संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमित शाह को भूपेश बघेल की चुनौती के बाद तो कार्रवाई हो..
04-Sep-2023 3:50 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय  : अमित शाह को भूपेश बघेल की  चुनौती के बाद तो कार्रवाई हो..

केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह छत्तीसगढ़ आकर यहां की कांग्रेस सरकार के खिलाफ बहुत कुछ बोलकर गए हैं। उन्होंने एक बड़ी मोटी सी पुस्तिका की शक्ल में आरोप पत्र जारी किया, और काफी तीखे शब्दों में राज्य सरकार को भ्रष्ट करार दिया। इसी दिन राजधानी रायपुर में ही राहुल गांधी का भी कार्यक्रम था, जिसमें कि जाहिर है कि राज्य सरकार की तारीफ की गई, और केन्द्र सरकार और भाजपा की आलोचना की गई। इसके पहले कांग्रेस भाजपा का काला चिट्ठा नाम से एक दस्तावेज जारी कर चुकी थी जिसमें पिछली रमन सरकार के कार्यकाल की कुछ बातें, और मोदी सरकार की कुछ बातों के खिलाफ कई आरोप लगाए गए थे। 

लेकिन जब राजनीतिक आरोपों से परे ठोस बातों को देखें, तो ऐसा लगता है कि इनके बीच असल भ्रष्टाचार, और असल जुर्म कहीं दबकर न रह जाए, कहीं ऐसा न हो जाए कि जुर्मों की चर्चा सिर्फ चुनावी राजनीति तक सीमित रहे, और चुनावों के साथ ही केन्द्र और राज्य की जांच एजेंसियां भी ठंडी पड़ जाएं। कल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह कहा है कि राज्य में महादेव सट्टा ऐप के खिलाफ कार्रवाई यहां की सरकार ने की है, पैसे भी जब्त किए हैं, आप क्या कर रहे हैं? उन्होंने एक किस्म से अमित शाह से ही यह सवाल किया कि महादेव ऐप बंद कौन करेगा? राज्य सरकार करेगी, या केन्द्र सरकार? उन्होंने अमित शाह से पूछा कि अगर इसे बंद नहीं कर रहे हैं, तो क्या कारण है? भूपेश बघेल ने कहा कि राज्य सरकार ने इस सट्टेबाजी ऐप का न सिर्फ पैसा जब्त किया, बल्कि इसके उपकरण भी जब्त किए, लुक आउट सर्कुेलर जारी किया, केन्द्र सरकार ने क्या किया? उन्होंने तो यह तक कहा कि केन्द्र सरकार इसकी जांच किसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी को दे दे। 

महादेव ऐप नाम का आनलाईन सट्टेबाजी का हजारों करोड़ का कारोबार छत्तीसगढ़ से ही पनपा है, और ऐसी चर्चा है कि दुर्ग-भिलाई इलाके के इसके संचालक अब दुबई जा बसे हैं। किसी फिल्मी कहानी की तरह ऐसी कतरा-कतरा खबरें आती हैं कि बड़े-बड़े अफसर, बड़े-बड़े नेता, दुबई में जुर्म की दुनिया काबू करने वाला दाऊद इब्राहिम, इन सबका इस धंधे में दखल है। ईडी ने छत्तीसगढ़ में इस सिलसिले में मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार, और कांग्रेस के राज्य के सबसे बड़े रणनीतिकार विनोद वर्मा सहित कई लोगों पर छापे डाले, और उनसे बयान लेना भी जारी है। मुख्यमंत्री का यह कहना सही है कि राज्य पुलिस ने इस सट्टेबाजी से जुड़े बहुत से लोगों पर कार्रवाई की है। लेकिन ईडी ने अदालत को बताया है कि राज्य के बड़े-बड़े आईपीएस और गैरआईपीएस पुलिस अधिकारी इस धंधे से लगातार पैसा पाते थे, और यह पैसा नेताओं तक भी पहुंचता था। ऐसे में हम ईडी के अदालत में कहे हुए के मुकाबले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अमित शाह को दी गई सार्वजनिक चुनौती को अधिक वजनदार मानते हैं कि केन्द्र सरकार इस ऑनलाईन सट्टेबाजी पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है? इसे बंद क्यों नहीं कर रही है, उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि केन्द्र सरकार तो ऑनलाईन सट्टेबाजी पर 28 फीसदी जीएसटी लगा चुकी है। 

