विचार / लेख

सनियारा खान
सिर्फ ग्यारह साल की उम्र में नादिया नदीम को अफगानिस्तान से भाग कर डेनमार्क जाना पड़ा था। अफगानिस्तान के हेरात इलाके में उसका जन्म हुआ था। उसके पिता अफगान नैशनल आर्मी में जेनेरल थे। सन 2000 में तालिबानियों ने उनकी हत्या कर दी थी। उसके बाद नादिया और उसका परिवार एक ट्रक के पीछे छुप कर डेनमार्क पहुंचा। उसके परिवार में उसकी मां और बहनें थी। छुटपन से ही उसे अपने पिता के साथ फुटबॉल खेलना अच्छा लगता था। डेनमार्क आने के बाद वह फुटबॉल खेलना सीखने लगी। साथ ही चिकित्सा विज्ञान में डिग्री लेने के लिए शिक्षा भी ग्रहण कर रही थी। आज के दिन वह डेनमार्क की तरफ से खेलने वाली एक प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन चुकी है। प्रसिद्ध फोब्र्स पत्रिका में भी उसके बारे में छपा है। हाल ही में वह अब डॉक्टर भी बन चुकी है। एक पेशेवर फुटबॉलर और डॉक्टर बन चुकी नादिया ने अपने इन सफलताओं के लिए नए देश और नए दोस्तों का शुक्रिया अदा करते हुए ये कहा कि उन सभी के साथ और सहयोग के बिना वह कभी इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती।
अब आइए हम गुजरात के मेहसाना के लुनवा गांव की एक खबर पर ध्यान देते हैं। इस गांव में श्री के टी पटेल स्मृति विद्यालय नामक एक विद्यालय है। इसी विद्यालय के दसवीं कक्षा में अच्छे अंक पाने वाले सभी छात्रों को पंद्रह अगस्त यानि कि स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित करने के लिए एक अनुष्ठान रखा गया था। लेकिन हैरानी की बात ये है कि सब से अधिक अंक प्राप्त करने वाली छात्रा का नाम गायब कर के द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाली छात्रा को उसके हिस्से की पुरस्कार दे दिया गया। कारण शायद यही है कि उस छात्रा का नाम अर्नाज बानो है और वह मुसलमान धर्म से जुड़ी लडक़ी है। उस लडक़ी ने रोते हुए घर जा कर घरवालों को ये बात बताई। उसके बाद उस लडक़ी के पिता ने इस मामले को लेकर विद्यालय के अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा। लेकिन विद्यालय पक्ष कोई भी कारण नहीं बता पाए। उन लोगों ने बस इतना ही कहा कि अब पुरस्कार छात्रा के घर पहुंचा दिया जाएगा। लडक़ी के पिता बार-बार ये सवाल उठा रहे है कि उसे उसी अनुष्ठान में ही क्यों सम्मानित नहीं किया गया? इस पर झूठ भी बोलने की कोशिश की गई कि छात्रा उस दिन विद्यालय आई ही नहीं थी। अंत तक विद्यालय की तरफ से कोई सही जवाब देते नहीं बना तो उन लोगों ने कहा कि छात्रा को 26 जनवरी के दिन सम्मानित किया जाएगा। अर्नाज बानो के पिता एक किसान है। उन्हें इस बात को लेकर बहुत दुख है कि उनकी बेटी को सही जगह पर क्यों सम्मान नहीं दिया गया? हम सभी को सोचना चाहिए कि इस बात से उस बच्ची के कोमल मन में क्या असर पड़ा होगा! गुजरात हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी का भी राज्य है। इस घटना से एक बात तो झूठ साबित हुई कि सबका का विकास साथ साथ करने की कोशिश हो रही है। डेनमार्क में एक शरणार्थी लडक़ी नादिया नदीम को प्यार से सहारा दे कर उसकी जिंदगी आसान कर दी गई। लेकिन इसी देश में जन्मी और पली बढ़ी एक लडक़ी को धर्म के आधार पर शर्मिंदा किया गया और वह भी विद्या के मंदिर में! हो सकता है कि अलग अलग देशों में अलग अलग सामाजिक माहौल होते हैं। कहीं फर्क़ दिखता है और कहीं नहीं भी दिखता है। दो चार अखबारों को छोड़ कर हमारी मीडिया भी इस मामले को ले कर पूरी तरह ख़ामोश बैठी है। खैर, इससे हमें हैरान नहीं होना चाहिए। क्या मालूम इस घटना से हम में से कितने लोग शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं या फिर गौरव प्राप्त कर रहे हैं? अभी अभी एक और खबर आई कि मुजफ्फरपुर के एक विद्यालय में एक महिला शिक्षिका तृप्ता त्यागी ने धार्मिक भेदभाव दिखाकर एक मुस्लिम बच्चे को हिंदू बच्चों द्वारा पिटवा रही थी और एक अन्य व्यक्ति उस घटना का वीडियो बनाते हुए मजे ले रहा था।
खैर, अभी तो लग रहा है कि इस तरह की घटनाओं द्वारा शायद एक प्रयोग भी चलाया जा रहा है ये जानने के लिए कि बहु संख्यक जनता इस तरह की घटनाओं को देख कर खुश होते हैं या फिर वे विरोध की आवाज़ उठाते हैं? ज्यादातर लोगों की खामोशी देख कर लग तो यही रहा है कि निर्वाचन के समय इन हरकतों से नेताओं को फायदा ही होगा। बेहद अफसोसनाक है, लेकिन यही सच है।