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पुरानी संसद का आखिरी दिन, किसने और क्या कहा?
19-Sep-2023 10:27 PM
पुरानी संसद का आखिरी दिन, किसने और क्या कहा?

मौजूदा संसद भवन अब पुरानी संसद बन गया है। इस ऐतिहासिक इमारत में सोमवार को शुरू हुआ विशेष सत्र दिन भर चली चर्चा के बाद स्थगित कर दिया गया।

मंगलवार को अब संसद की कार्यवाही नई इमारत में शुरू होगी। केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है।

विशेष सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन में अपना आखिरी भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने पूर्व पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक का जिक्र किया।

सदन में जाने से पहले पीएम ने मोदी कहा, ‘संसद का ये सत्र छोटा है लेकिन ये बहुत मूल्यवान है।’ पुरानी संसद से विदाई पर कई राजनेता अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

पीएम ने बताया भावुक पल
प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कल (मंगलवार) गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर हम नई संसद में जाएंगे। ये सत्र छोटा है लेकिन बहुत मूल्यवान है।
पीएम मोदी ने चंद्रयान-3 अभियान की सफलता, भारत की अध्यक्षता में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन और पीएम विश्वकर्मा मिशन की शुरुआत को भी रेखांकित किया।
पुरानी संसद में आखिरी दिन पर पीएम मोदी ने कहा, ‘पुराने सदन से विदाई लेना, यह एक बहुत ही भावुक पल है। परिवार भी अगर पुराना घर छोडक़र नए घर जाता है, तो बहुत सारी यादें, कुछ पल के लिए उसको झकझोर देती हैं। हम जब इस सदन को छोडक़र जा रहे हैं तो हमारा मन-मस्तिष्क भी उन यादों से भरा हुआ है।’

‘खट्टे-मीठे अनुभव भी रहे हैं। नोकझोंक भी रही। कभी संघर्ष का तो कभी इसी सदन में उत्सव और उमंग का माहौल भी रहा है। ये सारी स्मृतियां हमारी साझी हैं। ये साझी विरासत है और इसका गौरव भी हम सबका साझा है।’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसदीय इतिहास में योगदान के लिए जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ। मनमोहन सिंह तक का जिक्र किया।

उन्होंने कहा, ‘इन 75 सालों में हमारी संसद, जन-भावनाओं की अभिव्यक्ति का भवन भी बनी है। हम देखते हैं कि राजेंद्र बाबू से लेकर डॉक्टर कलाम, रामनाथ कोविंद जी और अभी द्रौपदी मुर्मू जी। इन सबके संबोधन का लाभ हमारे सदनों को मिला है।’
‘उनका मार्गदर्शन मिला है। आदरणीय अध्यक्ष जी, पंडित नेहरू जी, शास्त्री जी, वहां से लेकर अटल जी, मनमोहन सिंह जी तक, एक बहुत बड़ी श्रंखला, जिसने इस सदन का नेतृत्व किया है और सदन के माध्यम से देश को दिशा दी है। देश को नए रंग रुप में ढालने के लिए परिश्रम किया है। आज उन सबका गौरवगान करने का भी अवसर है।’
उन्होंने कहा, ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल, लोहिया जी, चंद्रशेखर जी, आडवाणी जी, न जाने अनगिनत नाम, जिन्होंने हमारे इस सदन को समृद्ध करने में, चर्चाओं को समृद्ध करने में, देश के सामान्य से सामान्य व्यक्ति की आवाज को ताकत देने का काम, इस सदन में किया है।’

पीएम मोदी ने कहा, ‘उमंग, उत्साह के पल के बीच कभी सदन की आंख से आंसू भी बहे। ये सदन दर्द से भर गया, जब देश को तीन प्रधानमंत्रियों को उनको कार्यकाल में ही खोने की नौबत आई, जिसमें नेहरू जी, शास्त्री जी और इंदिरा जी थीं। तब इस सदन ने आंसूभरी आंखों से उन्हें विदाई दी।’

प्रधानमंत्री के भाषण में अनुच्छेद 370 का जिक्र
पीएम ने कहा, ‘इसी सदन ने मनमोहन सिंह जी की सरकार में कैश फॉर वोट कांड को भी देखा है। सबका साथ सबका विकास के मंत्र ने अनेक ऐतिहासिक निर्णय, दशकों से लंबित विषयों का स्थायी समाधान भी इसी सदन में हुआ है। अनुच्छेद 370 को लेकर सदन हमेशा गर्व के साथ कहेगा कि यह इस काल में हुआ। वन नेशन, वन टैक्स, जीएसटी का निर्णय भी इसी सदन ने किया। वन रैंक, वन पेंशन भी इसी सदन ने देखा। गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण बिना किसी विवाद के पहली बार इस देश में किया गया।’

पीएम मोदी ने उस पल को भी याद किया जब वे पहली बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे थे।

उन्होंने कहा, ‘मैं पहली बार जब संसद का सदस्य बना और पहली बार सांसद के रूप में मैंने इस भवन में प्रवेश किया तो सहज रूप से मैंने संसद के दरवाजे पर अपना शीश झुकाकर इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन करते हुए पैर रखा था।’

‘वो पल मेरे लिए भावनाओं से भरा हुआ था। मैं कल्पना नहीं कर सकता, लेकिन भारत के लोकतंत्र की ताकत है, भारत के सामान्य मानव की लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा का प्रतिबिंब है कि रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुजारा करने वाला एक गरीब बच्चा संसद पहुंच गया। मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी कि देश मुझे इतना सम्मान देगा, इतना आर्शीवाद देगा, इतना प्यार देगा। सोचा नहीं था।’

