विचार / लेख

उर्दू ठेठ हिन्दुस्तानी जुबान है स्टूपिडो उर्दू सिर्फ मुसलमानों की नहीं है हुजूरे आला!
16-Sep-2023 6:59 PM
उर्दू ठेठ हिन्दुस्तानी जुबान है स्टूपिडो उर्दू सिर्फ मुसलमानों की नहीं है हुजूरे आला!

-बादल सरोज
हम एक हिन्दुस्तानी होने के नाते इसे किसी धार्मिक सम्प्रदाय के नाम करने के लिए कतई राजी नहीं हैं बंदापरवर!!

यह ठेठ हिन्दुस्तानी है जो रेख्ता, उर्दू जैसे नामों के साथ धरती के इसी हिस्से पर जन्मी, पली, जवान हुई !!
यूं भी
भाषा किसी धर्म, संप्रदाय, जाति की नहीं होती। वह कई मर्तबा इलाकाई होती है जैसे बांग्ला, मराठी, गुजराती आदि भाषाएं हैं!! मगर उस तरह हिन्दी-उर्दू नहीं हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में जहां जहां हिंदी है वहां वहां उर्दू है और जहां जहां उर्दू है वहां उसकी हमजोली हिन्दी है। इसलिए इनके संगम को सदा गंगा-जमुनी कहा और माना गया है। दिलचस्प है कि दोनों का नाभि-नाल संबंध अमीर खुसरो से है और दोनों का पालना बृज और अवधी का रहा है। ठीक इसलिए हिंदी दिवस पर उर्दू की याद जरूरी है।

उर्दू प्रेमचंद, आनंद नारायण मुल्ला, पंडित ब्रज नारायण चकबस्त, रघुपति सहाय फिराक, सरदार भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, राजिंदर सिंह बेदी, सरदार रतन सिंह, जगन्नाथ आजाद, प्रोफेसर ज्ञानचंद जैन, बलबीर सिंह रंग और गोपीचंद नारंग की भाषा है। (नाम सिर्फ लिखते-लिखते याद आये नाम हैं ; फेहरिस्त लम्बी है।) क्या इनके अदब को कोई चिरकुट अज्ञानी अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक खानों में बांट सकता है?

क्या विख्यात कवियों शमशेर बहादुर सिंह और त्रिलोचन शास्त्री द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू शब्दकोश के लिए दी गई खिदमात को नकारा जा सकता है। शमशेर जी ने तो अपने समय की प्रखर पत्रिका दिनमान में ‘उर्दू कैसे सीखें’ जैसे कॉलम चलाए जिससे प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग उर्दू में आए। क्या प्रकाश पंडित के योगदान को भुलाया जा सकता है जिन्होंने सारे प्रमुख शायरों की रचनाओं को संपादित कर सस्ती किताबों के रुप में हिन्दी जगत को सौंपा और कई पीढिय़ों को उर्दू के प्रति जागरूक बनाया।

यह आकस्मिक नहीं है कि हमारे समय में कृष्ण बिहारी नूर और शीन काफ निजाम (मूल नाम श्रीकृष्ण) जैसे नाम शीर्षस्थ उर्दू शायरों में शुमार है।

(हमारे हमवतन-हमनवा अतुल अजनबी भी इसमें जोड़े जाएँ )

जानकी प्रसाद शर्मा उर्दू अदब को जिस तरह हिंदी पाठकों के सामने ला रहे है और जिस तरह हिन्दी उर्दू के बीच नए पुल बना रहे है उसे हिन्दी साहित्य तो जानता है, हमारी खुद को समझदार समझने वाली मध्यप्रदेश सरकार नहीं जानती जबकि जानकी सर मध्यप्रदेश के ही साहित्यकार है। अगर मध्यप्रदेश के आला पुलिस अफसर वीरमणि उर्दू में डाक्ट्रेट करते है और राजेश जोशी की बेटी पुरबा, डॉ.सविता भार्गव का बेटा अमन और श्याम मुंशी का बेटा यमन और बेटी आरोही उर्दू भाषा स्कूलों में सीखती और व्यवहार में लाती है तो जाहिर है कि उर्दू सबकी है सिर्फ मुसलमानों की नहीं। उसे अल्पसंख्यकों की भाषा बनाकर उसका प्रभाव व आयतन कम करना एक साम्प्रदायिक किस्म की हरकत है।

