अंतरराष्ट्रीय

ALEXANDRE MENEGHINI/REUTERS
कोस्टा रिका में एक मादा मगरमच्छ ने अंडे दिये तो वैज्ञानिक हैरान रह गये. हैरत की वजह यह थी कि इस मादा का कोई नर साथी नहीं था और पिछले 16 साल से यह मादा अकेली रह रह थी.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
कोस्टा रिका में इस मादा मगरमच्छ ने जनवरी 2018 में ये अंडे दिये थे. हालांकि मगरमच्छों में मादाएं ऐसे अंडे देती हैं जिनमें से बच्चे नहीं निकलते, लेकिन इस मगरमच्छ के दिये अंडे सामान्य लग रहे थे. और कमाल तब हुआ जब उनमें से एक ने इनक्यूबेटर में बढ़ना शुरू कर दिया. हालांकि यह अंडा भी पूरी तरह परिपक्व नहीं हो पाया लेकिन उसके अंदर से एक अधूरा तैयार मगरमच्छ का बच्चा निकला.
वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस पूरी प्रक्रिया का अध्ययन किया था. उस टीम ने एक शोध पत्र लिखा है जो विज्ञान पत्रिका बायोलॉजी लेटर्स में छपा है. इस शोध में वैज्ञानिकों ने बताया है कि आधा तैयार मगरमच्छ का बच्चा एक ‘वर्जिन बर्थ‘ यानी बिना नर और मादा के संभोग के तैयार हुआ बच्चा था और सिर्फ मां के जीन्स से तैयार हुआ था.
क्या होता है वर्जिन बर्थ?
‘वर्जिन बर्थ' कई प्राणियों में पाया जाता है. सांपों और मक्खियों में ऐसा होता है लेकिन किसी मगरमच्छ में ऐसा पहली बार होता देखा गया. इस आधार पर वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं कि डायनासोरों की कुछ प्रजातियों में भी यह गुण रहा होगा.
डायनासोर से बहुत पुराना और शानदार शिकारी था यह जीव
वर्जिन बर्थ यानी बिना नर और मादा के संभोग के बच्चे का पैदा होना एक अनूठी कुदरती प्रक्रिया है. इसमें मादा के शरीर में अंड-कोशिकाएं तैयार होती हैं. इनमें लगातार विभाजन होता रहता है और यह तब तक जारी रहता है जब तक कि एक बच्चे के लिए जरूरी कुल जीन्स में से आधे तैयार नहीं हो जाते.
इसके साथ ही कुछ सह-उत्पाद भी तैयार होते हैं जो तीन कोशिकीय हिस्सों होते हैं जिनमें क्रोमोसोम होते हैं. इन्हें पोलर बॉडीज कहा जाता है. आमतौर पर ये पोलर बॉडी अलग हो जाते हैं लेकिन कभी कभार ऐसा होता है कि इन तीन में से एक पोलर बॉडी अंडे के साथ मिल जाता है और उसे एक बच्चे के पूरा होने के लिए जरूरी क्रोमोसोम उपलब्ध करा देता है.
शायद डायनासोर भी ऐसे थे
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मादा मगरमच्छ के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ प्रतीत होता है. वर्जीनिया टेक यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर वॉरेन बूथ ने उस मगरमच्छ के अंडों का अध्ययन किया था. आमतौर पर कीट-पतंगों का अध्ययन करने वाले डॉ. बूथ ने वर्जिन बर्थ पर विस्तृत अध्ययन किया है.
मंदिर की ‘रक्षक’ मगरमच्छ को आंसुओं से विदाई
केरल के कासरगोड़ में एक मंदिर में रहने वाली मगरमच्छ की अंतिम विदाई पर हजारों लोग जमा हुए. यह मगरमच्छ दशकों से मंदिर में रह रही थी.
‘शाकाहारी’ मगरमच्छ की विदाई
कासरगोड़ के श्री अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर में रहने वाली मगरमच्छ बाबिया को लोगों ने आंसुओं के साथ विदाई दी. उसके अंतिम संस्कर पर हजारों लोग जमा हुए.
[‘शाकाहारी’ मगरमच्छ की विदाई कासरगोड़ के श्री अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर में रहने वाली मगरमच्छ बाबिया को लोगों ने आंसुओं के साथ विदाई दी. उसके अंतिम संस्कर पर हजारों लोग जमा हुए.] [‘शाकाहारी’ मगरमच्छ की विदाई कासरगोड़ के श्री अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर में रहने वाली मगरमच्छ बाबिया को लोगों ने आंसुओं के साथ विदाई दी. उसके अंतिम संस्कर पर हजारों लोग जमा हुए.]
