विचार / लेख

गुट्टा रोहित
तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू को शनिवार सुबह गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी आंध्र प्रदेश पुलिस की सीआईडी ने कथित स्किल डिवेलपमेंट घोटाले में की है।
आरोप है कि यह घोटाला नायडू के 2014 से 2019 के बीच मुख्यमंत्री रहते हुए हुआ था। नायडू की गिरफ्तारी आंध्र प्रदेश में प्रतिशोध की राजनीति के बदलते हुए परिदृश्य को सामने लाई है।
कुछ लोगों का कहना है कि चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 का उल्लंघन है। उनका तर्क है कि गिरफ्तारी से पहले न तो राज्यपाल की मंजूरी ली गई और न ही उन्हें कोई नोटिस दिया गया।
पिछले पाँच साल में यह पहली बार नहीं है कि उन्हें निशाना बनाया गया है। टीडीपी की 2019 के विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद से अब तक उनके खिलाफ 10 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं इसी दौरान उनके बेटे नारा लोकेश के खिलाफ 16 अन्य मामले दर्ज किए गए हैं।
आंध्र प्रदेश में बदले की राजनीति का इतिहास
साल 2019 की हार के बाद अमरावति में चंद्रबाबू नायडू के दफ्तर को बुलडोजर से जमींदोज कर दिया गया था। वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं ने इस कार्रवाई पर जश्न मनाया था। वाईएसआर कांग्रेस का कहना था कि अतिक्रमण की वजह से यह कार्रवाई की गई।
इसी तरह की कार्रवाई टीडीपी मुख्यालय पर भी हुई थी। इस तरह राज्य में प्रतिशोध की राजनीति का एक नया अध्याय शुरू हुआ। यही नहीं राज्य की विधानसभा में नायडू के परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत हमले किए गए। यह इतना तगड़ा था कि नायडू विधानसभा में ही रो पड़े।
उन्होंने कसम खाई कि अब मुख्यमंत्री बनने के बाद ही वो विधानसभा में आएंगे।
यह वाईएसआर कांग्रेस की ओर से शुरू किया गया कोई नवाचार नहीं था। चंद्रबाबू नायडू लोकतंत्र के संरक्षक भी नहीं हैं।
जगन मोहन रेड्डी जब विपक्ष में थे तो टीडीपी के सदस्यों ने उन पर ताने मारे थे और आरोप लगाए थे। इसके बाद जगन मोहन रेड्डी विधानसभा से बाहर चले गए थे। वो मुख्यमंत्री बनने के बाद ही विधानसभा लौटे थे।
चुनाव नजदीक आते ही राज्य में बदले की राजनीति अब अपने चरम पर पहुँच रही है। टीडीपी को उम्मीद है कि नायडू की गिरफ्तारी से उन्हें सहानुभूति मिलेगी।
पार्टी का कहना है कि जब जगन को जेल हुई थी तो उन्हें सहानुभूति मिली थी। अब जिस तरह से नायडू की गिरफ्तारी हुई है, उससे टीडीपी को कुछ सहानुभूति मिल सकती है। लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ है।
सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर हरगोपाल कहते हैं कि इस तरह की बदले की राजनीति न तो 2019 में शुरू हुई और न ही जगन मोहन रेड्डी प्रतिशोध की राजनीति के पहले शिकार हैं।
नायडू को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने शासनकाल में विपक्षी आंदोलनों के प्रति अलोकतांत्रिक रवैये के लिए जाने जाते हैं।
साल 1995-2004 के बीच अपने मुख्यमंत्री काल में नायडू के नव-उदारवादी एजेंडे के किसी भी विरोध के प्रति उनकी अत्याधिक शत्रुता के कई उदाहरण हैं।
साल 2019 के बाद न केवल नायडू और उनके बेटे को इसका खमियाजा भुगतना पड़ा, बल्कि टीडीपी के अन्य नेताओं को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
टीडीपी की औद्योगिक नीति पर सवाल
टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के बीच जारी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता केवल राजनेताओं तक सीमित नहीं है।
बिजनेस हाउस भी इसकी चपेट में आए हैं। ऐमरान बैटरी बनाने वाले आमरा राजा ग्रुप के मालिक टीडीपी सांसद गाला जयदेव हैं। आंध्र प्रदेश में इस ग्रुप का कारखाना बहुत पहले से है।
इस समूह ने अभी हाल ही में अपनी विस्तारित परियोजनाएं तेलंगाना में लगाने की घोषणा की हैं। माना जा रहा है कि प्रदेश सरकार के उत्पीडऩ से तंग आकर यह फैसला लिया है।
वहीं बिजनेस इनसाइडरों के मुताबिक टीडीपी से जुड़े ग्रेनाइट खनन क्षेत्र के कारोबारियों को या तो अपनी योजनाएं रोकनी पड़ी हैं या अपनी वफादारी सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ करनी पड़ी है।
आरोप तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि आंध्र प्रदेश में अपनी यूनिट लगाने की घोषणा करने वाली कंपनियों ने अपनी योजनाएं रद्द कर दी हैं। पिछली और वर्तमान सरकार में आयोजित वैश्विक निवेश शिखर सम्मेलन भव्य फोटो-ऑप कायक्रमों से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
