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राजपथ-जनपथ : ग़म साझा किया तो आंसू बह निकले
05-Jun-2023 3:47 PM
राजपथ-जनपथ : ग़म साझा किया तो आंसू बह निकले

ग़म साझा किया तो आंसू बह निकले 

शहर के एक नामी चिकित्सक ने एक वाट्सऐप ग्रुप में मजकिया वीडियो पोस्ट किया। वीडियो में यह दिखाया गया कि एक महिला चिकित्सक अपनी समस्या लेकर गेरूवा वस्त्रधारी बाबा के पास पहुंची। बाबाजी ने पर्चा निकाला, और पर्चा पढ?र बताया कि वो (महिला) अस्पताल संचालक हैं। अस्पताल ठीक से नहीं चल रहा है। 54 तरह की लाइसेंस लेना पड़ता है। हर तीसरे दिन लाइसेंस का रिनीवल करना होता है। कमाई कम है, और खर्चा ज्यादा है।

बाबा ने नसीहत दी कि उन्हें तत्काल अस्पताल बंद कर देना चाहिए, और आगे कहा कि आप दोसा अच्छा बनाती है। आपको तुरंत दोसा सेंटर शुरू कर देना चाहिए। बाबाजी ने बताया कि उनका खुद का 50 बेड का अस्पताल था। जिसे  उन्होंने बंद कर दिया है और अब खुद का आश्रम है। इसके बाद महिला चिकित्सक बाबाजी की बात मानकर वहां से चली गई। इस वीडियो पर गु्रप में प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई। एक-दो अस्पताल संचालकों ने वीडियो को कड़ुवा सच करार दिया। और जब ग्रुप के सदस्य, जो कि चिकित्सक नहीं थे, ने वीडियो को वास्तविकता से अलग बताया, तो सरकार के करीबी एक प्रतिष्ठित सर्जन ने लिखा कि आप 8-10 चिकित्सक मित्रों के पास चले जाइए, आपको वास्तविकता का पता चल जाएगा।

उन्होंने आगे लिखा कि डॉक्टरों की गर्दन पर नियम कायदों का सिकंजा हर वक्त कसा रहता है। आखिरी में शहर के सबसे बड़े निजी अस्पताल के संचालक ने अपने पोस्ट में लिखा कि मुश्किल है अस्पताल चलाना। या तो चोरी सीखो या बाबा बन जाओ, नहीं तो दूसरा धंधा देखो। चाहे कुछ भी हो, इस मजकिए वीडियो के बहाने प्रतिष्ठित अस्पताल संचालकों का दर्द छलक ही गया।

उम्मीद अभी बाक़ी है  

आमतौर पर अफसरों का अच्छी पोस्टिंग की चाह रहती है। कई तो इसके लिए राजनेताओं और धर्मगुरूओं के दरवाजे पर मत्था टेकने से नहीं चूकते हैं। ऐसे ही ट्रांसफर-पोस्टिंग की सुगबुगाहट होते ही नए जिले के एक कलेक्टर बड़े जिले की चाह में पड़ोसी जिले में चल रहे एक धर्मगुरू के दरबार में चले गए।

धर्मगुरू इन दिनों मीडिया में काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं। कलेक्टर का पर्चा निकला या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन दरबार से लौटने के बाद उनका तबादला हो गया। नई पोस्टिंग भी मनमाफिक नहीं मानी जा रही है। खैर, सरकार में अफसरों की कमी है। ऐसे में अच्छी पोस्टिंग की उम्मीद अभी बाकी है।

बारिश के देवी-देवता

बस्तर का जनजीवन प्रकृति के साथ रचा-बसा होता है। ऋतुओं का स्वागत वे देवों की पूजा, नृत्य गीत और सामूहिक भोज से करते हैं। जेठ महीने के खत्म होने के बाद बस्तर में भी आषाढ़ आते ही बारिश की प्रतीक्षा होने लगी है। इस मौके पर भीमा-भीमिन का विवाह होता है। इन्हें वर्षा का देवी-देवता माना जाता है। ये प्रतिमा बस्तर के गांवों में इन दिनों देखी जा सकती है। अलग-अलग गांवों में तीन साल से पांच साल के अंतराल में यह विवाह समारोह होता है, जिसमें सैकड़ों ग्रामीण एकत्र होते हैं। साल लकड़ी से बनी दो प्रतिमाएं एक डेढ़ फीट की दूरी पर स्थापित होती हैं। दूल्हे-दुल्हन, देवी-देवता का हल्दी तेल से लेप किया है। दोनों के बीच मटके रखे होते हैं। पूजा अर्चना की जाती है। प्रार्थना की जाती है कि इस बार अच्छी बारिश हो, सबकी सेहत बनी रहे और गांव में किसी पर कोई विपदा न आए। फिर पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नृत्य गीत होता है। सामूहिक भोज किया जाता है। यह तस्वीर बकावंड ब्लॉक के  बजावंड गांव की है।

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