लोकसभा अध्यक्ष बोले- ये सदन संवाद का प्रतीक रहा
संसद के विशेष सत्र के पहले दिन लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने सदन को संबोधित करते हुआ कहा कि आज के बाद से संसद की कार्यवाही नए भवन से संचालित होगी।
लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा, ‘अब तक सदन को 15 प्रधानमंत्रियों का नेतृत्व प्राप्त हुआ। जिन्होंने इस देश की दशा और दिशा तय की है। ये सदन संवाद का प्रतीक रहा है। पिछले 75 सालों में यहां देश हित में सामूहिकता से निर्णय लिए गए।’

‘विचार विमर्श की पद्धति से यहां आम जनता को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए कानून बनाए गए। संकट के समय सदन ने एकजुटता से सामना किया। आज इस सदन में कार्यवाही का अंतिम दिन है। आज के बाद सदन की कार्यवाही नए भवन में संचालित होगी।’

कांग्रेस चीफ खडग़े का तंज
संसद की पुरानी इमारत में आखिरी कार्यवाही के मौके पर राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने मोदी सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि बदलना है तो देश के हालात बदलो, ऐसे नाम बदलने से क्या होता है।

राज्यसभा में भाषण देते हुए खडग़े ने कहा, ‘इन 75 साल में हमने बहुत कुछ देखा और सीखा। मैंने 52 साल यहां बिताएं हैं। ये भवन आज़ाद भारत के सभी बड़े फैसलों का गवाह है। इस भवन में संविधान सभा 165 दिन बैठी। संविधान बनाया जो 26 जनवरी 1950 में लागू हुआ।’

खडग़े ने कहा, ‘26 नवंबर को 1949 को संविधान सभा की बहस को सुनने के लिए करीब 53 हजार लोग आए थे। संविधान सभा के 11 दौर की बैठकों के व्यवधान रहित संचालन को आदर्श संचालन माना गया था। वो ऐसा एक वक्त था जब सबको लेकर चला जाता था। आप लोगों ने भी उसे आदर्श संचालन माना था, उस समय देश के प्रधानमंत्री नेहरू जी थे।’

‘मैं अपनी बात रखने के लिए थोड़े शब्दों में कुछ कहना चाहता हूं- ‘बदलना है तो अब हालात बदलो, ऐसे नाम बदलने से क्या होता है? देना है तो युवाओं को रोजगार दो, सबको बेरोजगार करके क्या होता है? दिल को थोड़ा बड़ा करके देखो, लोगों को मारने से क्या होता है? कुछ कर नहीं सकते तो कुर्सी छोड़ दो, बात-बात पर डराने से क्या होता है? अपनी हुक्मरानी पर तुम्हें गुरूर है, लोगों को डराने-धमकाने से क्या होता है?’
वहीं, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि पुरानी इमारत यादों और इतिहास से भरी हुई है।

उन्होंने कहा, ‘ये एक दुखद पल है। उम्मीद करते हैं कि नई इमारत में बेहतर सुविधाएं, नई तकनीकी और सदस्यों के लिए ज़्यादा सहूलियतें होंगी। अब ये साफ़ हो गया है कि सरकार पुरानी से नई इमारत में जाने के पल को ख़ास बनाना चाहती थी। उन्होंने ये अलग अंदाज़ में करना चाहा। हम यहां उनका मकसद समझ सकते हैं।’

ओवैसी बोले- कहीं नई संसद भी हिटलर की संसद न साबित हो जाए
उन्होंने कहा कि यह संसद एक इमारत नहीं है, यह देश का दिल है, जो गरीब लोगों की तकलीफ को महसूस करती है।

ओवैसी ने कहा, ‘मैं आपके सामने 15 मिसालें पेश करूंगा, जब संसद ने अपनी नाकामी के सबूत पेश किए। एक जब दिल्ली की सडक़ों पर सिखों का कत्ल किया जा रहा था। एक उस वक्त जब 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की शहादत हुई।’

‘भागलपुर, जिसमें रेशम के कारोबार को खत्म किया गया और मुसलमानों को जहां दफना दिया गया, वहां पर फूल गोभी उगना शुरू हो गई। एक उस वक्त नाकामी साबित हुई, जब मुजफ्फरनगर और गुजरात में नस्लकशी की गई।’

उन्होंने कहा, ‘हम देखते हैं कि मुंबई की सडक़ों पर इंसानियत का नंगा नाच हुआ। एक उस वक्त जब संसद में टाडा, पोटा, जैसा काला कानून बनाया गया। यूएपीए का कानून बनाया गया। अफस्पा का कानून बनाया गया, जिसको 1958 में एक साल के लिए बनाया गया था और हम 2023 में आ गए।’

ओवैसी ने कहा, ‘ये भारत का दिल है। आज गरीबों, मजलूमों, मुसलमानों, कश्मीर के लोगों, दलितों और आदिवासियों में इस संसद के लिए मोहब्बत और विश्वास खत्म हो रहा है, कम हो रहा है। इसलिए जनता सडक़ों पर आकर विरोध कर रही है। क्योंकि उन्हें लगता है कि यह संसद हमारा दिल नहीं है।’

ओवैसी ने कहा, ‘एक बहुत बड़े शायर ने कहा था, अभी चिरागे-सरे-रह को कुछ खबर ही नहीं, अभी गरानी-ए-शब में कमी नहीं आई, निजाते-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई, चले चलो कि वो मंजिल अभी नहीं आई।’

‘पिच बदलने से गेम नहीं बदलता, गेम को बदलना पड़ेगा। आप पिच बदल रहे हैं। वरना आप याद रखिए, जब हम लोकतंत्र के नियमों पर, संविधान पर अटूट अमल नहीं करेंगे, तो कहीं यह नई इमारत भी हिटलर की राइकस्टाग (जर्मन संसद) वाली इमारत न साबित हो जाए।’ (bbc.com/hindi)

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