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मध्य प्रदेश: 'हनुमान-भक्त' कमलनाथ की शिवराज चौहान को हिंदुत्व के अखाड़े में चुनौती
06-Jun-2023 8:07 AM
मध्य प्रदेश: 'हनुमान-भक्त' कमलनाथ की शिवराज चौहान को हिंदुत्व के अखाड़े में चुनौती

-सलमान रावी

अप्रैल महीने की दो तारीख़. भोपाल शहर के शिवाजी नगर के चौराहे से होकर गुजरने वाला हर व्यक्ति अच्चम्भे में था क्योंकि मध्य प्रदेश कांग्रेस कमिटी का मुख्यालय – ‘इंदिरा भवन’ भगवा झंडों और बैनरों से पटा पड़ा था.

मौक़ा था प्रदेश कांग्रेस कमिटी के ‘पुजारी प्रकोष्ठ’ की बैठक का. इस बैठक में प्रदेश के मंदिरों के पुजारियों को आमंत्रित किया गया था.

विधानसभा चुनावों से कुछ महीनों पहले कांग्रेस ने 40 से 45 प्रकोष्ठों का गठन किया है. लेकिन जिन तीन प्रकोष्ठों की सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है उनमें ‘पुजारी प्रकोष्ठ के अलावा ‘मठ मंदिर प्रकोष्ठ’ और धार्मिक उत्सव प्रकोष्ठ शामिल हैं.

कांग्रेस पर आरोप लगने लगे हैं कि वो ‘विधानसभा के चुनावों को देखते हुए हिन्दुओं को लुभाने के लिए’ ये सब कुछ कर रही है.

मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अजय विश्नोई ने बीबीसी से बात करते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस की ‘छवि को हिन्दुओं के बीच बनाने के लिए’ ऐसा किया जा रहा है.

इन सभी 45 प्रकोष्ठों का संचालन वरिष्ठ पार्टी नेता जेपी धनोपिया के नेतृत्व में हो रहा है. वो भारतीय जनता पार्टी के आरोपों का जवाब देते हुए कहते हैं, “कांग्रेस समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चल रही है. चाहे वो पुजारी हों, सिन्धी समाज के लोग हों, आदिवासी समाज या फिर अन्य समाज के लोग हों. संगठन में सबकी आवाज़ और मुद्दों के लिए इन प्रकोष्ठों का गठन किया गया है.”

धनोपिया का कहना है कि मध्य प्रदेश के मंदिरों के पुजारियों की कई ऐसी मांगें हैं जिनकी ‘अनदेखी’ राज्य सरकार ने की है.

वो कहते हैं कि कांग्रेस पुजारियों का साथ इसलिए दे रही है क्योंकि ‘उनके साथ अन्याय’ हुआ है. लेकिन विश्नोई कहते हैं कि प्रदेश सरकार ने पुजारियों का मानदेय बढ़ाकर चार हज़ार रूपए किया है और साथ ही मंदिरों के आसपास की ज़मीन को भी उन्हें देने का प्रस्ताव पारित किया है.

विश्नोई का कहना था, “अब कांग्रेस के नेता पुजारियों के पास जाकर कह रहे हैं कि उनकी पार्टी की अगर सरकार बनती है तो वो मंदिरों के आसपास पुजारियों को और भी ज़्यादा ज़मीन देंगे. ये चुनावी स्टंट है. हिन्दुओं के बीच पैठ बनाना कांग्रेस के लिए उतना आसान भी नहीं है चाहे वो कितने भी प्रयास कर लें.”

विश्नोई के दावे अपनी जगह पर हैं. मगर राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि जिस तरह कांग्रेस चुनावों से पहले अपनी रणनीति बना रही है उसने भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों को चिंता में डाल दिया है. ख़ास तौर पर भगवा रंग को आत्मसात करने के कांग्रेस के प्रयास भी भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती बन सकते हैं.

कर्नाटक में पार्टी की जीत के बाद मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बैनर और पोस्टर लगने लगे हैं जिनमे लिखा हुआ है, “हनुमान भक्त कांग्रेस पार्टी को मिला आशीर्वाद कर्नाटक में.”

ऐसे कई पोस्टर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के मुख्यालय के पास भी हैं. इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस कमिटी के ट्विटर हैंडल से जारी किए गए एक ट्वीट में कमलनाथ को ‘हनुमान भक्त’ भी कहा गया है.

उसी ट्वीट में कांग्रेस में थोड़े समय के लिए आई कमलनाथ की सरकार ने हिन्दुओं के लिए क्या किया उसका दावा भी किया गया. जैसे उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर और ओंकारेश्वर मंदिरों का विकास, राम वनगमन पथ बनाने का मंत्रिमंडल का प्रस्ताव और ॐ सर्किट की स्थापना आदि का उलेख किया गया है.

