विचार / लेख

कार्टूनिस्ट राजेंद्र धोड़पकर
-डॉ. आर.के. पालीवाल
आजादी के अमृत महोत्सव काल में देश में भले ही कोई ऐसा बड़ा अभियान नही चला हो जिससे आज़ादी में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले सेनानियों की आत्मा को शांति मिले लेकिन आजकल दल बदलुओं के लिए जरूर अमृत काल है। आगामी कुछ महीनों बाद एक तरफ लोकसभा चुनाव हैं और उसी के आसपास मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों के विधान सभा चुनाव हैं। दल बदल करने वालों के लिए इससे बड़ा अवसर कभी नहीं आता जब उन्हें एक साल के अंदर दो चुनाव में दल बदलने का मौका मिलता है।
दल बदलू नेता चुनाव के काफ़ी पहले जंगली हिरणों की तरह हवा का रुख काफ़ी दूर से सूंघ लेते हैं। जिस राजनीतिक दल का जहाज डगमगाकर डूबने वाला दिखने लगता है दल बदलू उगते सूरज वाले दल की तरफ दौड़ लगाने लगते हैं। इसी दौर में अपने अपने दलों से नाराज चल रहे नेताओं की घुटन बर्दाश्त के बाहर पहुंच जाती है। काफ़ी समय से सोई उनकी आत्मा मुर्गे की बांग की तरह बहुत जोर जोर से आवाज लगाने लगती है।जो राजनीतिक दल पहले कौरव सेना की तरह दिखता था वह अचानक पांडवों की तरह दिखने लगता है और उसके सेनापति, जिसमें रावण की छवि दिखती थी, उसमें सत्यनिष्ठ युधिष्ठिर के दर्शन होने लगते हैं।
देश के लिए अमृत काल साल भर से चल रहा है लेकिन दल बदलूओं के लिए अमृत काल अभी शुरु हुआ है और विधान सभाओं और लोकसभा चुनावों के टिकट वितरण तक चलेगा। मध्य प्रदेश में इन दिनों काफ़ी दल बदल चल रहा है। कुछ बहुत पुराने जनसंघ काल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुडे परिवारों के लोग अपनी लंबी विचारधारा की केंचुली त्यागकर नए ठिकाने खोज रहे हैं।
कांग्रेस और भाजपा में एक तरह की प्रतिस्पर्धा सी है कि किधर से ज्यादा इधर उधर होंगे। पुराने चावलों की बात करें तो मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक दिवंगत मुख्यमंत्री के सुपुत्र भारतीय जनता पार्टी छोडक़र दल बल के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। पिछली विधान सभा में भाजपा के विधानसभा अध्यक्ष के अग्रज ने भी उम्र के इस पड़ाव पर भारतीय जनता पार्टी को अलविदा कह दिया। भाजपा के काफ़ी नेता मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने के कारण नाराज़ चल रहे थे। उनमें से तीन को हाल ही में डेढ़ महीने के लिए मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। अभी कांग्रेस और भाजपा में काफ़ी लोग टिकट वितरण तक पपीहे की तरह टकटकी लगाकर इंतजार करेंगे और टिकट हाथ से फिसलता देख घुटन महसूस करेंगे और तुरंत आत्मा की आवाज सुनकर दल बदलेंगे।
जहां तक मध्य प्रदेश का प्रश्न है यहां वर्तमान विधानसभा में कांग्रेस की बहुमत की सरकार बनी थी लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वाकांक्षा के कारण कांग्रेस को सत्ता से हटाकर भारतीय जनता पार्टी ने जोड़ तोड़ की सरकार बना ली थी। ग्वालियर के आसपास के क्षेत्रों में जहां अभी भी सिंधिया परिवार का दबदबा है वहां भाजपा के लिए ज्यादा परेशानी सामने आने की संभावना है। ज्योतिरादित्य सिंधिया पूरी जोर आजमाइश करेंगे कि उनके साथ दल बदल की जोखिम उठाने वाले उनके साथियों को टिकट वितरण में प्राथमिकता मिले और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा में अपना जीवन खपाने वाले नेताओं की कोशिश होगी कि उनके सब्र का और अधिक इम्तेहान न लिया जाए। अपने बड़े नेताओं की तरह अब मध्यम श्रेणी के नेता और कार्यकर्ता भी सत्ता की सुविधाओं में अपनी क्षमता के अनुसार भागीदारी चाहते हैं। वे भी अपने पारिवारिक सदस्यों और व्यापार आदि को फलते फूलते देखने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। उन्हें दोष नहीं दे सकते।उनकी महत्वाकांक्षा के लिए उनके बड़े आका ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने राजनीति को सेवा के क्षेत्र से मेवा का क्षेत्र बना दिया है।