विचार / लेख

-डॉ. आर.के. पालीवाल
चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें, वर्तमान राजनीतिक दौर में बहुत कम नेता ऐसे बचे हैं जिनके काम और उससे भी ज्यादा उनका आचरण और सिद्धांत जनता को प्रभावित करते हैं। इसीलिए चुनावों के वक्त प्रधानमन्त्री से लेकर मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों तक का आत्म विश्वास डगमगाने लगता है। सत्ता का स्वाद चख चुके नेताओं को सुविधाओं और रूतबे की ऐसी लत लग जाती है कि वे आजीवन सत्ता से चिपकने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं। यही वजह है कि वे कभी विज्ञापनों के जरिए, कभी रैलियों के जरिए अपने छोटे छोटे कामों को बढ़ा चढ़ाकर और विरोधियों की छोटी छोटी गलतियों और खामियों को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत कर तरह तरह से जनता को भ्रमित कर वोट बटोरने की कोशिश करते हैं।केंद्र में सत्ता के लिए लालायित राष्ट्रीय दल हर चुनाव में कभी गरीबी हटाओ, कभी भ्रष्टाचार हटाओ और कभी राम जन्मभूमि जैसे धार्मिक मुद्दों को हथियार बनाकर सत्ता प्राप्त करते रहे हैं।
ऐसा लगता है कि आगामी लोकसभा चुनाव सनातन के मुद्दे पर केंद्रित करने के लिए प्रधानमन्त्री और उनके मंत्रिमंडल की तैयारी हो गई है। प्रधानमन्त्री ने इसकी शुरुआत भी मध्य प्रदेश के बीना शहर से कर दी है। उन्होंने शुरुआत भी बहुत सोच समझ कर इस तरह की है कि इसका मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनावों पर असर पड़ेगा। इस आयोजन में प्रधानमन्त्री के रथ पर एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान विराजमान थे और दूसरी तरफ़ मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वी डी शर्मा मौजूद थे। मतलब साफ है कि जब प्रधानमन्त्री सरकार और संगठन के मुखियाओं की उपस्थिति में सनातन मुद्दे पर शंखनाद कर रहे हैं तो यह संदेश सरकार के मंत्रियों और संगठन के पदाधिकारियों से होते हुए बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं तक जाना है।
चुनाव को धर्म पर आधारित करने की भारतीय जनता पार्टी की हसरत को पूरा करने के साधू संतों के एक बड़े वर्ग ने भी एक व्यापक कार्यक्रम बनाया है। इसमें एक हजार संत काशी से एक यात्रा शुरु करने की योजना बना रहे हैं जो हिंदू बहुल पांच लाख़ गांवों में पहुंचकर राम मंदिर की योजना का खाका जनता को बताएंगे। चुनावी वर्ष में इस यात्रा का लाभ भाजपा को ही मिलेगा क्योंकि वह खुद भी जोर शोर से सनातन धर्म के मुद्दे को इतना तूल दे रही है।हाल ही में केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी एवम प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की अनन्य प्रशंसक स्मृति ईरानी ने भी कहा है कि आगामी चुनाव धर्म और अधर्म के बीच होगा। इसे भी प्रधानमन्त्री के सनातन धर्म वाले बयानों से जोडक़र देखा जाए तो वे शायद यही कहना चाहती हैं कि यह चुनाव सनातन धर्म के रक्षकों अर्थात भारतीय जनता पार्टी और उनके गठबंधन एन डी ए के साथियों और सनातन धर्म के विरोधियों के मध्य है।
इंडिया गठबंधन के लिए सनातन धर्म का मुद्दा गले की हड्डी बन गया है। सनातन धर्म के उन्मूलन की सार्वजनिक वकालत करने वाले तमिलनाडू सरकार के मंत्री उदयनिधी स्टालिन अपने बयान पर कायम हैं और उनके मुख्यमंत्री पिता के समर्थन के कारण उनके दल के दूसरे बड़े नेता भी उनके साथ खड़े हैं। ऐसे में कांग्रेस सहित गठबंधन के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना आदि दलों के सामने विचित्र स्थिति पैदा हो गई है। भारतीय जनता पार्टी और विशेष रूप से प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने इसीलिए सनातन धर्म के मुद्दे को इतना अहम बनाया है जिसके सहारे एंटी इनकंबेंसी फैक्टर, महंगाई, बेरोजगारी, अमीर गरीब के बीच बढ़ती खाई और अडानी समूह के कथित भ्रष्टाचार के मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाकर चुनावी नैया पार की जा सके। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के साथी राजनीतिक दल निकट भविष्य में इस मुद्दे से कैसे छुटकारा पाते हैं और धर्म की जगह कैसे अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों को चुनाव के केंद्र में लाते हैं यह गठबंधन की आगामी बैठक के बाद ही स्पष्ट होगा।