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शांतिनिकेतन में अशांति क्यों?
03-Oct-2023 12:51 PM
शांतिनिकेतन में अशांति क्यों?

शांतिनिकेतन को भले बीते महीने यूनेस्को की हेरिटेज सूची में शामिल कर लिया गया हो, बीते कुछ वर्षों से जारी विवाद कविगुरु रवींद्रनाथ ठाकुर की ओर से शांतिनिकेतन में स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय का पीछा नहीं छोड़ रहा है.

   डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट

नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के साथ जमीन के मालिकाना हक पर लंबे समय से विवाद चल ही रहा है. इस बीच, ताजा मामले में एक सड़क के मालिकाना हक को लेकर विवि प्रबंधन और राज्य सरकार में ठन गई है.

सरकार ने बेहतर कनेक्टिविटी के लिए 2020 में इस सड़क का अधिग्रहण कर लिया था. अब बीते एक सप्ताह में प्रबंधन ने सरकार को दो-दो पत्र भेज कर इस सड़क का कब्जा विवि को लौटाने की मांग की है. दूसरी ओर, स्थानीय लोगों ने मुख्यमंत्री को पत्र भेज कर इस सड़क को विश्वभारती को नहीं लौटाने का अनुरोध किया है. उनकी दलील है कि प्रबंधन अक्सर मनमानी तरीके से इस सड़क पर यातायात रोक देता है. इससे आम लोगों को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ता है.

वर्ष 1921 में स्थापित विश्वभारती पश्चिम बंगाल का इकलौता केंद्रीय विश्वविद्यालय है. अपने पठन-पाठन और माहौल के लिए दुनिया भर में मशहूर इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए देश-विदेश के छात्र यहां आते रहे हैं. लेकिन हाल के कुछ वर्षो में यह अपनी गुणवत्ता या पढ़ाई के लिए नहीं बल्कि तमाम विवादों के कारण ही सुर्खियों में रहा है. इनमें छात्राओं के यौन और मानसिक उत्पीड़न के आरोप, गौशाला की स्थापना और अमर्त्य सेन के साथ जमीन के मालिकाना हक पर विवाद शामिल हैं.

अमर्त्य सेन के साथ विवाद
इस साल की शुरुआत में नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के साथ जमीन के एक टुकड़े के मालिकाना हक पर विवाद के कारण विश्वभारती लगातार सुर्खियों में रहा है. दरअसल, विश्वभारती विश्वविद्यालय परिसर में अमर्त्य सेन के पास 1.38 एकड़ जमीन का एक प्लाट है. उस पर उनका प्रतीची नामक मकान भी है. प्रबंधन का दावा है कि दरअसल सेन की जमीन सिर्फ 1.25 एकड़ है. उन्होंने 0.13 एकड़ पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है. लेकिन सेन का दावा है कि यह जमीन उनके पिता ने बाजार से खरीदी थी. इसलिए पिता की जमीन अब उनके नाम हस्तांतरित की जानी चाहिए.

इस विवाद में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सेन का समर्थन किया है और उनको जेड श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई है. वैसे भी, बीते कुछ वर्षों से प्रबंधन और सरकार टकराव की राह पर चल रहे हैं. फिलहाल यह विवाद अदालत में विचाराधीन है.

शांतिनिकेतन का ताजा विवाद
ताजा विवाद शांतिनिकेतन और श्रीनिकेतन को जोड़ने वाली करीब तीन किमी लंबी सड़क  को लेकर पैदा हुआ है. राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में विवि के तत्कालीन वाइस-चांसलर स्वपन दत्त के अनुरोध पर यह सड़क विश्वभारती को सौंपी थी. लेकिन मौजूदा वीसी विद्युत चक्रवर्ती और मुख्यमंत्री के बीच टकराव तेज होने के बाद सरकार ने वर्ष 2021 में यह सड़क दोबारा कब्जे में लेकर इसे पीडब्ल्यूडी को सौंप दिया. इसी सड़क के किनारे अमर्त्य सेन समेत कई विशिष्ट लोगों के मकान हैं.

वहां रहने वालों ने मुख्यमंत्री को भेजे एक पत्र में आरोप लगाया था कि प्रबंधन मनमाने तरीके से अक्सर उस सड़क को बंद कर देता है. इससे उनको आवाजाही में भारी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. उसी के बाद मुख्यमंत्री ने उस सड़क का कब्जा वापस लेने का फैसला किया.

अब शांतिनिकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किए जाने के बाद प्रबंधन बीते दस दिनों में मुख्यमंत्री को दो-दो पत्र भेज कर यह सड़क वापस करने की मांग कर चुका है. वाइस-चांसलर विद्युत चक्रवर्ती कहते हैं, "शांतिनिकेतन को 17 सितंबर को विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है. इस सड़क के दोनों किनारों पर ऐतिहासिक भवन हैं. भारी वाहनों की आवाजाही से उनको नुकसान पहुंचने का अंदेशा है. इसलिए वह सड़क दोबारा विश्वभारती को सौंप दी जानी चाहिए. इससे उन भवनों को संरक्षण में सहायता मिलेगी."

लेकिन वीसी के पत्र के अगले दिन ही शांतिनिकेतन के छह विशिष्ट नागरिकों ने मुख्यमंत्री को पत्र भेज कर उस सड़क को दोबारा विश्वभारती को नहीं सौंपने की अपील की है.

इतिहास से जुड़ा शांतिनिकेतन
शांतिनिकेतन का नाम बंगाल के इतिहास और संस्कृति से काफी गहरे ढंग से जुड़ा है. इस शहर की स्थापना कविगुरु रवींद्रनाथ के पिता महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर ने 1863 में की थी. तब इसका नाम भुवनडांगा था जो रायपुर के जमींदार भुवन मोहन सिन्हा की जमींदारी का हिस्सा था. देवेंद्रनाथ ने यहां शांतिनिकेतन नामक एक आश्रम की स्थापना की थी. उसी के बाद यह इलाका शांतिनिकेतन के नाम से जाना जाने लगा.

वर्ष 1901 में शांतिनिकेतन में पहली बार एक स्कूल खोला गया था. इसके 20 साल बाद वर्ष 1921 में यहां विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी. वर्ष 1951 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला था.

अब इस शहर को विश्व धरोहरों की सूची में जगह मिलने के बाद स्थानीय लोगों में प्रसन्नता है. विश्वभारती के वाइस-चांसलर विद्युत चक्रवर्ती कहते हैं, "इस धरोहर की देख-रेख के लिए हम जल्दी ही एक विरासत समिति का गठन करेंगे. अब इस धरोहर को बचाने के लिए सबको अहम जिम्मेदारी निभानी होगी." (dw.com)

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