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मणिपुर में अत्याचार, बलात्कार और हत्याओं का खौफनाक मंजर
22-Sep-2023 7:03 PM
मणिपुर में अत्याचार, बलात्कार और हत्याओं का खौफनाक मंजर

-योगिता लिमये

हरे-भरे धान के खेतों के सामने बने अस्थायी बंकर में चार पुरुष घुटनों के बल बैठे हुए थे। उनकी बंदूकें सीमेंट के बोरों से बनाई गई दीवार से टिकाकर रखी गई थीं। टिन की छत बांस की बल्लियों पर टिकी हुई थी।

घर पर बनी बुलेट-प्रूफ़ जैकेट पहने ये लोग आधे मील से भी कम दूरी पर मौजूद दुश्मन के बंकर पर अपने हथियारों की आज़माइश करते हैं। एक खंबे से कारतूस की बेल्ट टंगी हुई थी।

ये सब आम नागरिक हैं जो 'ग्राम सुरक्षा बल' के सदस्य हैं। इनमें से एक ड्राइवर है, एक मज़दूर और एक किसान। इनके साथ एक और शख़्स मौजूद है- तोम्बा (बदला हुआ नाम)। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में इस साल मई में जातीय हिंसा भडक़ने से पहले तोम्बा मोबाइल फ़ोन की मरम्मत करने की दुकान चलाते थे।

पाठकों के लिए चेतावनी
चेतावनी- इस लेख में हिंसा का ऐसा विवरण है जो पाठकों को विचलित कर सकता है।
दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक, भारत के इस कोने में दो समुदायों के बीच अलगाव इस क़दर बढ़ गया है, मानो आप युद्ध लड़ रहे किन्हीं दो देशों के हथियारों से लैस बॉर्डर पर पहुंच गए हों।

तोम्बा कहते हैं, ‘हमें ख़ुद अपनी रक्षा करनी होगी क्योंकि हमें नहीं लगता कि कोई और हमारी रक्षा कर पाएगा। मुझे डर लगता है लेकिन मुझे इसे छिपाना पड़ता है।’
तोम्बा और उनके साथ बंकर में मौजूद तीन अन्य सदस्य, मुख्य तौर पर हिंदू धर्म को मानने वाले बहुसंख्यक मैतेई समुदाय से हैं।

उनके समुदाय और अल्पसंख्यक कुकी समूहों के बीच हिंसा छिडऩे के बाद से मणिपुर में डर का माहौल देखा जा रहा है। इस दौरान बेरहमी से की गई हत्याएं और महिलाओं के ख़िलाफ यौन अपराध भी देखने को मिले हैं। अब तक 200 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें से दो तिहाई कुकी हैं। कुकी समुदाय में सामूहिक रूप से कुकी, ज़ोमी, चिन, हमार और मिज़ो जनजातियों के लोग शामिल हैं जिनमें से ज़्यादातर ईसाई धर्म को मानते हैं।

चार मई को मैतेई पुरुषों की भीड़ ने कुकी-ज़ोमी समुदाय की दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाया था। छोटी लडक़ी के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया था। उसके पिता और 19 साल के भाई की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।

पीडि़तों का अंतहीन दर्द
हमने इस लडक़ी की मां से बात की। बलात्कार से संबंधित भारतीय क़ानूनों के कारण हम उनकी पहचान ज़ाहिर नहीं कर सकते।

वह बिलखते हुए कहती हैं, ‘मेरे पति औरे बेटे को मारने के बाद मेरी बेटी के साथ जो सलूक किया गया, उसे देखकर मैंने मर जाना चाहा। मेरे पति का चर्च में बहुत सम्मान किया जाता था। वह विनम्र और दयालु थे। उनके बाज़ुओं को चाकुओं से काट डाला गया। मेरा बेटा 12वीं कक्षा में था। वह शरीफ़ लडक़ा था जिसने कभी किसी से लड़ाई नहीं की। उसे लोहे की छड़ से बेरहमी से पीटा गया।’

‘उसे इसलिए मारा गया क्योंकि वह अपनी बहन को बचाने के लिए भीड़ के पीछे गया था। मेरी बेटी अभी तक सदमे से उबर नहीं पाई है। उसी के सामने पिता और भाई को मारा गया था। उसे खाने और सोने में अभी भी दिक्कत होती है। मेरे परिवार के साथ जो कुछ हुआ, उसके बाद मैं कभी भी शांति से नहीं रह पाऊंगी।’