धनोपिया कहते हैं, “कांग्रेस धर्म के नाम पर व्यवसाय नहीं करती है. हम आस्था वाले लोग हैं और आस्था से जुड़े काम करते हैं. हम धर्म के नाम पर उन्माद नहीं फैलाते हैं. हम सुंदरकांड, हनुमान चालीसा का पाठ आयोजित करवाते हैं क्योंकि हमारी आस्था है इनमें. हम छोटे स्तर पर ये आयोजन करते हैं. इनके ज़रिए हम समाज में कोई विद्वेष नहीं फैलाते हैं. भारतीय जनता पार्टी धर्म को चुनावी हथियार बनाना चाहती है. धर्म और भगवा रंग पर भारतीय जनता पार्टी का कोई कॉपीराइट नहीं है.”

पिछले दो सालों में कांग्रेस ने प्रदेश भर में 30 से ज़्यादा धार्मिक आयोजन किए हैं जिनमे कमलनाथ को ‘हनुमान भक्त’ के तौर पर ‘प्रोजेक्ट’ किया जा रहा है.

ये सभी आयोजन धार्मिक और उत्सव समिति की अगुवाई में किए जा रहे हैं जिसकी अध्यक्ष जानी मानी कथा वाचक ऋचा गोस्वामी हैं.

बीबीसी से बात करते हुए ऋचा गोस्वामी कहती हैं, “मैंने बचपन से कथा का पाठ किया है. मुझे राजनीति समझ में नहीं आती है. कई धार्मिक आयोजन किए हैं हमने. ये लोगों की आस्था और उनके धार्मिक विश्वास को देखते हुए किया जा रहा है. सिर्फ़ भारतीय जनता पार्टी ही धर्म की ठेकेदार नहीं है. इंदिरा गाँधी ने भी रुद्राक्ष धारण किया था. ऐसा नहीं है कि जो भारतीय जनता पार्टी में हैं सिर्फ़ वही हिन्दू हैं.”

हालांकि भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि उसे कांग्रेस की इस रणनीति से ‘कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं है’, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि संगठन चाहे इससे इनकार क्यों ना करे लेकिन भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस की इस रणनीति से पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी नुकसान हुआ है जहां वो पिछले विधानसभा के चुनावों में 15 सीटों पर सिमट कर रह गई थी.

छत्तीसगढ़ में सत्ता हासिल करने के बाद भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस के बारे में कहा जाने लगा कि उसने भारतीय जनता पार्टी के ‘हिंदुत्व के एजेंडे’ पर क़ब्ज़ा कर लिया है.

गाय, गोबर और गोमूत्र को लेकर बघेल सरकार कई योजनाएँ चला रही है, मंदिरो का जीर्णोद्धार और नए मंदिर बनाने और हिंदू धर्म से जुड़ी गतिविधियों में अतिरिक्त उत्साह दिखाने के कारण ऐसा कहा जाता है.

कांग्रेस ने माता कौशल्या के मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद संघ प्रमुख मोहन भगवत को यहाँ के दर्शन करने का न्योता भी भेजा. भगवत ने न्योता स्वीकार भी किया और मंदिर के दर्शन भी किए.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक एनके सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि कांग्रेस पहले से ही ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की रणनीति पर चलती थी मगर वो सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार नहीं करती थी. लेकिन वो मानते हैं कि बीजेपी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक रणनीति ज़रूर बदली है.

सिंह कहते हैं कि भारत के राजनीतिक पटल पर भाजपा के उदय के बाद से ही कांग्रेस को लेकर ये धरना फैलाई जा रही थी कि ये ‘हिन्दू विरोधी’ संगठन है.

एनके सिंह ने कहा, “जवाहरलाल नेहरु ने भी हिन्दू धामिक नेताओं के सम्मेलन किए. अब ऐसा दिख रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने के लिए अब कांग्रेस खुलकर मैदान में उतरी है. भारतीय जनता पार्टी की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है. वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद तोड़े आने के बाद भी कमलनाथ परेशान थे कि वो किस तरह भाजपा को चुनौती दे पाएँगे."

वे कहते हैं, "इस काम के लिए कमलनाथ ने हरिद्वार से कई साधुओं को अपने निर्वाचन क्षेत्र छिन्दवाड़ा बुलवाया था. इन साधुओं को अलग-अलग जगहों पर भेजा गया था जहां कमलनाथ चुनावी प्रचार के दौरान जाते थे और इनसे आशीर्वाद लेते थे. इस रणनीति के कमलनाथ माहिर हैं.”

उनका ये भी कहना कहना था कि भाजपा के लिए इस लिए भी चिंता की बात है कि पिछले विधानसभा चुनावों में भी उसे सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा था और वो चुनाव हार गई. (bbc.com/hindi)

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