टीडीपी समर्थक व्यापारिक समुदाय में निराशा है। आंध्र प्रदेश के आर्थिक परिदृश्य में अडानी के एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभरे है। उन्हें कथित तौर पर वाईएसआर कांग्रेस का गुप्त समर्थन हासिल है। इसने स्थिति को और उलझा दिया है।
जाति के आधार पर हमला
वाईएसआर कांग्रेस ने 2019 में सत्ता में आने के बाद जो सबसे बड़े फ़ैसले लिए उनमें से एक था अमरावती के निर्माण पर रोक लगाना।
एक बार बन जाने के बाद अमरावति 50 हजार एकड़ की देश की सबसे बड़ी ग्रीनफिल्ड राजधानी होती। इसके आर्थिक रूप से व्यवहार न होने को लेकर यह तर्क दिया गया कि यह ‘अमरावती’ नहीं बल्कि ‘कम्मारावती’ है। (कम्मारावति कामा और अमरावति से मिलककर बना है, कामा एक जाति है, जिससे टीडीपी के संस्थापक और चंद्रबाबू नायडू आते हैं)।
इसे ऐसे समझ सकते हैं कि राज्य सरकार के मंज्ञी बोत्सा सत्यनारायण ने कई बार कहा कि अमरावती एक रियल-एस्टेट प्रोजेक्ट है। यह केवल नायडू की जाति को लाभ पहुंचाने वाली जाति की राजधानी के अलावा कुछ नहीं है।
इसके बाद नायडू और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं के खिलाफ कम से कम तीन मामले दर्ज किए गए। उन पर कथित अमरावती घोटाले का मास्टरमाइंड होने का आरोप लगाया गया।
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि राजधानी बदली नहीं जानी चाहिए। उसने सरकार को जल्द से जल्द अमरावति में निर्माण कार्यों को पूरा करवाने का आदेश दिया। लेकिन वाईएसआर कांग्रेस सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी।
तेलगू सिनेमा के लोकप्रिय कलाकार पवन कल्याण के राजनीति में प्रवेश के साथ ही आंध्र प्रदेश की जाति आधारित राजनीति में एक नया मोड़ आ गया।
पवन का आधार कप्पू जाति में है। जिसकी आंध्र प्रदेश में बड़ी आबादी है। कोस्टल आंध्र प्रदेश में कम्मा और कप्पू में तनाव था। जगन की इन दोनों ताक़तों को एकजुट करने की ताक़त अब स्पष्ट है।
पवन ने जनसेना और टीडीपी के एकजुट होकर चुनाव लडऩे की घोषणा की है। टीडीपी में निराशा है क्योंकि चंद्रबाबू नायूड अब बूढ़े हो रहे हैं और जगन ने उनके वित्तीय स्रोतों को निचोड़ लिया है।
ऐसे में एक बार फिर हार टीडीपी के लिए घातक झटका हो सकती है। (बाकी पेज 8 पर)
यह खेल आंध्र प्रदेश की राजधानी में हो रहा है। ऐसे में पैदा हुई हताशा कई बुरी चीजों को बढ़ावा देती हैं।
आंध्र प्रदेश की राजनीति का इतिहास
आंध्र प्रदेश में 1903 के चुनाव में कम्युनिस्टों के नेतृत्व वाले प्रोग्रेसिव डेमोक्रेेटिक फ्रंट (पीडीएफ) ने कांग्रेस के हाथ से सत्ता करीब-करीब छीन ली थी।
हालांकि इसके बाद कांग्रेस ने चुनावी इतिहास में अपना एकाधिकार कर लिया, फिल्म स्टार एनटी के नेतृत्व में तेलुगु देशम पार्टी के उदय ने 1982 में कांग्रेस के सत्ता केंद्र को उखाड़ फेंका।
इस पर रेड्डी और ब्राह्मण जातियों का वर्चस्व था। टीडीपी के उदय ने पिछड़ी जातियों को कुछ राजनीतिक स्पेस दिया। अन्य पिछड़ी जातियों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण मिला।
उसके बाद से ही टीडीपी कम्माओं के नेतृत्व वाली पार्टी बनी हुई है। पिछड़ी जातियों का एक वर्ग उनका प्रमुख समर्थन आधार है।
अनुसूचित जाति में शामिल मडिगा का भी उसे समर्थन मिला है। कुछ मडिगा नेता टीडीपी के साथ-साथ राज्य के बड़े नेता बनकर उभरे हैं। टीडीपी की बागडोर विवादास्पद रूप से एनटीआर के दामाद चंद्रबाबू नायडू के हाथ में चली गई। 2004 तक टीडीपी सत्ता में रही।
टीडीपी को 2004 के चुनाव करारी हार का सामना करना पड़ा। वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक बार फिर सत्ता में वापसी की।
राजशेखर रेड्डी ने नायडू के बेलगाम और हिंसक नव-उदारवादी शासन के विरोध में लोकलुभावन घोषणाओं और योजनाओं के दम पर सत्ता में वापसी की।
एक हवाई हादसे में राजशेखर रेड्डी की मौत के बाद जगन मोहन रेड्डी की राजनीति में एंट्री हुई। वो मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। लेकिन कांग्रेस आलाकमान की योजना अलग थी।
उसने जगन की मांग पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद जगन ने कांग्रेस छोडक़र वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के नाम से अपनी पार्टी बनाई और कांग्रेस के खिलाफ लामबंदी की।
आंध्र प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस की जगह कहाँ है?