मई में शिकायत दर्ज करवाने के बावजूद पुलिस ने तब तक कोई जांच नहीं की थी, जब तक कि जुलाई में इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर नजऱ नहीं आया था। उसी के बाद भारत और दुनिया भर के कई लोगों का ध्यान मणिपुर में चल रहे संघर्ष की ओर गया था।

कब बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसी घटना के बाद मणिपुर हिंसा पर चुप्पी तोड़ी थी।
हिंसा की शुरुआत कैसे हुई, इसे लेकर अलग-अलग बातें कही जा रही हैं। मैतेई समुदाय के लोग मुख्य तौर पर राज्य की सबसे समृद्ध इम्फाल घाटी में रहते हैं। यह इलाक़ा राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग दस फ़ीसदी है।

राज्य का बाक़ी हिस्सा पहाड़ी इलाक़ों से भरा है जो अपेक्षाकृत कम विकसित है। इसी क्षेत्र में अल्पसंख्यक समूह रहते हैं, जिनमें से कुकी समुदाय को जनजाति का दजऱ्ा दिया गया था। भारत में यह दजऱ्ा संवैधानिक व्यवस्था के तहत दिया जाता है ताकि पिछड़े और वंचित समुदायों की पहचान, ज़मीन, संस्कृति और भाषा की रक्षा की जा सके।

कुकी समुदाय को मिले इसी दजऱ्े के कारण मैतेई समुदाय के लोगों को पहाड़ों में ज़मीन खऱीदने की अनुमति नहीं है जबकि कुकी प्रदेश मे कहीं पर भी ज़मीन खऱीद सकते हैं।

मैतेई समुदाय को भी जनजाति का दर्जा दिए जाने के क़दम के ख़िलाफ़ तीन मई को कुकी समुदाय के लोगों ने रैलियां निकालकर विरोध जताया था।

कुकी आरोप लगाते हैं कि इस दौरान कट्टरपंथी मैतेई समूहों ने इम्फाल और इसके आसपास रह रहे अल्पसंख्यक परिवारों पर हमले किए। वहीं मैतेई कहते हैं कि रैली निकाल रहे कुकी समुदाय के लोगों ने हिंसा की शुरुआत की।

मैतेई और कुकी में गहरी हुई खाई
बीबीसी स्वतंत्र तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं कर सकती कि क्या हुआ मगर हिंसा के शुरुआती दिनों में मरने वालों में कुकी समुदाय के लोगों संख्या ज़्यादा थी।

हिंसा ऐसी भडक़ी कि दोनों समुदायों के लोगों के सैकड़ों मकानों को जला दिया गया या फिर तबाह कर दिया गया। चर्च और मंदिर भी फूंक दिए गए। अंदाज़ा है कि दोनों समुदायों के करीब 60 हज़ार लोग विस्थापित हो चुके हैं जो स्कूलों, खेल परिसरों या फिर अन्य जगहों पर रह रहे हैं और अपने घर नहीं लौट पा रहे।

हिंसा भडक़ने के चार महीने बाद भी, मैतेई और कुकी, दोनों समुदायों के बीच दूरियां बनी हुई हैं। वे एक-दूसरे के प्रभाव वाले इलाक़ों में दाखिल नहीं हो सकते।

मैतेई प्रभुत्व वाले इम्फ़ाल से कऱीब 60 किलोमीटर की यात्रा करके दक्षिण में कूकी प्रभाव वाले चुराचांदपुर जाते समय हमें पुलिस और सेना के सात नाकों से होकर गुजऱना पड़ा।

दोनों ओर, दर्जनों महिलाओं द्वारा लगाए गए नाकों में हमें अपने प्रेस कार्ड दिखाने पड़े और कई सारे सवालों के जवाब भी देने पड़े। हम उनकी इजाज़त के बिना दाख़िल नहीं हो सकते थे। इससे पता चलता है कि यहां पर सरकार का नियंत्रण नहीं था।
जब हम मैतेई समुदाय के बंकर में तोम्बा से मिले थे, तब यह देखकर हैरानी हुई थी कि वह और बाक़ी लोग खुलकर हथियार लेकर चल रहे थे। उन्हें पुलिस या सुरक्षा बलों द्वारा पकड़े जाने का बिलकुल भी डर नहीं था। मैतेई और कुकी इलाक़ों की सीमाओं के पास हमने आम नागरिकों को हथियारों के साथ बेधडक़ घूमते देखा। वे पुलिस और सुरक्षा बलों के सामने भी ऐसा कर रहे थे। बीबीसी ने नाबालिगों को भी बंदूकें थामे देखा।

