्षेत्र में पानी का छिड़काव, कंक्रीट सड़क और पौधारोपण कर ग्रीन बेल्ट विकसित करने जैसे कामों पर निर्णय लिए गए हैं लेकिन खुली खदानों से निकलने वाली राख कम होने का नाम नहीं ले रही है। पावर प्लांट और उद्योगों की चिमनी से निकलने वाले धुएं और राखड़ तथा एसईसीएल की खदानों से निकलने वाले कोयले के परिवहन के कारण कोरबा देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक बना हुआ है।
विश्व स्तरीय तकनीक की जरूरत- चंद्रभूषण
पर्यावरण के लिए काम कर रही संस्था इंडरनेशनल फोरम फॉर इनवायरोमेंट, संस्टेनबिलिटी एंड टेक्नॉलॉजी के सीईओ चंद्रभूषण का कहना है कि नई खदानों के बजाय पुरानी खदानों का ही विस्तार करना एक कदम होना चाहिए क्योंकि नई खदानों के लिए वन भूमि को अधिग्रहित करने की समस्या खड़ी होती है। गेवरा में किए जाने वाले विस्तार के संदर्भ में यह देखना जरूरी है कि जितनी बड़ी खदान होगी, पर्यावरण प्रबंधन की चुनौती भी उतनी ही ज्यादा होगी। कोल इंडिया को इसके लिए विश्व स्तरीय विशेषज्ञों की मदद लेनी पड़ेगी। साथ नई खदानें खोलना कोयला उत्पादन बढ़ाना तो एक लक्ष्य है लेकिन उपयोग में लाई जा चुकी खदानों को बंद करने की समस्या भी बहुत बड़ी है जिसके लिए गंभीरता से प्रयास करने की जरूरत है।
कोयले को जमीन के भीतर ही रहने देः नितिन सिंघवी
गेवरा खदान के विस्तार की योजना पर चिंता जताते हुए पर्यावरण प्रेमी नितिन सिंघवी ने कहा है कि आज हम विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं और इसके ठीक एक दिन बाद कोयला खदान के विस्तार के लिए जन सुनवाई हो रही है। इससे न केवल कोरबा बल्कि हसदेव अरण्य के वन क्षेत्र के पर्यावरण को क्षति होगी।