विचार / लेख

भाषा में समाहित करना अंग्रेजी से सीखें
14-Sep-2023 10:16 PM
भाषा में समाहित करना अंग्रेजी से सीखें

-दिनेश राय द्विवेदी
मेरी मातृभाषा हिन्दी नहीं, राजस्थानी (हाड़ौती) है। लेकिन मैं ने पहल देवनागरी लिपि सीखी। पुस्तक में सभी पाठ हिन्दी के थे। घर में तमाम किताबें हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में थीं। तीसरी कक्षा में स्कूल में भरती हुआ तो वहाँ हिन्दी, गणित, विज्ञान, और सामाजिक ज्ञान पढ़ाए जाते थे। पाँचवीं क्लास में अंग्रेजी का वर्णमाला अभ्यास कराया गया। छठी से अंग्रेजी, संस्कृत भी आ मिले। अंग्रेजी के अध्यापक ऐसा पढ़ाते थे कि बस पास हो जाएँ।

छठी कक्षा में एक दिन मेरा सेक्शन दूसरे सेक्शन के साथ मिला दिया। वहाँ के अध्यापक अंग्रेजी बढिय़ा पढ़ाते थे। अगले दिन से मेरा सेक्शन अलग हो कर बैठने लग गया। लेकिन मैं उसी सेक्शन में बैठने लगा अंग्रेजी पढऩे की खातिर। एक माह बाद मैं पकड़ा गया कि मेरा नाम उस सेक्शन में नहीं है जिस में बैठ रहा हूँ। अंग्रेजी वाले मास्टर साहब ने पता किया तो अपने सेक्शन में मेरा नाम अनुपस्थिति के कारण कट गया था। अंग्रेजी वाले मास्टर साहब मुझे हेड मास्टर जी के पास ले गए। उन्होंने पूछा कि तुम अपने सेक्शन में क्यों बैठे? मैंने कहा इस सेक्शन में अंग्रेजी अच्छी पढ़ाते हैं। अंग्रेजी वाले मास्टर जी ने कहा, मेरी क्लास से तो लडक़े भागते हैं मैं मारता बहुत हूँ, तुम पता नहीं कैसे रुक गए।

खैर, हेडमास्टर जी पिताजी के मित्र थे। मुझे वापस अपनी क्लास में भेज दिया गया। लेकिन अंग्रेजी कमजोर रह गई। मुझे उसका नुकसान उठाना पड़ा। बीएससी में दो साल खराब हो गए।

मुझे अपनी भाषा बोली पर कोई गर्व नहीं है। वे भी वैसी ही भाषाएँ हैं जैसी दूसरी हैं। लेकिन मैें उन्हें प्रेम करता हूँ वैसे ही जैसे मैं अपनी माँ को प्रेम करता हूँ। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि मैं किसी दूसरी भाषा को कमतर मानता हूँ। मुझे सभी भाषाओं से वैसा ही प्रेेम है जैसा अपनी बोली भाषा से।

हिन्दी अभी बहुत कमतर भाषा है, उसका विकास होना शेष है। अभी उच्च शिक्षा उसमें नहीं पढ़ाई जा सकती। चाहते हुए भी वह अदालतों की भाषा नहीं हो सकती। जहाँ है वहाँ भी कानून की व्याख्या के लिए अंग्रेजी मान्य है। उसका कारण है कि अभी हिन्दी शब्दों की व्याख्याएँ नहीं हैं। अभी बहुत बरस लगेंगे हमारी प्यारी हिन्दी को उस स्थिति तक पहुँचने में।

आज के हिन्दी दिवस के कोई मायने नहीं यदि हम उसके विकास के लिए काम न करें। हम चाहते हैं हिन्दी वैसे ही विकसित हो जैसे अन्य भाषाएँ जिनमें दुनिया के सारे काम होते हैं। उसमें हम हिन्दी वालों को बहुत मेहनत करनी होगी। यह पूर्वाग्रह छोडऩा होगा कि हम संस्कृत या भारतीय भाषाओं के शब्दों को हिन्दी में समाहित करेंगे अन्य को नहीं। दूसरी भाषाओँ के शब्दों को अपनी भाषा में समाहित करना हमें अंग्रेजी से सीखना चाहिए। इस तरह आज अंग्रेजी का शब्द विशाल हो गया है और बढ़ता ही जा रहा है। यही उदारता हमें दिखानी होगी वर्ना हमारी प्यारी हिन्दी ऐसी ही रह जाएगी। हमें दुनिया की हर भाषा से शब्दों को अपनाना होगा।

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