लोगों की पुलिस से क्या शिकायत है
तीस से चालीस के बीच की उम्र के तोम्बा ने हमें बताया, ‘मुझे एक महीना पहले मेरे गांव में एक पूर्व सैनिक ने बंदूक चलाने की ट्रेनिंग दी थी। ये बंदूकें गांववालों ने इक_ा करके हमे दी थीं।’

तोम्बा ने बताया कि वे लोग चौबीसों घंटे पहरा देते हैं। उन्होंने बताया, ‘हर परिवार से एक पुरुष का ड्यूटी पोस्ट पर पहरा देना और महिला चेक पोस्ट तैनात रहना ज़रूरी है। हमारा अनुभव है कि पुलिस कभी समय पर नहीं आती। और फिर हम केंद्र सरकार के तहत आने वाले सुरक्षा बलों पर भरोसा नहीं कर सकते। उन्हें कुकी समुदाय की ओर तैनात किया गया है। बावजूद इसके कुकी हमारे गांवों तक कैसे पहुंच जा रहे हैं?’

जब हम बंकर से निकले, एक धमाके की आवाज़ सुनाई दी। ऐसा लगा कि कहीं कोई मोर्टार का गोला फटा हो। मगर यह कहना मुश्किल है कि इसे किस ओर से दागा गया था।

तोम्बा ने जो कुछ बताया, उससे इस पेचीदा संघर्ष की एक और परत खुलती नजऱ आती है।

मणिपुर पुलिस राज्य सरकार के अधीन है जिसके मुख्यमंत्री एन। बीरेन सिंह हैं। कुकी समुदाय के लोगों ने हमें बताया कि वे बीरेन सिंह और मणिपुर पुलिस पर भरोसा नहीं करते।

साथ ही, मणिपुर में असम राइफ़ल्स के जवान भी तैनात किए गए हैं। यह अराजकता रोधी बल केंद्र सरकार के अधीन है। मैतेई समुदाय के लोगों ने कहा कि उन्हें लगता है कि असम राइफ़ल्स कुकी समुदाय के साथ है।

मैतेई बहुल इलाक़ों में पुलिस के शस्त्रागारों से हज़ारों हथियार लूट लिए गए हैं। मणिपुर पुलिस और असम राइफ़ल्स से बीबीसी ने पूछा कि क्या वे किसी एक पक्ष के साथ हैं और हथियारबंद नागरिकों को क्यों पकड़ा नहीं जा रहा, क्यों उनके लाइसेंस नहीं जांचे जा रहे। दोनों ने इन सवालों के जवाब नहीं दिए।

युद्ध की भाषा बोलते आम लोग
पुलिस ने हमें एक्स (ट्विटर) पर उनके अकाउंट पर जाने को कहा, जहां पर ज़ब्त किए जा रहे हथियारों की तस्वीरें डाली जा रही हैं।

मणिपुर में हिंसा भडक़ने से अब तक कम से कम छह पुलिस अधिकारियों की जान जा चुकी है।

असम राइफ़ल्स ने हमें एक रिकॉर्डेड वीडियो मेसेज भेजा जिसमें उनके महानिदेशक जानकारी दे रहे थे कि वे हथियारों को ज़ब्त कर रहे हैं और निष्पक्ष होकर ड्यूटी दे रहे हैं।

तोम्बा के बंकर से आधा मील से भी कम दूरी पर इसी तरह के मगर दूसरे खेमे के एक बंकर में खाखम (बदला हुआ नाम) बैठे हुए थे। उनके हाथ में डबल-बैरल वाली शॉटगन थी। वह कुकी-ज़ोमी जनजाति से हैं। वह मज़दूर हैं और खेती भी करते हैं।

वह कहते हैं, ‘हम किसी खऱाब मंशा से यहां नहीं हैं। हम हिंसा नहीं चाहते। हम मैतेई समुदाय के लोगों से रक्षा के लिए हथियार उठाने के लिए मजबूर हो गए हैं।’ उन्होंने दावा किया, ‘ऐसी घटनाएं भी हुई हैं जब पुलिस ने उन्हें जाने दिया। उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।’