कांग्रेस सरकार ने इसे अच्छा नहीं माना। इसके बाद जगन को करीब 16 महीने जेल में बिताने पड़े। उनके साथ पार्टी के वरिष्ठ नेता, नौकरशाह और कुछ उद्योगपतियों को भी जेल में रहना पड़ा।
जगन के खिलाफ यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है। दरअसल, इस मामले में जो याचिककर्ता थे, उनमें से एक टीडीपी सांसद येरम नायडू भी थे।
साल 2014 में आंध्र प्रदेश का बँटवारा हो गया। इसने कांग्रेस को राज्य की राजनीति से पूरी तरह से बाहर कर दिया।
साल 2014 के चुनाव में टीडीपी ने जीत दर्ज की। इससे पहले टीडीपी की सरकारों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी हुआ करती थी। लेकिन यह जगह अब वाईएसआरसीपी ने ले ली।
अपनी सरकार के दौरान टीडीपी जगन के कथित आर्थिक अपराधों का जिक्र करना नहीं छोड़ती थी। वह लगातार उन्हें ्र1 के नाम से पुकारती रही(जगन कई मामलों में अभियुक्त नंबर एक बनाए गए थे। इन दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में हिंसक झड़पें भी हुईं।
इसी समय, पिछड़ा वर्ग के टीडीपी से दूर जाने लगा। वो वाईएसआरसीपी की ओर देखने लगा। ऐसे में जातिगत समीकरण भी बदलने लगे।
वाईएसआरसीपी ने 2019 में राज्य की सत्ता संभाली। सत्ता संभालने के बाद जगनमोहन रेड्डी ने अमरावती जैसी परियोजनाओं को रद्द करना शुरू किया और टीडीपी सरकार में शुरू हुई परियोजनाओं की जांच शुरू करवाई।
आंध्र प्रदेश की तीन राजनीतिक शक्तियाँ
एन जयप्रकाश नारायण एक पूर्व नौकरशाह और लोक सत्ता पार्टी के प्रमुख हैं। उन्होंने एक ब्लॉग में राज्य के वर्तमान राजनीतिक हालात पर लिखा है, ‘पिछले कुछ समय से हम राज्य में जो कुछ देख रहे हैं, वह चयनात्मक अभियोजन का मामला है। सत्ता में चाहे जो पार्टी हो, कानून का शासन पूरी तरह से सत्ता के अधीन हो गया है। ऐसा कैसे होता है कि कोई भी सत्ताधारी दल कभी भी अपने किसी भी सदस्य को भ्रष्टाचार में शामिल नहीं पाता है।’
राज्य की दोनों अहम पार्टियां बीजेपी से करीबी बढ़ाना चाहती है।
टीडीपी बीच-बीच में बीजेपी का समर्थन करती रहती है। लेकिन बीजेपी के एजेंडे में कोई बड़ा अंतर नहीं दिख रहा है।
चंद्रबाबू नायडू कुछ समय के लिए बीजेपी के साथ जुडऩे की पुरजोर कोशिश करते रहे। वहीं राज्य में तेजी से उभर रही तीसरी पार्टी जयसेना भी बीजेपी का समर्थन लेने के मामले में ज्यादा मुखर है। तीनों प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी के करीब आने की कोशिश कर रहे हैं। यह एक दिलचस्प तथ्य है। (bbc.com/hindi/)