विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
एक तरफ जी 20 शिखर सम्मेलन में आने वाले कई देशों के राष्ट्रध्यक्ष को प्रभावित करने के लिए दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया गया था और दूसरी तरफ भारत की वैश्विक पहचान महात्मा गांधी के विचारों को गणमान्य अतिथियों को परोसने के लिए गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के परिसर में गांधी प्रतिमा और गांधी वाटिका का निर्माण किया गया है। दुनिया के ताकतवर नेताओं को दिखाने के लिए गांधी की मूर्ति हमारी सरकार का हाथी दांत की तरह बेहद आकर्षक विज्ञापन है, जबकि सच्चाई यह है कि हाल ही में गांधी विचार के प्रचार प्रसार की सबसे बड़ी संस्था सर्व सेवा संघ वाराणसी, जिसे गांधी के अनन्य अनुयाई लाल बहादुर शास्त्री, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण की त्रिमूर्ति ने पल्लवित पुष्पित किया था उसके परिसर पर केंद्र सरकार द्वारा बुलडोजर चलाकर गांधी विचार का गला घोंटने का जघन्य कृत्य हुआ है, जिसकी देश विदेश के तमाम गांधी विचारक न केवल आलोचना कर रहे हैं बल्कि इस कृत्य के खिलाफ शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन और तरह तरह से सत्याग्रह कर महीने भर से निरंतर विरोध दर्ज कर रहे हैं।
गांधी स्मृति एवम दर्शन समिति के आयोजन में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने गांधी प्रतिमा का लोकार्पण करते हुए उम्मीद जताई थी कि जी 20 में आने वाले अतिथि यहां भी आएंगे। ऐसा लगता है कि उन्हें दिखाने के लिए और सर्व सेवा संघ के ध्वस्तीकरण को छिपाने के लिए ही सरकार के सरंक्षण में यह कार्य गांधी दर्शन समिति के तत्वावधान में ऐसे समय संपन्न हुआ है। राष्ट्रपति महोदया ने अपने लोकार्पण भाषण में गांधी दर्शन समिति के अध्यक्ष प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को भी गांधी विचार को मानने वाला बताया है। शायद राष्ट्रपति जी वाराणसी के सर्व सेवा संघ परिसर की घटना से अनभिज्ञ हैं, हालाकि ऐसा होना नही चाहिए क्योंकि इस घटना को अखबारों और चैनलों ने भी खूब प्रचारित प्रसारित किया है।
गांधी मूर्ति पूजा पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। उनका जोर मनुष्य की आत्मा और व्यक्तित्व के विकास और नैतिक आचरण पर था। वर्तमान दौर महान विभूतियों की बड़ी-बड़ी आकर्षक मूर्तियों की स्थापना और विचारों और आदर्शों से दूरी का दौर है इसीलिए कहीं सरदार पटेल, कहीं परशुराम, कहीं शंकराचार्य और कहीं रविदास की ऊंची ऊंची विशालकाय मूर्तियां स्थापित की जा रही हैं, और अब इसी कड़ी में जी 20 शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर गांधी की मूर्ति भी स्थापित की गई है। इसी दौर में गांधी के रचनात्मक कार्यों और सत्य, अहिंसा, सह अस्तित्व, सांप्रदायिक सौहार्द और सादगी के सिद्धांतों को जन जन में जन की भाषा में प्रचारित प्रसारित करने वाले सर्व सेवा संघ परिसर को बुल्डोजर से ध्वस्त किया गया है। यह सरकार की कथनी और करनी में गहराती खाई, चुनावी घोषणा पत्रों और सरकार के कृत्यों में गंभीर विरोधाभासों का खतरनाक दौर है। गांधीगिरी के लिए भी यह अजीब दौर है जब गांधी की सादगी को त्यागकर डिजाइनर ड्रेस पहनने वालों, असत्य और हिंसा का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन करने वालों, अनैतिक आचरण वालों को भी कभी भगवान राम, कभी स्वामी विवेकानंद और कभी महात्मा गांधी के अनुयाई के रुप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
वर्तमान दौर में समाचारों को पूरी तरह रोकना असंभव है। कॉरपोरेट मीडिया को भले ही भारी भरकम विज्ञापनों के दम पर पाला जा सकता है लेकिन इंटरनेट के युग में सत्य पर आधारित खबरें भी सोशल मीडिया के माध्यम से दूर दूर तक आसानी से पहुंच जाती हैं। सरकार भले ही उन रिपोर्ट और सूचनाओं को भ्रम पैदा करने वाली या राष्ट्रदोही बताकर खारिज करने की कोशिश करे लेकिन धीमी गति से सत्य भी लोगों तक पहुंच जाता है। महात्मा गांधी को लेकर भी हमारे देश में एक वर्ग तरह तरह के दुष्प्रचार में लीन रहता है, ऐसे तत्वों पर सरकार और उसकी जांच एजेंसियों की कोई कार्यवाही नहीं होती जबकि जब जब कोई राष्ट्रध्यक्ष भारत आता है उनके सामने गांधी की प्रतिमाओं और आश्रमों को देश के मुखपत्र की तरह प्रस्तुत किया जाता है।