खाखम को हथियार और ट्रेनिंग मिलने की वही कहानी है जैसी तोम्बा की थी। दोनों पक्ष युद्ध में इस्तेमाल होने वाली भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं। दो बंकरों के बीच के इलाक़े को ‘फ्रंट लाइन’, ‘बफऱ ज़ोन’ या फिर ‘नो मैन्स लैंड’ कहा जा रहा है।

खाखम कहते हैं, ‘अब हम कभी मैतेई के साथ मिलकर नहीं रह सकते। यह असंभव है।’

भाई की मौत का गम
जब आप हिंसा के बारे में विस्तार से जानते हैं तो समझ आता है कि क्यों इतनी जल्दी और इतनी ज़्यादा कटुता बढ़ गई है।

कुकी-हमार समुदाय से संबंध रखने वाले 33 साल के डेविड तुओलोर लैंग्ज़ा (ग्राम सुरक्षा बल) का हिस्सा थे। उनके परिजन बताते हैं कि मैतेई भीड़ ने दो जुलाई को डेविड को उनके गांव से पकड़ लिया था। उनकी मौत के बाद ऑनलाइन एक वीडियो सामने आया। इसमें उनका कटा हुआ और क्षत-विक्षत सिर एक बाड़ में फंसा हुआ दिख रहा था।

डेविड के छोटे भाई अब्राहम ने हमें बताया, ‘यह देखना बहुत दर्दनाक था। मैं सो नहीं पा रहा हूं। मैंने उसके फ़ोटो भी अपने फ़ोन पर नहीं रखता क्योंकि उन्हें देखकर वही सब याद आ जाता है। बहुत दुख होता है। मैं परेशान करने वाली चीज़ों के बारे में सोचना शुरू कर देता हूं।’

अब्राहम कहते हैं कि डेविड को यातनाएं देने के बाद मार डाला गया था और उनके शरीर को जला दिया गया था। बाद में कुछ हड्डियां मिली थीं। परिजनों का मानना है कि ये हड्डियां डेविड की थीं।

डेविड की मौत के पांच दिन बाद, सात जुलाई को मैतेई समुदाय से सम्बंध रखने वाले 29 साल नगालाइबा सागोल्सेम, उत्तरी मणिपुर में कुकी प्रभाव वाले इलाक़े के नज़दीक से लापता हो गए।

एक दिन बाद एक वीडियो सामने आया जिसमें वह घुटनों के बल ज़मीन पर बैठे हुए थे। हाथ पीठ के पीछे बंधे थे और चेहरे पर ख़ून के निशान थे। कुछ लोग उन्हें पीट रहे थे और वह चिल्ला रहे थे। दो महीने बाद उनका एक और वीडियो सामने आया जिसमें वह इसी हालत में थे, फिर उन्हें सिर पर गोली मारकर एक गड्डे में गिरा दिया गया।

बेटी की वापसी के इंतजार में बैठे पिता
नगालाइबा के परिवार को लगता है कि उन्हें कुकी समुदाय के लोगों ने मारा है। नगालाइबा को अपनी पत्नी सिल्बिया से तभी प्यार हो गया था जब वे दस साल पहले स्कूल में मिले थे।

सिल्बिया बताती हैं, ‘वह बहुत साधारण आदमी थे। हर कोई उन्हें प्यार करता था। बच्चों जैसे थे और बच्चों के साथ खेलना पसंद करते थे। हमारे जीवन में खुशियां ही खुशियां थीं।’

यह कहते हुए सिल्बियां की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। उनके दो बेटे हैं। एक चार साल का है, दूसरा सात महीने का।

रोते हुए वह कहती हैं, ‘बड़ा बेटा पूछता रहता है कि पापा कहां हैं। हमें उनका शव नहीं मिला है, इसलिए मुझे उम्मीद है कि वह लौटेंगे। मैं अक्सर दरवाज़ा खोलकर उनका इंतज़ार करती रहती हूं। उनके नंबर पर कॉल करती रहती हूं।’

