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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महिला के हिंसा और जुर्म भी सशक्तिकरण के सुबूत
08-Jun-2023 4:20 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महिला के हिंसा और जुर्म भी सशक्तिकरण के सुबूत

किसी भी देश या अर्थव्यवस्था में महिलाओं के सशक्तिकरण का एक पैमाना उनका कामकाजी होना भी होता है। वैसे तो हर महिला कामकाजी होती है, और घर का काम उसके ही कंधों पर होता है, लेकिन घर के बाहर के कामकाज में महिला की भागीदारी न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करती है, बल्कि वह महिलाओं को अधिक आत्मनिर्भर बनाती है, और उसे जिंदगी के बेहतर फैसले लेने की ताकत देती है। अब इन दिनों एक और सामाजिक पैमाना ऐसा सामने आ रहा है जो महिला सशक्तिकरण का एक अलग किस्म का सुबूत है। हालांकि जुर्म से जुड़े हुए ऐसे पैमाने को कई लोग महिलाओं का अपमान भी मान सकते हैं, लेकिन हमारी ऐसी कोई नीयत नहीं है। 

इन दिनों लगातार बहुत सी ऐसी खबरें आती हैं जो बताती हैं कि कोई लडक़ी या महिला किस तरह किसी पुरूष के खिलाफ हिंसा या जुर्म कर सकती है। एक वक्त था जब यह कल्पना नहीं की जाती थी कि भारत जैसे समाज में पत्नी या प्रेमिका अपने साथी पुरूष का कत्ल कर सकती हैं, लेकिन हाल के बरसों में लगातार ऐसी वारदातें बढ़ रही हैं। कई पत्नियां किसी प्रेमी के साथ मिलकर या भाड़े के हत्यारे जुटाकर पति की हत्या कर रही हैं, या पति के साथ मिलकर उस प्रेमी की हत्या कर रही हैं जो उसे ब्लैकमेल कर रहा है, या परेशान करने लगा है। अभी ओडिशा के रेल हादसे के बाद एक अजीब सा मामला सामने आया जिसमें एक महिला अपने पति को ढूंढते पहुंची, और फिर एक लाश की पहचान करके उससे लिपटकर रोती रही। बाद में पुलिस ने जांच की तो उस महिला का दावा झूठा निकला। ऐसा समझ आया कि वह महिला मुआवजा पाने के लिए ऐसा नाटक कर रही थी। उसे पुलिस ने समझा-बुझाकर घर भेज दिया, लेकिन उसकी असली परेशानी तब शुरू हुई जब पिछले तेरह बरस से उससे अलग रह रहे पति को यह पता लगा, और उसने जाकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उससे अलग रह रही पत्नी उसे मरा हुआ बताकर 17 लाख रूपए मुआवजा रेलवे से पाने की कोशिश कर रही है। 

महिलाओं की अपराध करवाने की क्षमता, उनका हौसला, और आत्मविश्वास भी एक किस्म से उनके सशक्तिकरण का सुबूत है। आज महिलाएं पढ़ाई के लिए, कामकाज के लिए घर के बाहर निकलती हैं, सफर करती हैं, सोशल मीडिया पर लोगों से मिलती हैं, और उनके संपर्क बढ़ते हैं। मोबाइल और दुपहिया के चलते ऐसे संपर्क जिंदा रह पाते हैं, और वे अच्छे कामों के लिए, या बुरे कामों के लिए इनका इस्तेमाल कर सकती हैं। पहले महिला को घर से निकलने, बाहर काम करने, लोगों से दोस्ती रखने की छूट नहीं रहती थी, और आज बदले हुए माहौल ने उसे यह आजादी दी है जिससे उसे अच्छे और बुरे, दोनों किस्म के काम करने की नई ताकत मिली है। पहले जुर्म पर मर्दों का तकरीबन एकाधिकार रहता था, लेकिन अब वह टूट रहा है, और हर किस्म के जुर्म करते हुए महिलाएं भी मिल जाती हैं, जो कि कत्ल जैसे जुर्म के लिए दूसरे लोगों को भी जुटा लेती हैं। इसके लिए जो आत्मविश्वास जरूरी होता है, जितनी संगठन-क्षमता लगती है, वह सब भी एक नई बात है, और हाल के दशकों में वह धीरे-धीरे बढ़ी है। जिस तरह विवाहेत्तर संबंधों में, नशा करने में, कुछ समाजों की कुछ महिलाएं अब मर्दों की बराबरी करने लगी हैं, वैसा ही जुर्म के मामले में भी होने लगा है, और यह महिला के आर्थिक विकास, आत्मनिर्भरता, और आत्मविश्वास से जुड़ा हुआ मामला है। 

हिन्दुस्तान में कामकाजी कामगारों में महिलाओं का अनुपात बहुत ही कम है। यह शायद 20 फीसदी के आसपास है। लेकिन पहले अधिकतर कामकाजी महिलाएं अपने खेतों और अपने कुटीर उद्योगों में काम करने वाली रहती थीं, अब वे अधिक नए किस्म के काम भी करने लगी हैं। शहरों में ऑटोरिक्शा और टैक्सी चलाने वाली महिलाएं दिखती ही रहती हैं। खासकर बैटरी से चलने वाले ऑटोरिक्शा चलाना अधिक आसान काम है, और कई शहरों में महिलाएं बड़ी संख्या में यह काम करते दिख रही हैं। लेकिन महिलाओं के कामकाजी होने से परे, उनमें आत्मविश्वास आना एक अलग किस्म का सामाजिक विकास है जिसे कि न तो आंखों से देखा जा सकता, और न ही जिसे रोजगार या कारोबार के आम पैमानों पर नापा जा सकता। महिलाएं अब पहले की तरह जुल्मों को सहते हुए पड़ी नहीं रहती हैं, वे अब पहले से अधिक मामलों में हिंसा और प्रताडऩा का विरोध करने लगी हैं, वे अब पुलिस तक जाने लगी हैं, अदालत तक पहुंचने लगी हैं, और अत्याचारी पति से परे भी एक भविष्य और जिंदगी देखने लगी हैं। समाज में जब कभी कोई महिला ऐसा आत्मविश्वास दिखाती है, तो वह दूसरी प्रताडि़त महिलाओं में भी एक विश्वास पैदा करती है, बिना कहे महज अपनी मिसाल से। इसलिए महिला का आत्मविश्वास, खासकर जुल्म और जुर्म का विरोध करने का आत्मविश्वास, फिर चाहे वह अहिंसक तरीके से सामने आए, या हिंसक तरीके से, वह बहुत से मर्दों का अहंकार तोड़ता है, और बहुत सी महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करता है। महिलाएं अगर कोई गलत काम करके भी, एक गलत मिसाल बनकर भी अगर दहशत पैदा कर सकती हैं, तो उससे बहुत से जुल्मी मर्द सहम जाते हैं। इस सिलसिले में फूलन देवी जैसी डकैत ने जो जवाबी हिंसा की थी, और जिस हिंसा के जवाब में उसने बंदूक उठाई थी, उसे भी याद रखना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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