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मुंबई, 27 सितंबर। बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह इस तथ्य से परेशान है कि सरकार के खिलाफ ऑनलाइन फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के लिए हाल ही में संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियम उस व्यक्ति के लिए किसी समाधान की पेशकश नहीं करते जिसकी सोशल मीडिया पोस्ट प्रस्तावित तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) द्वारा चिह्नित किए जाने के बाद हटा दी गई है या खाता निलंबित कर दिया गया है।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने सवाल किया कि ऐसे व्यक्ति कहां जाएंगे जिनकी पोस्ट एकतरफा कार्रवाई करते हुए हटा दी जाएगी और कोई समाधान उपलब्ध नहीं होगा।
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘इसका प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है, या नहीं भी हो सकता है, लेकिन फिर भी इस पर विचार करने की जरूरत है।’’
पीठ संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुन रही थी। स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने नियमों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए उन्हें मनमाना और असंवैधानिक बताया है और दावा किया है कि उनका नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को दलील दी कि नियमों के तहत स्थापित होने वाला एफसीयू जब किसी भी पोस्ट को "फर्जी और झूठे तथ्यों" वाले के तौर चिह्नित करेगा, तो (सोशल मीडिया) मंच के पास इसे सत्यापित करने और सामग्री को हटाने या पोस्ट पर अस्वीकरण लगाने का विकल्प होता है।
मेहता ने कहा, “ऐसा करके मंच अपना सुरक्षित आश्रय या प्रतिरक्षा बनाए रखते हैं। यदि मंच कुछ नहीं करता है तो पीड़ित पक्ष (या तो व्यक्ति या सरकार) पोस्ट के खिलाफ अदालत जा सकता है और मंच को भी अदालत में ले जा सकता है। अदालत तब दायित्व तय करेगी।’’
मेहता ने स्पष्ट किया कि एफसीयू द्वारा सामग्री को चिह्नित किए जाने के बाद मंच के पास कुछ भी नहीं करने का विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा, “मंच को अपने सुरक्षित आश्रय या प्रतिरक्षा को बनाए रखने के लिए कोई ना कोई कदम उठाना चाहिए। हटाने की कोई बाध्यता नहीं है लेकिन तब मंच अपना सुरक्षित आश्रय खो देगा।’’
पीठ ने तब सवाल किया कि क्या नियमों के तहत उस व्यक्ति के लिए कोई समाधान उपलब्ध है जिसकी पोस्ट को चिह्नित किया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि मंच अनुपालन करता है और सामग्री हटा देता है... तो उपयोगकर्ता (वह व्यक्ति जिसकी पोस्ट हटा दी गई है या खाता निलंबित कर दिया गया है) कहां जाएगा? उपयोगकर्ता के लिए कोई समाधान उपलब्ध नहीं है...और यही बात हमें परेशान कर रही है...उपयोगकर्ता के पास कोई सहारा नहीं है...कोई नहीं।’’
अदालत ने यह भी सवाल किया कि क्या एक सरकारी प्राधिकार, इस मामले में एफसीयू, के पास यह तय करने का अधिकार है कि सच्चाई क्या है।
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘सत्य क्या है? इसे निर्धारित करने के लिए हमारे पास निचली अदालतें हैं...यहां तक कि अदालतें भी इसका उत्तर निश्चित रूप से नहीं दे सकतीं...अदालतें कुछ हद तक किसी सच्चाई तक पहुंचती हैं क्योंकि एक प्रक्रिया मौजूद होती है। इस प्रक्रिया को हमारी व्यवस्था में परिभाषित किया गया है। यहां इस प्रक्रिया का अभाव है।’’
पीठ ने कहा कि वह केंद्र की इस दलील सहमत है कि इंटरनेट पर कई "फर्जी और झूठे तथ्य" फैलाए जा रहे हैं और यह न केवल सरकार के लिए बल्कि व्यापक पैमाने पर समाज के लिए भी एक समस्या हैं।
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, “यह कई गंभीर और नैतिक प्रश्न उठाता है जिन पर बहस हो सकती है। एकमात्र सवाल एफसीयू की बाध्यता है जो कहती है कि उसने यह निर्धारित किया है, अदालत ने नहीं, बल्कि उसने यह निर्धारित किया है कि कुछ फर्जी और गलत है।’’
पीठ ने दोहराया कि यद्यपि वह कई दिनों से इस मुद्दे पर दलीलें सुन रही है, लेकिन एक बात जो केंद्र सरकार ने अभी तक स्पष्ट नहीं की है कि अब संशोधन की आवश्यकता क्यों है।
अदालत ने सवाल किया, “मुझे अब भी समझ में नहीं आया कि पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी), जो अब तक सोशल मीडिया मंच पर फर्जी खबरों को चिह्नित करने का काम कर रहा था, को अपर्याप्त क्यों माना गया...इस संशोधन और एफसीयू की क्या जरूरत थी...पीआईबी को अपर्याप्त क्यों ठहराया गया।’’
मेहता ने अदालत को बताया कि सरकार इस मुद्दे पर पंच नहीं बनने जा रही है कि किसी पोस्ट में फर्जी और गलत तथ्य हैं या नहीं। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार पंच नहीं बनना चाहती। केवल अदालतें ही ऐसा कर सकती हैं।’’
पीठ 29 सितंबर को मामले की सुनवाई जारी रखेगी।
इस साल अप्रैल में याचिकाएं दायर होने के बाद केंद्र ने अदालत से कहा था कि वह जुलाई तक एफसीयू को अधिसूचित नहीं करेगा। जब अदालत ने याचिकाओं पर दलीलें सुननी शुरू कीं तो इसे समय-समय पर बढ़ाया गया। पिछले महीने, बयान को तीन अक्टूबर तक बढ़ा दिया गया था। (भाषा)