देवी स्वरूप
देवी की तरह पूजे जाने वाली इस मगरमच्छ की आयु लगभग 80 वर्ष बताई जाती थी. 3,000 साल पुराने विष्णु मंदिर के पास की झील में यह मगरमच्छ दशकों से रह रही थी.
शाकाहार के दावे पर संदेह
बाबिया को लोग मंदिर की रक्षक मानते थे. यह भी मान्यता थी कि बाबिया सिर्फ प्रसाद खाती थी. हालांकि मंदिर के अधिकारी इस दावे की पुष्टि नहीं करते क्योंकि उनके मुताबिक झील में मछलियां भी हैं.
[शाकाहार के दावे पर संदेह बाबिया को लोग मंदिर की रक्षक मानते थे. यह भी मान्यता थी कि बाबिया सिर्फ प्रसाद खाती थी. हालांकि मंदिर के अधिकारी इस दावे की पुष्टि नहीं करते क्योंकि उनके मुताबिक झील में मछलियां भी हैं.] [शाकाहार के दावे पर संदेह बाबिया को लोग मंदिर की रक्षक मानते थे. यह भी मान्यता थी कि बाबिया सिर्फ प्रसाद खाती थी. हालांकि मंदिर के अधिकारी इस दावे की पुष्टि नहीं करते क्योंकि उनके मुताबिक झील में मछलियां भी हैं.]
मंदिर के पास दफनाया गया
बाबिया को मंदिर के पास ही दफना दिया गया. लोगों की मान्यता थी कि यह मगरमच्छ 1942 में एकाएक आ गई थी.
[मंदिर के पास दफनाया गया बाबिया को मंदिर के पास ही दफना दिया गया. लोगों की मान्यता थी कि यह मगरमच्छ 1942 में एकाएक आ गई थी.] [मंदिर के पास दफनाया गया बाबिया को मंदिर के पास ही दफना दिया गया. लोगों की मान्यता थी कि यह मगरमच्छ 1942 में एकाएक आ गई थी.]
क्या मगरमच्छ शाकाहारी होते हैं?
हाल ही में हुए कुछ अध्ययनों में पता चला है कि 20 करोड़ साल पहले मगरमच्छों की कुछ शाकाहारी प्रजातियां धरती पर होती थी. अमेरिका की यूटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा था कि इन प्रजातियों के दांत फल और सब्जियां खाने के हिसाब से बने थे.
[क्या मगरमच्छ शाकाहारी होते हैं? हाल ही में हुए कुछ अध्ययनों में पता चला है कि 20 करोड़ साल पहले मगरमच्छों की कुछ शाकाहारी प्रजातियां धरती पर होती थी. अमेरिका की यूटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा था कि इन प्रजातियों के दांत फल और सब्जियां खाने के हिसाब से बने थे.] [क्या मगरमच्छ शाकाहारी होते हैं? हाल ही में हुए कुछ अध्ययनों में पता चला है कि 20 करोड़ साल पहले मगरमच्छों की कुछ शाकाहारी प्रजातियां धरती पर होती थी. अमेरिका की यूटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा था कि इन प्रजातियों के दांत फल और सब्जियां खाने के हिसाब से बने थे.]
मगरमच्छ के बच्चे की जीनोम सीक्वेंसिंग करने के बाद डॉ. बूथ कहते हैं कि जीन्स की ऊपरी परत मां के डीएनए से अलग नजर आती है जिससे पहता चलता है कि पोलर बॉडी और अंडे का मिश्रण हुआ होगा.
डॉ. बूथ बताते हैं कि पक्षियों, छिपकलियों और सांपों में ऐसा ही होता है. लेकिन मगरमच्छ इन जीवों से कहीं ज्यादा पुरानी प्रजाति हैं, जिस वजह से मगरमच्छों से पहले की प्रजातियों को लेकर भी वैज्ञानिकों में उत्सुकता पैदा हुई है. डॉ. बूथ कहते हैं, "इससे हमें पता चलता है कि बहुत संभव है कि पेट्रोसॉर्स और डायनोसोर्स में भी ऐसा ही हुआ होगा.”
मगरमच्छ क्या कभी दो पैरों पर चलते थे
वैसे वर्जिन बर्थ से पैदा हुए बच्चों के बचने की संभावना कम ही होती है. डॉ. बूथ कहते हैं कि कुछ बच्चे वयस्क हो जाते हैं लेकिन वे सबसे स्वस्थ जीव नहीं होते.