उर्दू सारे धर्म, जातियों की चहेती भाषा है। मूलत: धरती के इस हिस्से पर जन्मी भारत की भाषा है। स्वतंत्रता संग्राम की भाषा है। कौमी तरानों की भाषा है। साम्प्रदायिक एकता, भाईचारे और सद्भाव की भाषा है।

 काजी अब्दुल सत्तार, डॉ.मोहम्मद हसन, प्रो.नईम, प्रो.आफाक अहमद, जनवादी लेखक संघ को हिन्दी-उर्दू लेखकों का संगठन बनाने में अहम भूमिका निभाते है।
जनवादी लेखक संघ के भोपाल में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में उर्दू को लेकर पारित किए गए प्रस्तावों की सारे उर्दू जगत में सराहना हुई। यह महत्वपूर्ण इसलिए है कि सम्मेलन में अस्सी फीसद से ज्यादा हिन्दी लेखकों की शिरकत थी जिन्होंने उर्दू के फरोग, संवर्धन, रक्षा और सम्मान की शपथ ली थी।

जनवादी लेखक संघ मप्र के अध्यक्ष रहे (अब मरहूम) प्रो.आफाक अहमद ने कराची के उर्दू अधिवेशन में गर्व से जाकर कहा कि पाकिस्तान के उर्दू लेखक समझ लें कि उर्दू हिन्दुस्तान का मुकद्दर बन चुकी है। वह इसलिए नहीं कि उसे मुसलमान बोलते है बल्कि इसलिए कि बहुसंख्यक हिन्दू उससे बेपनाह मोहब्बत करते है। जिन्हें अमीर खुसरो, जायसी, गालिब और इकबाल उतने ही प्यारे हैं जितने कि कालिदास,तुलसी, सूर, मीरा या निराला।

भोपाल के पंडित ईशनारायण जोशी ‘गौहरजंत्री’ संपादित करते हैं और देवीसरन जब भी लिखते है उर्दू और सिर्फ उर्दू में ही लिखते है। काश .. चिरकुटों को ये पता होता।
हिन्दी ही नहीं उर्दू साहित्य के इतिहास में भी उर्दू को कभी अल्पसंख्यकों या मुसलमानों की भाषा नहीं बताया गया और न किसी स्कूल या कालेज में ऐसा पढ़ाया गया। यह विभेद उन बुनियादपरस्तों का षडय़ंत्र है जो भाषाई साम्प्रदायिकता इसलिए फैलाते है कि उर्दू एक सेक्यूलर, धर्म और पंथ निरपेक्ष भाषा है।

उर्दू हमारे उस्ताद वकार सिद्दीकी साहब और हमारे घर के स्थायी सदस्य निदा फाजली, शमीम फरहत और रऊफ जावेद साहब ही नहीं हमारे सियासी गुरु कामरेड मोतीलाल शर्माजी की भी भाषा है !!

हमारे प्रिय शायर वसीम बरेलवी साहब ने ठीक कहा है कि ;’
‘तेरी नफरतों को प्यार की खुशबू बना देता
मेरे बस में अगर होता तुझे उर्दू सीखा देता !!’

कृपया ध्यान दें
स्टूपिडो शब्द हमारी ईजाद है यह स्टुपिड का बहुवचन है !! हिंदी में इसका अर्थ बेवकूफ और मूर्ख होता है; उर्दू में इसका मायना सबसे प्यारा है; चुगद !!

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