इम्फाल शहर में, एक और परिवार अपनी बेटी की कोई ख़बर आने के इंतज़ार में है। छह जुलाई को 17 साल की मैतेई लडक़ी लिन्थोइनगांबी हिजाम अपने दोस्त हेमनजीत सिंह के साथ कुकी बहुल इलाक़े से लापता हो गई थी। इसके बाद उनके फ़ोन स्विच ऑफ़ हो गए थे। लडक़ी के पिता कुलजीत हिजाम दावा करते हैं कि उन्हें अपने समुदाय के लोगों की मदद से यह पता चला कि कुछ दिन बाद, उनकी बेटी के दोस्त का मोबाइल एक कुकी महिला के नाम पर पंजीकृत सिम कार्ड के साथ ऑन हुआ था। उन्होंने कहा, ‘हमारी बेटी के साथ क्या हुआ, यह पता लगाने में कोई हमारी मदद नहीं कर रहा। मैं बहुत बेबस महसूस कर रहा हूं।’

‘मैं जानता हूं कि अगर मेरी बेटी को अपने बंधकों से बात करने के मौक़ा मिलेगा तो वह उन्हें छोडऩे के लिए मना लेगी। मुझे लगता है कि वह लौटकर मुझे चौंका देगी।’

तनाव का कारण क्या है
लिन्थोइनगांबी हिजाम ने पिछले साल फादर्स डे पर खुद बनाकर अपने पिता को यह गिफ्ट दिया था। अब तक दोनों पक्षों के बीच किसी तरह का संवाद स्थापित नहीं हुआ है और न ही पुलिस कुकी प्रभाव वाले इलाक़ों में जा पा रही है। ऐसे में कुलजीत जैसे लोगों को जवाब मिले तो आखऱि कहां?

भूमि अधिकार तो इस तनाव का छोटा सा कारण है। मैतेई समुदाय राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है। राज्य के ज़्यादातर मुख्यमंत्री भी मैतेई रहे हैं।

तनाव का एक और कारण है- मणिपुर के साथ लंबी सीमा वाले म्यांमार से ऐसी जनजाति के लोगों का मणिपुर आना जो जातीय रूप से कुकी समुदाय के समान हैं। पहाड़ी इलाक़ों में अफ़ीम की अवैध खेती भी टकराव का एक कारण है।

मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों ने हमें बताया कि वे राज्य सरकार से नाख़ुश हैं। कुकी आरोप लगाते हैं कि सरकार उनके ख़िलाफ होने वाली हिंसा का समर्थन करती है जबकि मैतेई कहते हैं कि सरकार ने हिंसा को फैलने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया।

मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के कार्यालय ने न तो उनके इंटरव्यू की गुज़ारिश का जवाब दिया और न ही ईमेल के माध्यम से भेजे गए सवालों का उत्तर दिया।
मैतेई और कुकी, दोनों समुदाय केंद्र सरकार से भी नाख़ुश हैं।

मैतेई समुदाय के बंकर में बैठे तोम्बा कहते हैं, ‘मुझे बहुत बुरा लगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने सिफऱ् कुकी महिला का वीडियो सामने आने के बाद बात की। मणिपुर क्या भारत का हिस्सा नहीं है? क्यों हमें नजऱअंदाज़ किया जा रहा है?’

मणिपुर सरकार भी नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी द्वारा चलाई जा रही है। ऐसे में राज्य के बहुत से लोगों को लगता है कि अगर केंद्र चाहे तो इस संकट को तुरंत हल किया जा सकता है।

खाखम कहते हैं, ‘अभी तक हमें उनसे (भारत सरकार से) कुछ सुनने को नहीं मिला है। हमें लगता है कि वे भारतीय नागरिकों की जि़ंदगी और उनकी परेशानियों की कोई फि़क्र नहीं करते। हम उनकी प्राथमिकता में हैं ही नहीं।’ खाखम यह भी कहते हैं कि कुकी समुदाय राज्य में अलग प्रशासन की मांग कर रहा है।

मणिपुर में शांति?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है, ‘मणिपुर में धीरे-धीरे शांति लौट रही है।’ लेकिन पिछले तीन हफ़्तों में ही यहां हिंसा की कम से कम पांच घटनाएं हो चुकी हैं।

ताज़ा घटना बीते रविवार को हुई जब छुट्टी पर आए भारतीय सेना के एक जवान को इम्फ़ाल में उनके घर से अगवा करके मार डाला गया।

हजारों की संख्या में हथियारबंद, नाराज और डरे हुए नागरिकों और हथियारबंद नागरिकों के बीच मणिपुर में हालात बेहद अस्थिर और संवेदनशील बने हुए हैं। (bbc.com/hindi)

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