विचार / लेख

डॉ. आर.के. पालीवाल
जी 20 समूह वर्तमान ग्लोबल दौर में सबसे शक्तिशाली समूह है जिसमें आबादी के लिहाज से विश्व के दो सबसे बड़े देश भारत और चीन शामिल हैं। विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका शामिल है, समाजवादी विचारधारा के सिरमौर रहे चीन और रूस हैं, ब्रिटेन, फ्ऱांस और यूरोपियन यूनियन हैं, आस्ट्रेलिया और कनाडा हैं और जापान और दक्षिण कोरिया सरीखी एशिया की अग्रणी औद्योगिक शक्तियां हैं। इन तमाम शक्तिशाली राष्ट्रों के समूह के राष्ट्रध्यक्षों का एक साथ भारत में आना निश्चित रूप से हमारे देश के लिए गौरव की बात है।
हालांकि इतर कारणों से रूस और चीन के राष्ट्रपतियों का इस शिखर सम्मेलन में अनुपस्थित रहना थोडी सी रिक्तता भी पैदा कर रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध के कारण रूसी राष्ट्रपति इधर अपने ही देश में विभिन्न समस्याओं से घिरे हुए हैं इसलिए उनकी अनुपस्थिति को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है लेकिन चीन के राष्ट्रपति के नहीं आने से भारत सहित अमेरिका जैसे देश भी निराश हैं।
जहां तक रूस के राष्ट्रपति की अनुपस्थिति का प्रश्न है उसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि सम्मेलन में शामिल हो रहे अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश नाटो संगठन के माध्यम से रूस यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन के साथ खड़े हैं और उसे रूस का मुकाबला करने के लिए आधुनिक हथियार और हर तरह की मदद मुहैया करा रहे हैं। वे यह भी चाहते हैं कि शिखर सम्मेलन में आए राष्ट्रध्यक्षों की वार्ताओं में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाएं। ऐसे में हमेशा विश्व शांति का समर्थक रहा भारत भी शांति के प्रयास से सहमत होगा। इस स्थिति में रूसी राष्ट्रपति के लिए अजीब सी स्थिति पैदा हो सकती थी इसलिए मेजबान भारत के लिए भी उनकी अनुपस्थिति ठीक ही है। चीनी राष्ट्रपति की अनुपस्थिति की प्रमुख वजह यह आंकी जा रही है कि वे भारत में हो रहे इस वैश्विक आयोजन के साक्षी बनना नहीं चाहते। यह हमारी विवशता है कि पाकिस्तान और चीन के रुप में हमारे दो पड़ोसी देश हमारी सफलताओं से कभी खुश नहीं होते उल्टे उसमें हर संभव विघ्न डालने की कोशिश करते हैं।
जहां तक इस सम्मेलन के भारत के लिए महत्व का प्रश्न है उसमें सबसे अहम यह है कि इसमें अमेरिका, फ्रांस , ब्रिटेन और जापान आदि देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मौजूदगी भारत के साथ लोकतांत्रिक और विकसित देशों से मजबूत होते रिश्तों की पहचान बनेगी। किसी भी देश के लिए इतने राष्ट्र प्रमुखों की एक साथ उपस्थिति गौरवपूर्ण है क्योंकि ऐसे आयोजनों की खबरें पूरे विश्व में प्रवाहित होती हैं। अधिकांश राष्ट्रों के अध्यक्षों के साथ भारत के प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय वार्ताएं भी होंगी क्योंकि कुछ अतिथि सम्मेलन के पहले पहुंचे हैं और कुछ सम्मेलन के बाद भी वार्ताओं के लिए रुकेंगे।
शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत सुबह सवेरे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि स्थल राजघाट से हो रही है। महात्मा गांधी हमारी ऐसी विलक्षण विभूति है जिसकी मूर्ति के सामने विश्व के सर्वाधिक शाक्तिशाली शासकों का सर स्वत: सम्मान से झुक जाता है। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से भी ज्यादा बेहतर तरीके से महात्मा गांधी के नाम का प्रयोग किया है चाहे उनका नाम स्वच्छता अभियान से जोडक़र देश भर में फैलाया हो या राजघाट, साबरमती और संयुक्त राष्ट्र संघ में उनके सामने नतमस्तक होकर विदेशियों से गर्व से उनका जिक्र किया हो। इसे हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिस समय शिखर सम्मेलन के तमाम प्रमुख अतिथि अपने भारी भरकम दल बल के साथ राजघाट पर नत मस्तक होकर हमारे राष्ट्रपिता की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे होंगे तब हमारी सरकार द्वारा उसी गांधी के विचारों के प्रचार प्रसार में जुटी संस्था सर्व सेवा संघ वाराणसी को ध्वस्त करने के विरोध मे कुछ गांधी जन प्रार्थना सत्याग्रह कर रहे होंगे। क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि गांधी के प्रति सबका सर झुकवाने वाले हम भारत के शासक और नागरिक खुद भी गांधी विचार को आत्मसात करने का सच्चा प्रयास करेंगे।