भूपेश बघेल और ईडी इन दोनों के सामने रखे गए तथ्य एक-दूसरे के ठीक खिलाफ हैं। ऐसे में जब राज्य के मुख्यमंत्री केन्द्रीय गृहमंत्री को कार्रवाई की चुनौती देते हैं, तो इस पर भरोसा करना चाहिए। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह इस सट्टेबाजी ऐप को बंद करे, जो कि साइबर कानून के तहत उसके लिए पल भर का काम है। दूसरी बात यह कि यह सट्टेबाजी देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों से चल रही थी, और इन सब जगहों पर कार्रवाई करना भी केन्द्र सरकार के एजेंसियों के हाथ है, फिर चाहे इसके खिलाफ एफआईआर किसी एक राज्य में ही क्यों न दर्ज की गई हो। केन्द्र सरकार के पास दूसरे देशों में जांच करने का भी अधिकार है, और वही अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ तालमेल से ऐसी कार्रवाई कर सकती है। केन्द्र सरकार की ईडी ने छत्तीसगढ़ में महादेव ऐप के सिलसिले में कई लोगों पर छापे मारे हैं, और कई लोगों को गिरफ्तार करके जेल भी भेजा है। ये सारे आरोप बहुत भयानक हैं, राज्य की पुलिस के अफसरों और कर्मचारियों के बारे में ईडी ने जो कुछ कहा है, उसे या तो अदालत में साबित करना चाहिए, या फिर चुनावी राजनीति से परे ऐसे आरोप बंद होने चाहिए। छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के केन्द्र की मोदी सरकार के साथ तनातनी के संबंध हैं। मुख्यमंत्री के आसपास के दर्जनों लोगों को ईडी ने अपने निशाने पर रखा हुआ है, और बहुत से लोग महीनों से जेल में हैं। ऐसे में जब भूपेश बघेल केन्द्र सरकार को कार्रवाई की चुनौती दे रहे हैं, तो यह जिम्मा अब केन्द्र सरकार की एजेंसियों का है कि वे सारी सच्चाई सामने रखें। राज्य का चुनाव सामने है, और ऐसे में अगर ईडी की कार्रवाई के सुबूत अगर सामने नहीं आते हैं, सिर्फ अदालत में दाखिल उसके आरोप ही हवा में तैरते रहते हैं, तो वह मतदाताओं के साथ ज्यादती होगी। अगर केन्द्र की एजेंसियों के पास कोई सुबूत हैं, तो उन्हें खुलकर सामने रखना चाहिए, उनके आधार पर जो कार्रवाई की जा सकती है वह करनी चाहिए, वरना इसे राजनीतिक आरोप का सामान बनाना ज्यादती होगी। 

पिछले दो दिनों से राज्य में यह भी चर्चा है कि ईडी के दर्ज किए गए एक मामले में जेल में बंद, कोयला उगाही माफिया सूर्यकांत तिवारी का नाम भी भाजपा के मोटे आरोप पत्र में नहीं लिखा गया है। अगर ऐसा है तो आरोप पत्र बनाने वाले लोगों को यह जवाब देना चाहिए कि इस माफिया सरगना कहे जाने वाले सूर्यकांत तिवारी का नाम क्या इसलिए छोड़ा गया है कि उसके रमन सरकार के तमाम लोगों के साथ बड़े अंतरंग संबंध थे, और सबके साथ उसकी तस्वीरों के एलबम उसकी गिरफ्तारी के समय से सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं। जब कोई आरोप लगाया जाता है, तो लगाने वाले लोग कई बातों के लिए जवाबदेह भी हो जाते हैं। आज भूपेश बघेल के जवाबी हमले के बाद भाजपा की ओर से अमित शाह को ही इन सब बातों का जवाब देना होगा क्योंकि उन्होंने केन्द्र सरकार की एजेंसियों के दायर किए गए मुकदमों के आधार पर आरोप लगाए हैं, और भूपेश बघेल ने उन्हें कार्रवाई करने की चुनौती दी है। लोकतंत्र और छत्तीसगढ़ की जनता के हित में यही होगा कि इन मामलों पर गोलमोल आरोपों के बजाय ठोस सुबूत जनता के सामने रखा जाए, और जनता उसके आधार पर अपना फैसला ले सके। 

हमने केन्द्र और राज्य सरकारों की कई जांच एजेंसियों की कार्रवाईयों को ठंडे बस्ते में जाते देखा है, आरोपियों और मुजरिमों के दलबदल से मामले खत्म होते देखा है, अपने पसंदीदा मुजरिमों के खिलाफ मामले को पटरी से उतारते हुए भी देखा है, और ऐसा लगता है कि इस देश में जुर्म की जांच का काम राजनीति का एक विस्तार होकर रह गया है। ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकार दोनों को चाहिए कि अब तक जांच में मिले हुए तथ्यों को जनता की समझ में आने लायक भाषा में उसके सामने रखा जाए, ताकि जनता छोटा मुजरिम छांट सके। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी भाजपा नेताओं पर आरोप वाले कई मामले दर्ज कर रखे हैं, उसे भी तथ्य जनता के सामने रखना चाहिए। अभी दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे के खिलाफ काला चिट्ठा सामने रखा है, हमारा कहना है कि ये दोनों ही पार्टियां जनता के सामने श्वेत पत्र रखें, जिनमें जांच एजेंसियों की सार्वजनिक की गई बातों को सरल भाषा में समझाया जाए, और जनता को फैसला लेने में मदद की जाए। मोटे-मोटे काले कागजों में छपे अभी के ये आरोप पत्र बहुत काम के नहीं हैं, जांच एजेंसियों के अदालत में पेश आरोप पत्र, उनके सुबूत, पुलिस में दर्ज मामलों की स्थिति, इन सब पर दोनों पार्टियों को श्वेत पत्र निकालने चाहिए, जो कि पतले अखबारी कागज पर सस्ते छपे हुए रहें, लेकिन अधिक लोगों तक पहुंच सकें। ऐसा करके कांग्रेस और भाजपा जनता के लोकतांत्रिक अधिकार मजबूत कर सकेंगी। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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