विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
भाजपा की यह यात्रा लोकसभा चुनाव के लिए निकल रही है या मध्य प्रदेश चुनाव के लिए या दोनों के लिए! यह निश्चित नहीं है क्योंकि एक देश एक चुनाव के लिए उच्च स्तरीय समिती बन चुकी है जिसकी रिर्पोट यदि संसद का विशेष सत्र बुलाकर लागू कर दी गई तो एक साथ चुनाव संभव हैं। भारतीय जनता पार्टी और उनके समर्थक मानते हैं कि मोदी हैं तो सब मुमकिन है। यदि उन्होंने तय कर लिया है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने हैं तो उन्हें रोकना किसी के वश में नहीं है वह पत्थर की लकीर की तरह है होकर ही रहेगा।
जन आशीर्वाद यात्रा को दिशा देने जे पी नड्डा,अमित शाह, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी आ रहे हैं और समापन पर प्रधानमंत्री खुद कार्यकर्ताओं के महाकुंभ को संबोधित करने आएंगे। कद्दावर केंद्रीय मंत्रियों की अगुवाई में होने वाली इस यात्रा में उनकी बडी हैसियत के अनुसार रथों को सजाया जा रहा है, प्रादेशिक नेता कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी द्वारा पूरे पेज के विज्ञापन दिए जा रहे हैं। नोटबंदी और कोरोना की दोहरी मार से पूरी तरह नहीं उभरी जनता भले ही सरकारी राशन के बूते जैसे तैसे अपना पेट भर रही है लेकिन अमीरी के मामले में भारतीय जनता पार्टी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही है। राजनीतिक दलों का हिसाब किताब जनता को दिखाने वाली संस्था ए डी आर की ताजा रिर्पोट के अनुसार जितना कुल धन सब बडी पार्टियों के पास नहीं है उतना धन अकेले भारतीय जनता पार्टी के पास है। कांग्रेस के पास हजार करोड़ भी नहीं है और भाजपा के पास सात हजार करोड़ के आसपास है। ऐसे में वह एक पेज तो क्या पूरे अख़बार को विज्ञापन से पाट सकती है। मोदी जी ने किसानों की आय भले ही दुगुनी नहीं की लेकिन भाजपा की आय अपने शासनकाल में तकरीबन दस गुनी बढ़ा दी।
भाजपा ने जन आशीर्वाद यात्रा का सही समय नहीं चुना। मध्य प्रदेश में सडक़ों की हालत बरसात के गड्ढों ने बेहद खस्ता कर रखी है। बिजली संकट को मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया है। अगस्त के सूखे ने सोयाबीन और धान की फसल की हालत खराब कर किसानों की कमरतोड़ रखी है। दुखी लोग इतने कष्ट में रहकर कैसे आशीर्वाद दे सकते हैं। उमा भारती नाराज बताई जा रही हैं क्योंकि उनका नाम न यात्रा के कार्यक्रम में है और न मध्य प्रदेश भाजपा द्वारा जारी किए गए विज्ञापन में है। उनकी तरह हाशिए पर चल रहे और भी काफ़ी नेता हैं जिनमें से कुछ कमल का साथ छोड़ कमलनाथ की शरण में आ चुके हैं और कुछ को मंत्री बनाकर फिलहाल खुश कर लिया है लेकिन काफी अभी भी नाराज़ चल रहे हैं। इसी बीच यात्रा पर पथराव हो गया। भारतीय जनता पार्टी इसे कांग्रेस का षडय़ंत्र बता रही है और कांग्रेस इसे भाजपा के नाराज लोगों का विरोध कह रही है। मीडिया इसे वन विभाग से परेशान ग्रामीणों के आक्रोश का नतीजा बता रही है। जनता की नाराजगी कई मुद्दों पर है। बिजली के बारे में खुद मुख्यमंत्री मान रहे हैं कि किल्लत है। सडक़ों की हालत बहुत ही दयनीय है। पूरा प्रशासन लाडली बहना योजना में लगाया गया है इसलिए बाकी तमाम काम पीछे खिसक गए हैं।
भारतीय जनता सात दशक से अपने मताधिकार का प्रयोग कर रही है इसलिए उसे कोई राजनीतिक दल चुनावी चौंचलो से मूर्ख नहीं बना सकता। इस दौरान मतदान के क्रम में एक और परिर्वतन आया है। मतदाताओं की बहुत बडी संख्या अपने मत के बारे में खुलकर बात नहीं करते। वे अपने मत को उसी तरह गुप्त रखना सीख गए हैं जैसी संविधान उम्मीद रखता है। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों के मतदाता किसी भी राजनीतिक दल के नेता से खुलेआम दुश्मनी नहीं चाहते क्योंकि उन्हें नेताओं पर विश्वास नहीं है। वे जानते हैं कि जीतने के बाद नेता अपने धुर विरोधियों को तरह तरह से परेशान करते हैं। मतदाता यह भी समझते हैं कि चुनाव से पहले यात्राओं, रैलियों, घोषणाओं और राहतों का लंबा दौर चलता है। जन आशीर्वाद यात्रा को भी आम नागारिक इसी दृष्टि से देख रहा है।