विचार / लेख

-डॉ. आर.के. पालीवाल
चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद कोई राजनीतिक दल या प्रत्याशी अथवा उनके प्रतिनिधि और कार्यकर्ता यदि वोट के बदले मतदाताओं को धन या कोई कीमती वस्तु देते पकड़े जाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई होती है। दूसरी तरफ चुनाव अधिसूचना जारी होने के पहले सत्तारूढ़ दल विभिन्न वर्ग के मतदाताओं को तरह तरह के लाभ देकर सार्वजनिक मंचों से अपील करते हैं कि हमने आपको यह दिया है आप हमें वोट देने का संकल्प लीजिए। चुनाव आयोग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह कम से कम इस तरह की सार्वजनिक अपीलों के खिलाफ आवाज उठाए और सरकार एवम राजनीतिक दलों को सलाह दे कि चुनाव से एक साल पहले किसी खास वर्ग के वोट लुभाने के लिए कोई ऐसी घोषणा नहीं की जानी चाहिए जो राजनीतिक दल के घोषणा पत्र में नहीं थी। यदि जन कल्याण की कोई घोषणा करनी है तो उसे वोट के संकल्प से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
आयोग को सरकार से इस संबंध में चुनाव अधिनियम में समुचित संशोधन की अपील भी करनी चाहिए। प्रबुद्ध नागरिकों, चुनावों पर नजऱ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकारों और चुनाव सुधार एवम लोकतंत्र की जन जागृति में जुटी सामाजिक संस्थाओं का भी यह दायित्व है कि वे केंद्र और राज्य सरकारों की उन घोषणाओं पर जनता को सतर्क करते रहें जिनकी घोषणा सरकार ने अपने शासन काल के अंतिम दिनों में केवल चुनाव जीतने के लिए जनता के किसी एक वर्ग को जन धन और संसाधनों से आर्थिक लाभ देकर की है।
रक्षा बंधन त्यौहार के नाम पर केंद्र सरकार का रसोई गैस के दामों में दो सौ रुपए कम करने का ऐलान इसी श्रेणी में आता है। इसी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा रक्षाबंधन पर लाडली बहना योजना में ढाई सो रुपए की वृद्धि भी धर्म विशेष के त्यौहार पर घोषणा कर वोट बैंक के लिए किया गया प्रयास है। धर्म निरपेक्ष देश की सरकार को या तो किसी भी धर्म के त्यौहार पर ऐसी घोषणाओं से बचना चाहिए या सभी धर्म के प्रमुख त्योहारों पर ऐसी घोषणाएं करनी चाहिए।
इस मामले में किसी एक राजनीतिक दल को कटघरे में खडा नहीं कर सकते। जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी चुनाव के पहले और शासन के अंतिम वर्ष में वोट बटोरने के लिए लोक लुभावन योजनाओं पर ध्यान केन्द्रित कर रही है वैसे ही राजस्थान की कांग्रेस सरकार भी पांच सौ रुपए में गैस सिलेंडर को राष्ट्रीय मीडिया में विज्ञापन दे देकर भुना रही है।
आज़ादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के नेतृत्व में जिस तरह से रचनात्मक कार्यों के माध्यम से जन जागरण और आत्म सम्मानी समाज निमार्ण का राष्ट्रव्यापी कार्य शुरू हुआ था वह गांधी के युवा सहयोगियों, यथा विनोबा भावे, डॉ राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण आदि के माध्यम से आजादी के बाद तीन चार दशक तक जारी रहा था। दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद निस्वार्थ भाव से सत्ता से दूर रहकर समाज निर्माण में जुटी इस त्रिमूर्ति के बाद कोई अन्य ऐसी प्रभावशाली विभूति नहीं हुई जिसके प्रभाव से प्रगतिशील और जागरूक आत्म सम्मानी समाज निर्माण का कार्य हो। राजनीतिज्ञों की जमात में भी लाल बहादुर शास्त्री, चौधरी चरण सिंह, गुलजारी लाल नंदा, कर्पूरी ठाकुर, बुद्धदेव भट्टाचार्य जैसे राजनेता वर्तमान दौर में मौजूद नहीं हैं जिन्होंने राजनीति को सेवा और सकारात्मक सामाजिक परिर्वतन का माध्यम समझा हो। ऐसी स्थिति में केवल कड़े कानून ही लोकतंत्र की शुचिता बचा सकते हैं।
जिस तरह से मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधान सभा चुनावों के कारण और केन्द्र सरकार ने लोकसभा चुनाव के कारण गैस सिलेंडर जैसी रोजमर्रा की जरूरी चीजों के दाम में कमी की है ऐसी राहत अगले कुछ महीनों में और भी चीजों पर दी जा सकती है। चुनाव पूर्व का वर्ष मतदाताओं के लिए पंचवर्षीय चुनाव योजना में सबसे ज्यादा आनंद का होता है। केन्द्र और राज्य सरकारें अपनी छवि चमकाने के लिए मतदाताओं को तरह तरह से आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। राजनीतिक दलों के इन चुनावी चौंचलों को मतदाताओं को भी समझने की आवश्यकता है।